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काशी कॉरिडोर में लगेगी रानी अहिल्याबाई की प्रतिमा, लिखा जाएगा उनका योगदान

काशी विश्वनाथ धाम नए रूप में सजने लगा है. 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को यह सौगात देने वाले हैं. पर ये निर्माण बाबा विश्वनाथ के प्रांगण के उस पुनर्निर्माण के करीब 250 साल बाद हो रहा है जब इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण कराया था.

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Rani Ahilyabai
Rani Ahilyabai
स्टोरी हाइलाइट्स
  • लिखा जाएगा अहिल्याबाई का योगदान
  • काशी कॉरिडोर में रानी अहिल्याबाई की प्रतिमा

काशी विश्वनाथ धाम नए रूप में सजने लगा है. 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को यह सौगात देने वाले हैं. पर ये निर्माण बाबा विश्वनाथ के प्रांगण के उस पुनर्निर्माण के करीब 250 साल बाद हो रहा है, जब इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण कराया था. रानी अहिल्याबाई के योगदान को याद करते हुए उनकी एक मूर्ति श्री काशी विश्वनाथ धाम के प्रांगण में लगायी जाएगी. इसके साथ ही उनके योगदान को भी वहां की दीवार पर दर्ज किया जाएगा.

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रानी अहिल्याबाई का काशी विश्वनाथ से है अटूट संबंध

इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर ने यूं तो देशभर में अलग-अलग स्थानों पर कई मंदिरों, घाटों का निर्माण कराया है पर काशी के इतिहास में उनका स्थान अमिट है. रानी के योगदान के बिना श्री विश्वनाथ धाम का इतिहास पूरा नहीं होता. यही वजह है कि रानी अहिल्याबाई की प्रतिमा विश्वनाथ धाम में लगाने का फ़ैसला किया गया है. इतिहास बताता है कि मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर 1669 में बाबा के मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश की गई थी. मंदिर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका था, पर इसके बाद विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण के पुनर्निर्माण का श्रेय इंदौर के होलकर घराने की रानी अहिल्याबाई को जाता है. रानी अहिल्याबाई ने न सिर्फ काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया बल्कि बाबा की प्राण प्रतिष्ठा भी पूरे विधि विधान से शास्त्र सम्मत तरीके से करायी. 

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काशी के मर्मज्ञ प्रोफेसर राना पीवी सिंह कहते हैं, 'रानी का योगदान अतुलनीय है. रानी अहिल्याबाई ने शास्त्र सम्मत तरीक़े से शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा करवाई. एकादश रुद्र के प्रतीक स्वरूप 11 शास्त्रीय आचार्यों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूजा की गई. रानी ने शिवरात्रि से ही इसका संकल्प कराया और शिवरात्रि पर ही ये खोला गया.  इससे रानी अहिल्याबाई के विजन और सनातन संस्कृति के प्रति निष्ठा का पता चलता है. काशी से अगर विश्वनाथ को अलग करें तो क्या बचेगा? कुछ नहीं. मंदिर जब क्षतिग्रस्त किया गया तब रानी अहिल्याबाई मानो अन्नपूर्णा के आशीर्वाद स्वरूप वहां पहुंचीं और मंदिर का पुनर्निर्माण किया.'

सम्पूर्ण संसार के स्वामी महादेव के धाम का निर्माण करके रानी अहिल्याबाई ने महादेव के भक्तों के लिए सबसे बड़ी सौगत दे दी. सनातन संस्कृति की धर्म ध्वजा को थामने वाले काशी के लिए सैकड़ों वर्षों तक ये निर्माण मील का पत्थर साबित हुआ. आज उसी निर्माण के 250 साल बाद काशी धाम का पुनर्निर्माण हो रहा है. उस समय के इतिहास के पृष्ठों पर नज़र डालें तो रानी अहिल्याबाई के योगदान को और अच्छी तरह समझा का सकता है. ख़ास बात ये है कि सनातन संस्कृति को बचाने के लिए उसी तरह से प्राण प्रतिष्ठा की गई जो शास्त्र सम्मत है. काशी कॉरिडोर के निर्माण में पौराणिकता संबंधी कार्यों से जुड़े काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफ़ेसर राम नारायण द्विवेदी का कहना है कि आचार्य नारायण भट्ट के निर्देशन में 1777-1780 में बाबा के वर्तमान स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा की गई. यही नहीं रानी अहिल्याबाई का काशी में योगदान घाटों के निर्माण को लेकर भी है. आज भी रानी अहिल्याबाई के नाम से घाट बना है. काशी खंड में वर्णित विश्वेश्वर के धाम को पुनर्निर्माण करने में रानी अहिल्याबाई का योगदान अतुलनीय है.

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काशी विद्वत परिषद के प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी का कहना है, 'काशी कोर्रिडोर का निर्माण रानी के पुनर्निर्माण के बाद हो रहा है. इससे बाबा के धाम का भव्यतम और दिव्यतम रूप लोगों के सामने आएगा. धाम में रानी अहिल्याबाई की प्रतिमा के साथ एक मंदिर बनाकर उसकी दीवारों पर विश्वनाथ धाम के लिए उनके योगदान को भी दर्ज किया जाएगा. देश के लोगों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ काशी और आस-पास के क्षेत्रों के लिए धार्मिक पर्यटन और व्यापारिक लाभ के लिए भी महत्वपूर्ण होगा. इससे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा.'

कौन थीं रानी अहिल्याबाई

रानी अहिल्याबाई होलकर (1725-1795) का विवाह 8 वर्ष की उम्र में होलकर साम्राज्य के उत्तराधिकारी खांडेराव होलकर से हुआ. 1754 में कुमहर के युद्ध में खांडेराव मारे गए. इसके बाद धर्म परायण अहिल्याबाई ने खुद को हिंदू धर्म और अन्य रचनात्मक कार्यों से जोड़ा. 12 साल बाद खांडेराव के पिता और राज्य सम्भालने वाले मल्हार राव होलकर का भी निधन हो गया. इसके बाद रानी ने राज्य सम्भालते हुए अपने राज्य को आक्रमणकारियों से बचाने से बचाने के लिए युद्ध किए.

अहिल्याबाई का मुख्य योगदान देश भर में मंदिरों, घाटों,धर्मशालाओं और धार्मिक स्थलों का निर्माण है. इतिहास में रानी अहिल्याबाई का नाम काशी में विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए दर्ज़ है. मुग़ल शासक औरंगज़ेब के आदेश के बाद 1669 में मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था. इस आक्रमण के बाद बाबा के मंदिर और गर्भगृह का निर्माण ही नहीं करवाया बल्कि अहिल्याबाई ने शास्त्रसम्मत तरीक़े से 11 शास्त्रीय आचार्यों से पूजा करवाकर प्राण प्रतिष्ठा भी करवायी. तब से आज तक महादेव के भक्तों में रानी द्वारा निर्मित मंदिर और विश्वनाथ के उसी स्वरूप की मान्यता है.

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इसकी भव्यता को बढ़ाते हुए राजा रणजीत सिंह ने 1835 में गर्भगृह के शिखर पर स्वर्ण चढ़ाया. इतिहासकार और काशी के मर्मज्ञ प्रोफ़ेसर राणा पीवी सिंह कहते हैं,  'स्त्री शक्ति की प्रतीक रानी के उस योगदान की याद किए बिना श्री काशी विश्वनाथ धाम की भव्यता को समझना मुश्किल है. आम तौर ओर धर्म के क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व माना जाता है जबकि इसे निभाती ज़्यादातर महिलाएं हैं, पर अहिल्याबाई का श्री विश्वनाथ धाम का निर्माण और काशी के घाटों का जीर्णोद्धार धर्म संस्कृति के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान है.'

 

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