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ममता बनर्जी को दक्षिणपंथी संगठन ने भेजा लीगल नोटिस, TMC ने बताया राजनीतिक साजिश, जानें पूरा मामला

संगठन का आरोप है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जानबूझकर और सुनियोजित तरीके से सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हमला बोला है, जो न्यायालय की अवमानना के दायरे में आता है. नोटिस में कहा गया है कि मुख्यमंत्री का यह बयान "न्यायिक प्रशासन में सीधा हस्तक्षेप" है और इससे न्यायिक प्रक्रिया का अपमान हुआ है.

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बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फाइल फोटो)
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फाइल फोटो)

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर की गई टिप्पणी को लेकर एक दक्षिणपंथी संगठन 'आत्मदीप' ने लीगल नोटिस भेजा है. यह फैसला राज्य में 26,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षण स्टाफ की नियुक्तियों को रद्द करने से जुड़ा था.

संगठन का आरोप है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जानबूझकर और सुनियोजित तरीके से सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हमला बोला है, जो न्यायालय की अवमानना के दायरे में आता है. नोटिस में कहा गया है कि मुख्यमंत्री का यह बयान "न्यायिक प्रशासन में सीधा हस्तक्षेप" है और इससे न्यायिक प्रक्रिया का अपमान हुआ है.

नोटिस में यह भी उल्लेख है कि भारत और आप (मुख्यमंत्री) कानून से बंधे होने के बावजूद इस निर्णय को लागू न करने की बात कहती हैं, जो स्पष्ट रूप से जानबूझकर और अवमाननापूर्ण कृत्य है. संगठन ने ममता बनर्जी से बिना शर्त माफी की मांग की है, अन्यथा आगे कानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी दी है.

TMC ने किया पलटवार

इस पूरे मामले पर तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुन्हाल घोष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के कारण करीब 26,000 शिक्षक और गैर-शिक्षक अपनी नौकरी खो चुके हैं. मुख्यमंत्री इस संकट को हल करने की कोशिश कर रही हैं. ऐसे में इस तरह की अवमानना नोटिस भेजना पूरी तरह राजनीतिक साजिश है. इसमें जांच होनी चाहिए. जब मुख्यमंत्री समाधान के लिए कदम उठा रही हैं, तभी यह कानूनी पेच बढ़ाने की कोशिश की जा रही है.”

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उन्होंने यह भी कहा कि वामपंथी दल और बीजेपी नहीं चाहते कि यह समस्या सुलझे, इसलिए जानबूझकर ऐसे लीगल नोटिस भेजे जा रहे हैं ताकि न्यायिक उलझन पैदा हो. ये सारी साजिशें इसलिए रची जा रही हैं ताकि मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके और चुनाव में नुकसान हो. माननीय मुख्यमंत्री का न्यायपालिका और न्यायाधीशों के प्रति पूरा सम्मान है. लेकिन अगर किसी निर्णय का एक हिस्सा लाखों लोगों को प्रभावित करता है और उन्हें पीड़ा देता है, तो उसे लेकर पुनर्विचार की मांग करना कोई अवमानना नहीं होती.

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