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रतन टाटा...एक ऐसी शख्सियत जो अखबार हॉकर से भी करते थे बातचीत, जरूरत पड़ने पर बने थे मसीहा

सिंह ने वर्ष 2001 में टाटा के घर में अखबार देना शुरू किया था. उस वक्त टाटा कोलाबा की बख्तावर इमारत के एक अपार्टमेंट में रहते थे. बाद में वह इसी इमारत के बगल में एक निजी बंगले ‘हलकाई’ में रहने लगे. सिंह की आंखों के सामने आज भी वह दृश्य घूमता है, जब टाटा सुबह अपने बंगले के गार्डन में बैठकर मुस्कराते चेहरे के साथ उसका दिया अखबार पढ़ते थे.

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रतन टाटा
रतन टाटा

दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में शामिल रतन टाटा के निधन ने उन्हें अखबार देने वाले हॉकर हरिकेष सिंह को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उसके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी कोविड-19 है या टाटा का इस दुनिया से रूखसत होना. हरिकेष (39) को बुधवार तक लगता था कि वैश्विक महामारी कोविड-19 उसके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी थी. दरअसल, संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान उसका अखबार वितरण का कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुआ था और लंबे समय तक अनिश्चितता का माहौल बना हुआ था.

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14 अखबार पढ़ते थे रतन टाटा
हालांकि, अब कम से कम 14 अखबार लेने वाले अपने पसंदीदा ग्राहक (रतन टाटा) के निधन ने सिंह को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उसके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी क्या है – कोविड-19 महामारी या रतन टाटा का निधन. दो दशक से अधिक समय तक टाटा के घर में अखबार देने वाले सिंह ने कहा, 'वह एक बहुत अच्छे इंसान थे. वह गरीबों के मसीहा थे.'

अखबार विक्रेता ने बताया किस्सा
सिंह ने वर्ष 2001 में टाटा के घर में अखबार देना शुरू किया था. उस वक्त टाटा कोलाबा की बख्तावर इमारत के एक अपार्टमेंट में रहते थे. बाद में वह इसी इमारत के बगल में एक निजी बंगले ‘हलकाई’ में रहने लगे. सिंह की आंखों के सामने आज भी वह दृश्य घूमता है, जब टाटा सुबह अपने बंगले के गार्डन में बैठकर मुस्कराते चेहरे के साथ उसका दिया अखबार पढ़ते थे.

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रिश्तेदार बीमार हुआ तो पांच लाख की मदद की
उसका कहना है कि टाटा हाथ हिलाकर उसका अभिवादन स्वीकार करते और कई बार उसका हालचाल भी पूछते. उसके मुताबिक, संक्षिप्त बातचीत के वे पल उसके जेहन में मौजूद है. सिंह ने बताया कि कुछ साल पहले उसके एक रिश्तेदार के कैंसर से पीड़ित होने की बात सामने आई, जिसके बाद रतन टाटा ने टाटा मेमोरियल अस्पताल को पत्र लिखकर उसका त्वरित उपचार सुनिश्चित करने को कहा और उसे पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद भी दी.

सिंह के अनुसार, हालांकि महामारी के दौरान रतन टाटा की अखबार पढ़ने की आदत भी बदल गई. उसने बताया कि टाटा ने उससे अखबार लेना बंद कर दिया और सिर्फ दो समाचार पत्र मंगवाने लगे, जो टाटा समूह द्वारा संचालित ताज महल होटल से कागज के लिफाफे में रखकर आते थे.

गुरुवार को सिंह ने अखबार बांटने का काम जल्दी निपटा लिया और टाटा को अंतिम विदाई देने के लिए कोलाबा बाइलेन पहुंच गए, जहां हजारों लोग पहले से मौजूद थे. इनमें हुसैन शेख (57) भी अंधेरी से वहां पहुंचा था.

मर्सिडीज बेंज की करता था सफाई
हुसैन अक्सर टाटा की पसंदीदा मर्सिडीज बेंज की सफाई करता था. जब उसकी बेटी की शादी हुई, तब टाटा ने घर के एक स्टाफ सदस्य के जरिये उसे 50,000 रुपये भेजवाए. हुसैन 1993 से पास के प्रेसिडेंट हाउस में काम करता था, जहां उसे टाटा परिवार के सदस्यों के लिए काम करने का भी मौका मिला. वह रतन टाटा से आखिरी बार 15 साल पहले मिला था.

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हुसैन ने कहा कि भीड़ में शामिल हर शख्स का रतन टाटा के साथ कोई न कोई व्यक्तिगत जुड़ाव रहा है. उसने कहा कि यही वजह है कि कार्य दिवस होने के बावजूद दूर-दूर से हजारों लोग उन्हें अंतिम विदाई देने मुंबई आए हैं.

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