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'राम रहीम की आजादी चुनाव के लिए खतरा...', रामचंद्र छत्रपति के बेटे ने चुनाव आयोग को लिखी चिट्ठी

अंशुल छत्रपति ने एक चिट्ठी में चुनाव आयोग से गुजारिश की है कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम की पैरोल को रद्द किया जाए. उन्होंने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों और निष्पक्ष चुनावों के लिए खतरा बताया. उनका आरोप है कि राम रहीम पिछले कई वर्षों से पैरोल का लाभ उठाता रहा है, जिससे चुनाव प्रक्रिया प्रभावित होती है.

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डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम
डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम

मशहूर दिवंगत पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम सिंह के पौरोल पर आपत्ति जाहिर की है. हरियाणा के चुनावी मौसम के बीच बीते दिन आयोग की मंजूरी के बाद गुरमीत सिंह को 11वीं बार पैरोल मिली है. यह हैरानी की बात इसलिए भी है क्योंकि राज्य में उसका बड़ा फॉलोअर बेस है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे एकपक्षीय मतदान करते हैं.

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अंशुल छत्रपति ने राम रहीम को मिलने वाली पैरोल को चुनाव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए खतरा बताया. पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में राम रहीम को साल 2002 में दोषी ठहराया गया था और सीबीआई की विशेष अदालत ने 2019 में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इस मामले के अलावा, 2017 में अपने साध्वियों के साथ बलात्कार के आरोप में भी राम रहीम को दस साल की सजा सुनाई गई थी.

यह भी पढ़ें: सजा है या पैरोल? राम रहीम को 4 साल में 11 बार कैसे मिली 'आजादी', जानिए हर बार क्यों चुनाव से जुड़ जाता है कनेक्शन

राम रहीम को जेल से बाहर आने का मिला मौका

कल तक वह रोहतक के सुनारिया जेल में बंद था लेकिन अब उसे पैरोल मिल गया है और वह जेल से बाहर आने वाला है. 13 अगस्त को मिली फरलो के बाद वह 2 सितंबर को ही वापस जेल पहुंचा था लेकिन इसके महज कुछ ही दिनों में फिर से आजादी मिल गई.

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अंशुल छत्रपति ने अपनी चिट्ठी में लिखा है, "राम रहीम अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति हैं और विगत दो दशकों से उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग करके कानून को अपने तरीके से मोड़ा है. 25 अगस्त 2017 को सजा सुनाए जाने के समय भी उन्होंने अपने श्रद्धालुओं का कानून व्यवस्था का जनाजा निकाला और पूरे प्रदेश में उपद्रव फैलाया. इस मंजर को सारा देश भली भांति जानता है. ऐसे व्यक्ति को बार-बार पैरोल देना लोकतांत्रिक मूल्यों और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के लिए खतरा है."

राम रहीम को कब-कब मिली आजादी?

पत्रकार के बेटे अंशुल ने कहा, "पहली बार पंजाब विधानसभा चुनाव से पूर्व फरवरी 2022 में 21 दिन की फरलो मिली. फिर हरियाणा नगर निकाय चुनाव से पहले जून 2022 में 30 दिन की पैरोल मिली. उसके बाद अक्टूबर 2022 में ही फिर हरियाणा की आदमपुर विधानसभा उपचुनाव में 40 दिन की पैरोल दी गई. हरियाणा पंचायत चुनाव से पहले जुलाई 2023 में 30 दिन की पैरोल मिली. फिर राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले नवंबर 2023 में 29 दिन की पैरोल मिली.

उन्होंने अपनी चिट्ठी में आगे बताया, "पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने एक जनहित याचिका लगाकर चुनाव पूर्व बार-बार दी जा रही पैरोल पर सवाल खड़े किए. इस याचिका का निपटारा करते हुए माननीय न्यायालय ने हरियाणा सरकार को निर्देश दिए थे कि गुरमीत राम रहीम के मामले में बिना मनमानी और पक्षपात के निर्णय लिए जाएं. इसके बावजूद हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पूर्व अगस्त 2024 में फिर गुरमीत राम रहीम को 21 दिन की फरलो दी गयी.

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चुनाव में होता है वोटों का सौदा

अंशुल ने कहा, "डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने अपनी चमड़ी बचाने के लिए राजनीतिक दलों का भरपूर फायदा उठाया. इसी के चलते गुरमीत राम रहीम ने अपने डेरा की एक राजनीतिक विंग भी तैयार की. उक्त राजनीतिक विंग के जरिये डेरा सच्चा सौदा व उसका मुखिया पिछले दो दशकों से अपने श्रद्धालुओं के वोटों का सौदा करता रहा है."

यह भी पढ़ें: राम रहीम की पैरोल को सशर्त मंजूरी, EC ने हरियाणा जाने और चुनाव प्रचार करने पर लगाई रोक

अंशुल ने यह भी दावा किया कि पिछले दो सालों में राम रहीम को दस बार पैरोल या फरलो दी गई है, जिसमें से छह बार विभिन्न चुनावों के ऐन पहले दी गई थी. उन्होंने बताया, "चुनावों से पहले राम रहीम को पैरोल देकर वह वोटों को प्रभावित करने की कोशिश करता है. इससे निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से चुनाव कराना मुश्किल हो जाता है."

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, राम रहीम ने हाल ही में इमरजेंसी पैरोल के लिए आवेदन किया था, जिसे चुनाव आयोग की मंजूरी के बाद हरियाणा सरकार के पास भेजा गया है. अंशुल छत्रपति ने अपने पत्र में चुनाव आयोग से अनुरोध किया कि वे हरियाणा सरकार को निर्देश दें कि राम रहीम की पैरोल को रद्द किया जाए और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए डेरा सच्चा सौदा की राजनीतिक गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाए.

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