बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह को दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. राउज एवेन्यू कोर्ट ने दिल्ली में राजस्थान के व्यक्ति से मारपीट और उगाही के आरोपों से आनंद मोहन को बरी कर दिया है. ये मामला 2007 में दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके के राजस्थान गेस्ट हाउस में हुई वारदात से जुड़ा है.
दरअसल, राजस्थान निवासी राजेन्द्र सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि आनंद मोहन ने अन्य लोगों के साथ गेस्ट हाउस में उनसे मारपीट कर जान से मारने की धमकी दी. दिल्ली की चाणक्यपुरी पुलिस ने इस मामले में IPC की धारा 323, 506, 387, 34 के तहत FIR दर्ज की थी. ट्रायल के दौरान शिकायत कर्ता राजेंद्र सिंह की मौत हो गई और उनके पिता शंभू सिंह पुलिस को दिए अपने पिछले दिए बयान से अदालत में मुकर गए.
सुनवाई के दौरान आनंद मोहन के वकील ने दलील दी कि पुलिस के पास कोई पुख्ता सबूत या गवाह इस केस में नहीं है. राजनैतिक द्वेष की भावना से उनको फंसाने के लिए इस केस में उन पर झूठे आरोप लगाए गए हैं. फैसले के वक्त आनंद मोहन राऊज एवेन्यू कोर्ट में मौजूद रहे.
कौन हैं आनंद मोहन सिंह
आनंद मोहन सिंह बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं. उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. राजनीति से उनका परिचय 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान हुआ, जिसके कारण उन्होंने अपना कॉलेज तक छोड़ दिया. इमरजेंसी के दौरान उन्हें 2 साल जेल में भी रहना पड़ा. कहा जाता है कि आनंद मोहन सिंह ने 17 साल की उम्र में ही अपना सियासी करियर शुरू कर दिया था.
1980 में उन्होंने समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की, जो निचली जातियों के उत्थान का मुकाबला करने के लिए बनाई गई थी. इसके बाद से तो उनका नाम अपराधियों में शुमार हो गया और वक्त-वक्त पर उनकी गिरफ्तारी पर इनाम घोषित होने लगे. उस दौरान उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए. साल 1983 में आनंद मोहन को 3 महीने की कैद हुई थी.
दलित IAS की हत्या में हुई सजा
यूं तो आनंद मोहन सिंह पर कई मामलों में आरोप लगे. अधिकतर मामले या तो हटा दिए गए या वो बरी हो गए. लेकिन 1994 में एक मामला ऐसा आया, जिसने न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया. 5 दिसंबर 1994 को गोपालगंज के दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की भीड़ ने पिटाई की और गोली मारकर हत्या कर दी. इस भीड़ को आनंद मोहन ने उकसाया था. इस मामले में आनंद, उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया था. साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और फांसी की सजा सुनाई. आजाद भारत में यह पहला मामला था, जिसमें एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी. हालांकि 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. साल 2012 में सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.