भारत अब जब अपनी आजादी की 75वीं सालगिरह मनाने की तैयारी शुरू करने जा रहा है. देश में आजादी की 75वीं वर्षगांठ को अमृत महोत्सव के रूप में मनाने का संकल्प लिया गया है तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक ट्वीट करते हुए कहते हैं कि भारत अब एक लोकतांत्रिक देश नहीं रहा. उनके इस ट्वीट के बाद विवाद शुरू हो गया.
हालांकि जिस वक्त देश के 5 राज्यों में लोकतांत्रिक रूप से चुनाव होने जा रहा है. और उसी चुनाव का हिस्सा बाकी दलों समेत राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस भी है. तब राहुल गांधी को भारत में लोकतंत्र अब बीती बात लगता है इसके पीछे उन्होंने 2 विदेशी एजेंसियों की रिपोर्ट को आधार बनाया है.
दुनियाभर में देशों को लोकतंत्र के पैमाने पर नापने वाली दो विदेशी एजेंसियों स्वीडन की शोध संस्था वी-डेम और अमेरिकी एनजीओ फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के आधार पर राहुल गांधी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत अब एक लोकतांत्रिक देश नहीं रहा. स्वीडन की शोध संस्था वी-डेम (V-Dem) कहती है कि भारत अब चुनावी लोकतंत्र नहीं रहा बल्कि चुनावी तानाशाही में बदल गया है. वी डेम ने 2019 की रिपोर्ट में भारत को लोकतंत्र का दर्जा खोने की कगार पर कहा था, और अब 2020 की रिपोर्ट में इस स्वीडिश इंस्टीट्यूट ने भारत में चुनावी तानाशाही बताई है.
भारत को चुनावी तानाशाही वाला देश बताने के पीछे मीडिया पर अंकुश, मानहानि और राजद्रोह कानूनों का हद से ज्यादा इस्तेमाल को वजह बताई गई है. रिपोर्ट में लिखा गया है कि सेंसरशिप के मामले में पाकिस्तान जितना ही भारत निरंकुश हुआ है.
अब बीजेपी को ये रिपोर्ट विदेशी एजेंसी का भारत विरोधी एजेंडा नजर आती है और कांग्रेस को ये रिपोर्ट सरकार को घेरने का नया हथियार.
राहुल गांधी एक फेलियर हैंः संबित पात्रा
बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि क्या राहुल गांधी के कहने के बाद भारत एक ऑटोक्रेटिक देश हो जाएगा. जब भारत को पाकिस्तान से भी बदतर बोला जाता है तो राहुल गांधी तुरंत इंडोर्स कर देते हैं. ऐसे क्यों होता कि भारत को नीचा दिखाने में राहुल गांधी को इतना आनंद क्यों आता है.
उन्होंने ट्वीट कर कहा कि अगर राहुल गांधी को लगता है कि अब हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश नहीं है और भारत अब पाकिस्तान बन गया है तो वो मुक्त हैं. बोरिया-बिस्तर उठा कर अपने नानी के घर जाए और वहां से चुनाव लड़े. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी एक फेलियर हैं, इसका मतलब ये नहीं कि देश एक फेलियर है.
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि नरेंद्र मोदी को सत्य बोलना चाहिए, अपनी बातों से मुकरना नहीं चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना करना देश द्रोह नहीं है.
पीएम नरेंद्र मोदी पहले कह चुके हैं कि आज हम ही हमको कोसने लग गए. हैरान हो जो शब्द दुनिया पकड़ा देती है हम भी चल देते हैं, दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी - लेकिन हमने युवा पीढ़ी को ये सिखाया नहीं है कि भारत मदर ऑफ डेमोक्रेसी है, ये लोकतंत्र की जननी है. बड़ा लोकतंत्र ही नहीं, ये लोकतंत्र की जननी है, हमें गर्व से ये बात कहनी होगी.
इसी तरह पिछले हफ्ते अमेरिकी एजेंसी फ्रीडम हाउस की तरफ से जारी रिपोर्ट में भी भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाया जाता है, जिसमें भारत ऐसा देश बताया गया जहां लोगों के लिए आजादी बहुत कम है. राजनीतिक स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार समेत 25 पैमाने पर भारत को कम रेटिंग दी गई.
अमृत उत्सव की शुरुआत
इस रिपोर्ट के मुताबिक, 210 देशों के ग्लोबल फ्रीडम इंडेक्स में भारत पांच पायदान नीचे आया है और रैंक 83 से 88 हो गई है. भारत को राजनीतिक अधिकारों की स्वतंत्रता के लिए इस एनजीओ ने 40 में से 34 अंक दिए हैं. नागरिकों के स्वतंत्र अधिकारों के मामले में 60 मे से 33 अंक दिए हैं.
इन्हीं रिपोर्ट पर विवाद है और इस पर राजनीति इसलिए ज्यादा क्योंकि भारत के 5 राज्यों में चुनाव हो रहे हैं और देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ का महोत्सव मनाना शुरू कर रहा है. गुजरात के अहमदाबाद से दांडी यात्रा को ही हरी झंडी देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को आजादी के 75वें साल के अमृत उत्सव की शुरुआत करने जा रहे हैं.
तब विदेश की दो एजेंसियों के हवाले से आई रिपोर्ट के आधार पर राहुल गांधी सरकार को घेरते हैं क्योंकि स्वीडन की एजेंसी भारत को चुनावी तानाशाही में बदलने की बात कहती है और अमेरिका का फ्रीडम हाउस एनजीओ 210 देशों के बीच भारत को स्वतंत्र देश से आंशिक रूप से स्वतंत्र देश की श्रेणी में डालता है.
तो भारत के जिन लोकतांत्रिक स्तंभों- संस्थानों की स्वायत्तता की बात एक तरफ कही जाती है, तब विदेश की एजेंसी की रिपोर्ट पर बीजेपी सवाल उठाती है. और वजह के पीछे दलील ये दी जाती है कि भारत को 100 में 67 नंबर देने वाला अमेरिकी एनजीओ फ्रीडम हाउस अमेरिका को ही 100 में 83 अंक देता है. भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र बताने वाला फ्रीडम हाउस अमेरिका को नागरिकों को पूरी आजादी वाला देश बताता है.
एक तरह की फिक्सिंग नहीं!
तो सवाल पूछा जा रहा है कि जिस अमेरिका के कैपिटल हिल में राजनीतिक हिंसा होती है. जहां पूरी चुनावी प्रक्रिया को राष्ट्रपति रहते डोनाल्ड ट्रंप ने सवालों के बड़े कठघरे में खड़ा कर दिया. ऐसी एजेंसी की अमेरिका को क्लीनचिट और भारत के लोकतंत्र पर सवाल क्या एक तरह की फिक्सिंग नहीं है, जिसमें बीजेपी अब राहुल गांधी के भारतीय लोकतंत्र पर उठाई गई राय को भी हिस्सा बताती है.
बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा कहते हैं कि पश्चिमी देशों के नवसाम्राज्यवादी ताकतों जो भारत की उभरती हुई ताकत, प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता को हजम नहीं कर पा रहे हैं उसके लिए भारत में एक एजेंट के तौर पर राहुल गांधी काम कर रहे हैं.
भारत के लोकतंत्र पर सवाल अगर एक दल उठाता है तो दूसरा इमरजेंसी की याद दिलाता है. विपक्ष विदेशी एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर लोकतंत्र खतरे में बताते हैं तो सत्ता पक्ष भारत का अधूरा नक्शा दिखाने वाली विदेशी एजेंसियों की रिपोर्ट को देशविरोधी अंतरराष्ट्रीय साजिश बताते हैं. इन सबके बीच में खड़ा है भारत के लोकतंत्र की असली ताकत वाला आम आदमी, जिसकी डेमोक्रेसी अभी राजनीति में फंसी है.