आदिवासियों की शरण में राहुल!
गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए आज का दिन हाईप्रोफाइल रैलियों वाला रहा. राहुल गांधी की आज पहली चुनावी रैली थी गुजरात में, जो उन्होंने सूरत में की, इसके बाद राजकोट में भी रैली की. उन्होंने कहा कि बीजेपी आदिवासियों को वनवासी कहती है, जबकि दोनों में अंतर होता है. उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भारतीय जनता पार्टी के लिए वोट मांगने के लिए सुरेन्द्रनगर, नवसारी और जाबुसार पहुंचे. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को मुझे औकात दिखाने वाली बात छोड़ मुद्दों की बात करनी चाहिए.
गुजरात चुनाव के पहले चरण की वोटिंग एक दिसंबर को है, गिनती के 10 दिन बचे हैं, 89 सीटों पर वोट डाले जाने हैं. दूसरे चरण की वोटिंग 5 दिसम्बर को 93 सीटों पर होनी है. पर गुजरात चुनाव को लेकर कांग्रेस कितनी सीरियस है, इन सवालों को बल मिला है क्योंकि राहुल गांधी के देर तक प्रचार अभियान से ग़ायब रहे. उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा को प्राथमिकता दी, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में वो ख़ुद प्रचार अभियान को लीड कर रहे थे. गुजरात में राहुल गांधी की एंट्री जब हुई है, क्या उन्होंने देर कर दी है या अब भी बहुत कुछ बचा हुआ है पार्टी के लिए? इंडिया टुडे टीवी के नेशनल अफेयर्स एडिटर राहुल श्रीवास्तव से 'दिन भर' में सुनने के लिए क्लिक करे.
बैकों के दस लाख करोड़ डूबे!
देश के सभी प्राइवेट और सरकारी बैंको ने पिछले पांच साल में 10 लाख करोड़ के लोन को राइट ऑफ कर दिया यानी की ये रकम बट्टा खातों में चली गई. यानी सरकार ने मान लिया है कि इस पूरी रकम की रिकवरी नहीं होगी. एक अंग्रेज़ी अख़बार को एक आरटीआई के जवाब में सरकार ने ये बताया गया है. इस दौरान सरकारी बैंकों ने सबसे ज्यादा 7 लाख 34 हजार 738 करोड़ रुपयों को राइट ऑफ किया जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया का था. लेकिन सवाल है कि बैंक ऐसा करके हासिल क्या करना चाहते है? दरअसल, बैंको के ऐसा करने से उनकी बैलेंस शीट से NPA कम दिखने लगते है.
एक चीज़ और, ऐसा भी नहीं है कि लोन को राइट ऑफ करने के बाद उसकी रिकवरी के प्रयास बंद कर दिए जाते हैं. जैसे RBI के जवाब में ये ही बताया गया है कि पांच सालों में राइट ऑफ किये गए लोन्स में से 1,32,036 करोड़ रुपये रिकवर भी किए गए है. यानी जितनी रकम राइट ऑफ की गई, उसका 13 प्रतिशत रिकवर भी कर लिया गया. तो अब सवाल है कि ऐसा करने से बैंक्स और इकनोमी की सेहत पर कैसा असर पड़ता है और वो कौन कौन से मेजर सेक्टर्स है जिनके लोन राइट ऑफ किये गए है, NPA की प्रॉब्लम काफी अरसे से चली आ रही है और जिसका आम इंसान पर भी असर पड़ता ही है, किस तरह के बैंकिंग सेक्टर में structural बदलाव करने की जरुरत है और क्या इस तरफ कुछ कदम भी उठाये गए है ताकि बैंक्स एडवांस में ही इस थ्रेट से बच सके, बिज़नेस टुडे मैगज़ीन के मैनेजिंग एडिटर से सुनिए 'दिन भर' में.
BJP की राह पर केजरीवाल!
बीजेपी समर्थकों को अपनी ओर लाने का दावा कर रहे केजरीवाल इस मर्तबा एमसीडी चुनाव जीतने की पुरजोर कोशिश में हैं. कूड़े के पहाड़ को मुद्दा बनाना हो या फिर नगर निगम के नोटिफिकेशन के खिलाफ कोर्ट जाना, हर तरफ से वो बीजेपी को घेरना चाह रहे हैं. और अब पार्टी ने 'केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल का पार्षद' नाम से नया कैंपेन शुरू किया है. इससे पहले जो पार्टी का कैंपेन था, वो था ‘एमसीडी में भी केजरीवाल.’ मतलब चुनाव से दो हफ्ते पहले पार्टी ने अपना नारा बदला है.वहीं बीजेपी की ओर से कल जेपी नड्डा, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, हेमंता बिस्वा शर्मा सहित बड़े नेताओं ने रोड शो किए हैं. इस बार बीजेपी ने 4 पसमांदा मुसलमानों को एमसीडी चुनाव में टिकट दिया है जिसे लेकर खूब चर्चा है.
बीजेपी ने एक स्टिंग जारी कर दावा किया कि आप नेता चुनाव में टिकट देने के लिए 80 लाख रुपए मांग रहे हैं. इसके बाद केजरीवाल, गोपाल राय के बयान आए और उन्होंने वीडियो को फर्जी बताया. पिछले 15 सालों से एमसीडी पर काबिज बीजेपी ने जो स्टिंग जारी किया है, क्या इस तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप आम आदमी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जो अपनी ईमानदार छवि को लेकर बहुत मुखर रही है. ने अपनी स्ट्रैटजी बदली है. पहले जो एमसीडी में भी केजरीवाल कैंपेन था उसे अब केजरीवाल की सरकार केजरीवाल का पार्षद' कर दिया गया है, इसके पीछे की वजह क्या है, 'दिन भर' में आजतक रेडियो रिपोर्टर कुमार कुणाल से सुनने के लिए यहां क्लिक करें.
सैनिटरी नैपकिन से कैंसर का ख़तरा?
इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट में एक अर्ज़ी लगी. दरख़्वास्त थी कि कोर्ट सरकार को डायरेक्शन दे कि छठी से बारहवीं की लड़कियों को मुफ्त में सैनिटरी पैड दिया जा सके. सैनिटरी पैड की पहुंच, खरीदने की शक्ति और इस्तेमाल अब भी दूर-दराज के इलाकों में नहीं है. दूसरी ओर, एक स्टडी में ऐसा पता चला है कि कुछ मशहूर सैनिटरी नैपकिन के ब्रांड, नैपकिन बनाने में कार्सिनोजेनिक मटीरियल्स यानी ऐसे चीज़ें जिनसे कैंसर का ख़तरा हो सकता है, उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. किसकी है ये स्टडी, कैसे इन्होंने ब्रैंड्स को चुना और क्या हैं इसकी बड़ी बातें, इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट से जुड़े सम्राट शर्मा जिन्होंने इस स्टडी को पढ़ा और समझा है, 'दिन भर' में उनसे स्टडी की इज बातों को जानने के लिए यहां क्लिक करें.