scorecardresearch
 

'रघुपति-राघव राजा राम' को कैसे, क्यों और किसने बनाया ईश्वर और अल्लाह का नाम, जानें पूरी कहानी

सवाल है कि महात्मा गांधी के इस भजन पर इतना विवाद क्यों है? असल में इस भजन को लेकर विवाद, इसकी मूलता को लेकर है. तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ये वायरल होता रहा है कि 'रघुपति राघव राजा राम...' गांधी जी का प्रिय भजन जरूर था,  लेकिन उन्होंने मूल भजन के पदों में बदलाव करके इसे अपनाया और गाया था.

Advertisement
X
'रघुपति राघव राजा राम' भजन में महात्मा गांधी ने किए थे बदलाव (Photo_ AI)
'रघुपति राघव राजा राम' भजन में महात्मा गांधी ने किए थे बदलाव (Photo_ AI)

साल था 1930, तारीख 12 मार्च... आधी धोती ओढ़े और आधी लपेटे, इकहरे बदन का एक बुजुर्ग हाथ में लाठी लिए निकल पड़ा था. ये लाठी अहिंसा की थी और यह यात्रा विरोध की. अंग्रेजों से लेकर भारतीय जनमानस के बीच महात्मा माने जा चुके गांधी ने फैसला कर लिया था कि हम भारत के लोग खुद नमक बनाएंगे और इस अंग्रेजी हुकूमत का नमक कानून तोड़ देंगे. गांधी के इस बुलंद फैसले के बाद पूरा देश उनके पीछे चल पड़ा.

Advertisement

साबरमती आश्रम से दांडी तक की ये यात्रा पूरे 327 किमी का सफर था, जिसे दांडी मार्च के नाम से जाना गया. यह मार्च भले ही महात्मा गांधी ने अकेले शुरू किया था, लेकिन धीरे-धीरे एक बड़ा कारवां इससे जुड़ता चला गया.  इस हुजूम को एकजुट करने में जिसकी बड़ी भूमिका थी, वो था एक प्राचीन भजन, महात्मा का सबसे प्रिय भजन... 'रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम', 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान'

आज दांडी मार्च इतिहास हो चुका है. देश आजाद है. नमक ही क्या, बड़े-बड़े उद्योग धंधों में हमारा डंका है. गांधी महात्मा होकर अमर हैं. कभी स्वीकार्य हैं, कभी नहीं, लेकिन भारतीय राजनीति का अहम हिस्सा हैं. इतने अहम कि संसद की ओर मुड़ने से पहले हर राजनेता को इस बुजुर्ग के सामने झुकना ही पड़ता है.

Advertisement

आज विवाद गांधी को लेकर नहीं है, उनके उस रामधुन भजन को लेकर है, जो दांडी यात्रा के समय में एक बड़े हुजूम का समूह गान और विजय गीत बनकर उभरा था. आज बात इसी भजन कि, जिसके बोल, जो हम जानते हैं. 'रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान'

पटना में रामधुन भजन को लेकर विवाद
खबर है कि, पटना के बापू सभागार में अटल जयंती समारोह का आयोजन किया गया था. इस दौरान महात्मा गांधी के प्रिय भजन को लेकर विवाद हो गया है. आयोजन में भोजपुरी गायिका ने जैसे ही 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम' लाइन गायी गई तो कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया. 'ईश्वर अल्लाह' नाम को लेकर कार्यक्रम में गायिका का इतना विरोध हुआ कि उन्हें मंच से माफी मांगनी पड़ी, फिर थोड़ी देर बाद बीजेपी नेता अश्वनी चौबे ने मंच संभाल लिया और वह माइक से 'जय श्री राम' के नारे लगाने लगे.

सवाल है कि महात्मा गांधी के इस भजन पर इतना विवाद क्यों है? असल में इस भजन को लेकर विवाद, इसकी मूलता को लेकर है. तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ये वायरल होता रहा है कि 'रघुपति राघव राजा राम...' गांधी जी का प्रिय भजन जरूर था,  लेकिन उन्होंने मूल भजन के पदों में बदलाव करके इसे अपनाया और गाया था.  हालांकि इस भजन को वास्तव में किसने लिखा था, इसे लेकर प्रामाणिकता के साथ कहीं भी कुछ भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन अलग-अलग दावे जरूर हैं. 

Advertisement

पहला दावा- संत तुलसीदास ने डाकोर में रचा था यह भजन
सबसे महत्वपूर्ण दावा संत तुलसीदास के समकालीन 15वीं-16वीं सदी में उनके साथ जुड़ी एक दंतकथा से जुड़ा हुआ है. कहते हैं कि एक बार संत तुलसी अपने राम की खोज के लिए तीर्थों के भ्रमण पर थे. इस सिलसिले में वह गुजरात पहुंचे थे. उस समय गुजरात के डाकोर में एक प्रसिद्ध विष्णु मंदिर था. यह मंदिर विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के एक और नाम रणछोड़ राय को समर्पित था. यहां विराजित शालिग्राम प्रतिमा के सामने पहुंचे तुलसी उनसे अनुनय-विनय करने लगे कि वह उन्हें श्रीराम के रूप में दर्शन दें.

तुलसी ने इस विनती को ही अपनी जिद बना लिया और रामधुन गाने लगे. इसी रामधुन में उन्होंने यह भजन रचा, जिसमें वह कहते हैं 'शालिग्राम के सुंदर विग्रह, जिस पर तुलसी दल शोभित है और जो गंगाजल से पवित्र किया गया है. जिसका रंग बादलों के श्याम रंग के समान हैं. हे ! पतितों को पावन करने वाले सीता के राम, रघुकुल शिरोमणि स्वामी राजा राम, मुझे दर्शन दो.'

रघुपति राघव राजा राम,
पतित पावन सीता राम
सुंदर विग्रह मेघश्याम
गंगा तुलसी शालिग्राम।

हालांकि इस दंत कथा और तुलसी की रचनाओं के बीच कोई तालमेल नहीं मिलने के कारण इस दावे को पुख्ता नहीं किया जा सकता है. दूसरी वजह ये है कि संत तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस के अलावा, विनय पत्रिका, रामललानहछू, वैराग्यसंदीपनी, रामाज्ञाप्रश्न, जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल, गीतावली, कृष्ण-गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली और कवितावली (बाहुक सहित) लिखी हैं, लेकिन इस भजन का जिक्र नहीं मिलता है. दूसरा, तुलसी दास की लेखन की भाषा या तो अवधी रही या फिर संस्कृत पदावली, इसके अलावा उन्होंने भक्त कवि सूरदास से प्रभावित होकर ब्रज भाषा में सीमित रचनाएं ही की हैं. ऐसे में भाषाई तौर पर भी यह भजन तुलसीकृत रचनाओं के आस-पास नहीं ठहरता है. 

Advertisement

दूसरा दावाः संत प्रवर श्री लक्ष्मणाचार्य द्वारा रचित भजन
रघुपति राघव... भजन को लेकर दूसरा और सबसे अधिक प्रचलित दावा संत प्रवर श्रीलक्ष्मणाचार्य को लेकर है. हालांकि इंटरनेट पर वायरल दावे के मुताबिक, उनके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है कि वह किस समय के हैं और उन्होंने इस भजन की रचना कब की है. यह जरूर मिलता है कि यह भजन उनकी कृति श्री नाम रामायण का ही एक अंश है, जिसे उन्होंने महर्षि वाल्मीकि की संस्कृत में लिखी श्री नाम रामायणम्  से प्रेरित होकर लिखा है.

इस कृति में 24000 श्लोक हैं. संत श्रीलक्ष्मणाचार्य ने इन्हें आसान भाषा में भक्ति पदों के रूप में संकलित किया है. इस संकलन में भी पदों की रचना रामायण के कांड के अनुसार की गई है. 'रघुपति राघव राजा राम' भजन में उत्तर कांड का ब्यौरा है, जब वनवास काट कर अयोध्या लौटे श्रीराम का राज्याभिषेक हो जाता है और वह जन-जन के राजा के रूप में मुकुट धारण करते हैं. कवि ने उनके इसी स्वरूप का वर्णन कर अवतार वाद को बढ़ावा दिया है, जहां उनकी छवि को शालिग्राम के समान, विष्णु के नीलमेघश्याम रंग के समान और गंगाजल-तुलसी पत्र धारण करने वाले जगदीश्वर के समान बताया गया है. 

इसके वास्तविक बोल कुछ इस तरह बताए जाते हैं.

Advertisement

रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
सुंदर विग्रह मेघाश्याम। गंगा तुलसी शालिग्राम।।
भद्रगिरीश्वर सीताराम। भगत-जनप्रिय सीताराम।।
जानकीरमणा सीताराम। जय जय राघव सीताराम।।

विवाद की वजह
जब महात्मा गांधी ने इस भजन को दांडी मार्च का समूह गान बनाया तो कहते हैं कि उन्होंने इसके शब्दों में बदलाव किया और पंथ निरपेक्षता के साथ लोगों की आवाज बनाने की कोशिश की. यहीं से उन्होंने मूल भजन में ईश्वर के साथ 'अल्लाह' शब्द को जोड़ा और फिर यह भजन, जन-जन का गीत बन गया. साबरमती आश्रम से लेकर दिल्ली में होने वाली महात्मा गांधी की प्रार्थना सभाओं में यह भजन गाया जाने लगा और इसकी वैश्विक पहचान गई. 

रामधुन के कई संस्करण हैं, और महात्मा गांधी ने जिस संस्करण का इस्तेमाल किया, उसमें "सार्वभौमिकता" थी. महात्मा गांधी द्वारा मूल भजन को संशोधित करने के पीछे मंशा थी कि, हिंदुओं का ईश्वर और मुसलमानों का अल्लाह एक ही है. इस तरह यह उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एकजुट करने का प्रयास था. 

जिसने राम भजन को धुन में पिरोया
उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत के पुरोधा रहे हैं आचार्य पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर. पलुस्कर ने ही राग मिश्र में इस भजन को पिरोया था और वह इसे नित्य अपनी पूजा में गाया करते थे. जिस समय में भारतीय शास्त्रीय संगीत अपनी चमक खो रहा था, पंडित जी ने इसे फिर से प्रकाशित किया और इसके लिए सबसे अच्छा मंच उन्हें स्वतंत्रता आंदोलनों में ही मिला, जहां वह बैठकों और भाषणों की शुरुआत से पहले संगीत प्रस्तुति दिया करते थे. इसी दौरान उन्होंने कई मौकों पर रामधुन भी गाया था, जो महात्मा गांधी को बेहद प्रिय लगा और वह इसे बार-बार सुनते थे. 

Advertisement

फिल्मों में रामधुन
'रघुपति राघव राजा राम' सबसे प्रसिद्ध भजनों में से एक है. इसे ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर में साल 1942 में आई फिल्म भरत मिलाप (1942) में पहली बार फिल्माया गया था. गीत "उठो उठो हे भारत", में इसके बोल इस्तेमाल किए गए थे. इसके बाद साल 1948 में आई फिल्म श्री राम भक्त हनुमान (1948) में भी इस भजन को शामिल किया गया.

फिल्म जागृति (1954) के गीत "दे दी हमीं आज़ादी" में यह शामिल किया गया. पूरब और पश्चिम (1970), कन्नड़ फिल्म गांधीनगर (1968) में, ब्रिटिश-भारतीय फिल्म गांधी (1982) में, फिल्म गांधी, माई फादर (2007), सत्याग्रह (2013) और लगे रहो मुन्ना भाई  (2006) में यह भजन प्रमुखता से सामने आया है. 

Live TV

Advertisement
Advertisement