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तेलंगाना में बड़े-बड़े सूरमाओं को पीछे छोड़, रेवंत रेड्डी कैसे बने कांग्रेस के लिए सीएम पद की पहली पसंद?

मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने के लिए रेवंत रेड्डी के सामने खड़े प्रमुख दावेदारों में कांग्रेस प्रदेश समिति के पूर्व प्रमुख कुमार रेड्डी और कांग्रेस विधायी दल के नेता भट्टी विक्रमार्क थे. दोनों का दावा था कि उनके जिलों में पार्टी के पक्ष में बेहतरीन नतीजे आए हैं.

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राहुल और प्रियंका गांधी के साथ रेवंत रेड्डी
राहुल और प्रियंका गांधी के साथ रेवंत रेड्डी

कांग्रेस ने तेलंगाना में रेवंत रेड्डी को राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में चुना है. मुख्यमंत्री पद के लिए उन्हें पार्टी में कई सीनियर नेताओं पर तरजीह दी गई है. लेकिन सूत्रों के हवाले से यह बात जगजाहिर थी कि पार्टी आलाकमान ने राज्य में कांग्रेस की सरकार आने पर रेवंत को मुख्यमंत्री बनाए जाने का वादा किया था. 

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तेलंगाना में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद आमजन में यह सुगबुगाहट थी कि रेवंत को सीएम बनाया जा सकता है. मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने के लिए रेवंत रेड्डी के सामने खड़े प्रमुख दावेदारों में कांग्रेस प्रदेश समिति के पूर्व प्रमुख कुमार रेड्डी और कांग्रेस विधायी दल के नेता भट्टी विक्रमार्क थे. दोनों का दावा था कि उनके जिलों में पार्टी के पक्ष में बेहतरीन नतीजे आए हैं. भट्टी के निर्वाचन क्षेत्र खम्माम की 10 में से नौ सीटों पर कांग्रेस जीती है जबकि उत्तम रेड्डी के जिले नालगोंडा के 12 में से 11 सीटों पर कांग्रेस विजयी रही. 

इसके विपरीत इन्होंने यह भी तर्क दिया कि कामरेड्डी निर्वाचन क्षेत्र में रेवंत रेड्डी तीसरे स्थान पर आए हैं और मलकाजगिरी लोकसभा क्षेत्र से एक भी सीट जिताने में असफल रहे. 

भट्टी विक्रमार्क ने कहा कि वाईएस राजशेखर रेड्डी ने 2003 में 1500 किलोमीटर लंबी पदयात्रा की थी , जिसने तेलुगू देशम पार्टी को हराने में भू्मिका निभाई थी. भट्टी ने कहा कि वह खुद उत्तरी तेलंगाना जिलों में 1365 किलोमीटर की यात्रा की थी. इसके अलावा वह पार्टी का प्रमुख दलित चेहरा है और चुनावों में दलित समुदाय ने कांग्रेस का समर्थन किया है.

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दोनों वरिष्ठ नेताओं का तर्क है कि रेवंत का दो दशकों का राजनीतिक करियर पूरी तरह से विपक्ष में बैठने का रहा है. उन्हें मंत्री पद का कोई अनुभव भी नहीं है. इसके विरोध में यह कहा जा सकता है कि राजीव गांधी 1984 में प्रधानमंत्री बने थे लंकिन इससे पहले उन्हें मंत्री पद का कोई अनुभव नहीं था. ठीक इसी तरह नरेंद्र मोदी 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन उन्हें सरकार में रहकर काम करने का कोई अनुभव नहीं था. 

रेवंत रेड्डी के खिलाफ एक तर्क यह दिया जा रहा था कि वह पार्टी में अभी नए हैं क्योंकि वह  2017 में ही पार्टी से जुड़ गए थे. इस वजह से उन्हें पार्टी में सीएम पद के लिए वरिष्ठ नेताओं की तुलना में वरीयता नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन रेवंत की सीएम दावेदारी के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क 2015 का वोट के बदले कैश मामले का दिया गया. 2015 में वह एक निर्वाचित विधायक को एमएलसी चुनावों में तेलुगू देसम उम्मीदवार के पक्ष में वोट देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत देते हुए कैमरे में कैद हो गए थे. 

कांग्रेस राजस्थान और एमपी की गलती नहीं चाहती दोहराना

लेकिन इनमें से किसी भी तर्क का मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी पर असर नहीं पड़ा. बल्कि तेलंगाना की राजनीति में पीढ़ीगत बदलाव को प्रभावित करने का यह बेहतरीन मौका था. पार्टी इस बार वही गलती दोहराना नहीं चाहती थी, जो उन्होंने 2018 में राजस्थान और मध्य प्रदेश में की थी, जहां उन्होंने सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया के दावों को नजरअंदाज कर दिया था.

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हालांकि, उत्तम रेड्डी 2018 में पार्टी के असफल कैंपेन के अगुवा थे और जहां तक भट्टी का सवाल है,  खम्माम की अंदरूनी राजनीति उन पर भारी पड़ी. इसके अलावा रेणुका चौधरी, पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी, तुमाला नागेश्वर राव जैसे दिग्गज सीएम पद के लिए उन्हें तरजीह नहीं देना चाहते थे.

रेवंत रेड्डी ने किया था धुंआधार प्रचार

इस तरह रेवंत रेड्डी एकमात्र नेता थे, जिन्होंने पूरे तेलंगाना में घूम-घूमकर प्रचार किया जबकि बाकी लोग अपने-अपने जिलों तक ही सीमित रहे. रेवंत ने चंद्रशेखर राव की तरह साहस और प्रतिबद्धता भी जताई, जो चुनाव प्रचार के दौरान देखने को मिली.

ऐसा कहा जा रहा है कि कांग्रेस दो या तीन दावेदारों को डिप्टी सीएम बना सकती है और इसके लिए भाटी विक्रमार्क, कोंडा सुरेखे और शब्बीर अली का नाम चर्चा में है. हालांकि, शब्बीर इस बार चुनाव हार गए हैं लेकिन वह राज्य में कांग्रेस के सबसे प्रमुख मुस्लिम चेहरे हैं.

केसी वेणुगोपालने जब मुख्यमंत्री के लिए रेवंत रेड्डी के नाम का ऐलान किया तो उत्तम कुमार रेड्डी और भट्टी विक्रमार्क दोनों ही नाखुश दिखाई दिए. लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को इस बात से राहत जरूर मिलेगी कि अंसतोष के बावजूद तेलंगाना में पार्टी का कोई भी वरिष्ठ नेता ना तो बागी होगा और ना ही पार्टी के लिए कोई नई मुसीबत खड़ी करेगा.

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