महाराष्ट्र के पुणे में पोर्श कार केस में हर रोज चौंकाने वाला खुलासे हो रहे हैं. इस बीच, रिटायर्ड नौकरशाह अरुण भाटिया ने महाराष्ट्र मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखा है और 19 मई को पोर्श कार एक्सीडेंट के संबंध में सबूत-गवाह और केस सिक्वेंस गायब करने के लिए साजिश किए जाने का दावा किया है. उन्होंने पुणे के पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार को भी लापरवाही का हिस्सा बताया और उनका तुरंत ट्रासंफर किए जाने की मांग की है.
भाटिया ने अपने पत्र में दो लोगों की हत्या करने वाले ड्राइवर को बचाने के लिए सबूतों को नष्ट करने में लगे शीर्ष स्तर के प्रशासन में पुलिस भ्रष्टाचार और गंदगी के अशिष्ट, आदिम और भयावह हालात का हवाला दिया. भाटिया ने MHRC अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा, मैं इस मामले में आपके हस्तक्षेप की अपील करता हूं, क्योंकि इस घटना ने हमें झकझोर दिया है. हमारी असुरक्षा बढ़ा दी है और हमें हमारे शासन और लोकतंत्र का भयानक चेहरा दिखाया है. भ्रष्ट अधिकारी और प्रताड़ित नागरिक अब रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं.
उन्होंने कहा, चूंकि हमने इसे नजरअंदाज कर दिया है, इसलिए भ्रष्टाचार अब व्यापक, बेलगाम और संस्थागत हो गया है. सिर्फ एक अधिकारी में ही यह बुराई शामिल नहीं है, बल्कि लगभग पूरे वर्ग ही ऐसा हो गया है. जब अधिकारियों का यह मिलन होता है और विभाग एक हो जाते हैं तो वे अभेद्य हो जाते हैं. अलग-थलग नागरिक के पास इसके खिलाफ कोई मौका नहीं है.
एक अपराधी को बचाने में मिलीभगत की गई
उन्होंने दावा किया कि इस मामले में पुलिस अधिकारियों और वरिष्ठ डॉक्टरों (जिनमें पुणे के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल ससून के मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी शामिल हैं) ने एक अपराधी को बचाने के लिए मिलीभगत की है.
बचाव और साजिश के लिए दिया गया समय
पत्र में आगे लिखा गया है कि शराब पीने की जांच के लिए ब्लड सैंपल लेने में पुलिस ने 6 घंटे से ज्यादा की देरी की. पुलिस ने ब्लड टेस्ट से पहले उसे थाने में कथित तौर पर पिज्जा खिलाया, फिर डॉक्टरों द्वारा सैंपल नष्ट कर दिया और बदल दिया गया. गवाहों और कार में बैठे लोगों के बयान दर्ज करने में देरी हुई. वगैरह-वगैरह. जांच के बुनियादी और मानक मानदंडों को खारिज कर दिया गया. बचाव की साजिश रचने के लिए दोषियों को समय उपलब्ध कराया गया.
दो नेता पुलिस स्टेशन पहुंचे थे
बताया जाता है कि पुलिस कमिश्नर (आईपीएस अधिकारी) ने ब्लड टेस्ट की कहानी को प्रक्रियात्मक चूक कहा था. भाटिया ने पत्र में कहा, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पहले दावा किया गया कि डॉक्टर्स को बचाने के लिए कोई राजनीतिक दबाव नहीं था, लेकिन दो राजनेता पुलिस स्टेशन पहुंचे थे.
जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी...
उन्होंने पत्र में कहा, मैं मानव संसाधन (मानवाधिकार) आयोग से इस फैक्ट पर विशेष ध्यान देने का अनुरोध करता हूं कि जब तक वरिष्ठ अधिकारियों को उनके अधीनस्थों के कदाचारों के लिए जवाबदेह नहीं बनाया जाएगा, सरकारी विभागों में सुधार नहीं होगा. यह सामान्य ज्ञान है कि अधीनस्थ अपने उच्च अधिकारियों के लिए रिश्वत के पैसे इकट्ठा करते हैं.
भाटिया ने आग्रह किया कि निष्पक्ष जांच के लिए पुलिस कमिश्नर को तुरंत पुणे से बाहर ट्रांसफर किया जाना चाहिए और उनके आचरण की जांच की जानी चाहिए क्योंकि वो शहर में पुलिस बल का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने कहा, एक राजनेता की सिफारिश के आधार पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी के रूप में डॉक्टर की नियुक्ति की जांच की जानी चाहिए और स्वास्थ्य सचिव को दंडित किया जाना चाहिए.
पुणे में पोर्श कार एक्सीडेंट में दो लोगों की गई थी जान
बताते चलें कि 19 मई की सुबह पुणे के कल्याणी नगर में दो आईटी पेशेवर लड़का-लड़की की मौत हो गई थी. यहां कथित तौर पर नशे में धुत नाबालिग ने अपनी पोर्श कार से दोपहिया वाहन को टक्कर मार दी थी. आरोपी 17 वर्षीय नाबालिग को बाल सुधार गृह भेजा गया है. उसके पिता और रियल एस्टेट डेवलर विशाल अग्रवाल और दादा सुरेंद्र अग्रवाल को परिवार के ड्राइवर का अपहरण करने और उस पर दोष लेने के लिए दबाव डालने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.