राजधानी दिल्ली में कुछ दिन पहले तापमान 43 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया था. उस वक्त मौसम विभाग ने हीट वेव की चेतावनी जारी कर दी थी. ये हाल उस वक्त था जब देश में मॉनसून का इंतजार हो रहा था. जून-जुलाई के महीने में ऐसी गर्मी पड़ेगी, इस बारे में शायद किसी ने सोचा नहीं होगा. लेकिन सच तो ये है कि धरती तेजी से गर्म हो रही है और इससे ज्यादा गर्मी देखने को मिलने का डर है.
पिछले साल जून में मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेस (Ministry of Earth Sciences) की क्लाइमेट चेंज (Climate Change) पर एक रिपोर्ट आई थी. क्लाइमेट चेंज पर ये केंद्र सरकार की पहली रिपोर्ट थी. इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस सदी के आखिर तक यानी 2100 तक देश का तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. इतना ही नहीं, इस सदी के आखिर तक गर्म दिन 55% और गर्म रातें 70% तक बढ़ जाएंगी. वहीं, अगर दुनिया की बात करें तो वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (World Meteorological Organisation) ने अनुमान लगाया है कि इस सदी के आखिर तक धरती का तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा जाएगा. इसका नतीजा ये होगा कि दुनिया के कई इलाके इंसानों के रहने लायक भी नहीं रहेंगे.
गर्मी की वजह से हर साल हजारों मौतें
क्लाइमेट चेंज की वजह से आजकल सर्दियों के दिन कम होने लगे हैं और गर्मी के दिन बढ़ने लगे हैं. अब गर्मी इस कदर बढ़ रही है कि देश के कई इलाकों में तापमान 50 डिग्री के पार पहुंच जाता है. इस साल और पिछले साल तो कोरोना की वजह से लॉकडाउन रहा, लेकिन 2019 में गर्मी की वजह से कई राज्यों में स्कूल-कॉलेज बंद करने पड़ गए थे.
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लिमेंटेशन (Ministry of Statistics & Programme Implementation) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 से 2019 के 5 सालों के बीच लू (Heat Strokes) की वजह से देश में 6,537 लोगों की मौत हो गई थी. मौतों के लिहाज से 2015 सबसे बुरा साल रहा है. उस साल देशभर में करीब दो हजार मौतें हुई थीं.
5 साल में लू की वजह से कितनी मौतें?
साल | मौतें |
2015 | 1,908 |
2016 | 1,338 |
2017 | 1,127 |
2018 | 890 |
2019 | 1,274 |
(सोर्सः Ministry of Statistics & Programme Implementation)
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हीट वेव्स की वजह से 50 साल में 17 हजार मौतें
वहीं, एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि भारत में 1971 से 2019 तक 50 सालों में हीट वेव्स (Heat Waves) की वजह से 17 हजार से ज्यादा मौतें हुई हैं. ये स्टडी मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेस की सेक्रेटरी एम. राजीवन ने कमलजीत राय, एसएस राय, आरके गिरी और एपी डिमरी जैसे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर की है. इस स्टडी के मुताबिक, 50 सालों में मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) के कारण 1.41 लाख लोगों की जान गई है. इनमें से 17,362 लोग ऐसे थे जिनकी मौत हीट वेव्स के कारण हुई.
120 सालों में 2020 8वां सबसे गर्म साल था
2020 जब खत्म हुआ तो मौसम विभाग (IMD) ने एक रिपोर्ट जारी की. इसमें उसने बताया कि 1901 के बाद 2020 8वां सबसे गर्म साल रहा था. 2020 में देश का तापमान 0.29 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया था. इससे पहले 2019 में 0.36 डिग्री और 2018 में 0.41 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा था.
2020 लगातार तीसरा साल था, जब सबसे ज्यादा तापमान बढ़ा था
साल | तापमान में बढ़ोतरी (डिग्री सेल्सियस में) |
2016 | 0.71 |
2009 | 0.56 |
2017 | 0.55 |
2010 | 0.54 |
2015 | 0.42 |
2018 | 0.41 |
2019 | 0.36 |
2020 | 0.29 |
(सोर्सः IMD)
बढ़ती गर्मी नौकरियों के लिए भी खतरा हैं!
बढ़ती गर्मा या तापमान सिर्फ हमारी हेल्थ या हमारी जान के लिए ही खतरा ही नहीं है, बल्कि नौकरियों के लिए भी बड़ा खतरा है. 2019 में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (International Labour Organisation) की एक रिपोर्ट आई थी.
इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि 2030 तक बढ़ती गर्मी की वजह से दक्षिण एशिया में 4.3 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी. इसका सबसे ज्यादा भारत पर होगा, जहां 3.4 करोड़ नौकरियां खत्म हो सकती हैं.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ती गर्मी की वजह से काम के घंटों में कमी आएगी. इससे सबसे ज्यादा प्रभावित मजदूर होंगे और इससे उनकी नौकरी पर खतरा बढ़ जाएगा.
भारत में 3.40 करोड़ नौकरियों पर खतरा!
देश | नौकरियों पर खतरा |
भारत | 3.40 करोड़ |
पाकिस्तान | 46.03 लाख |
बांग्लादेश | 38.33 लाख |
नेपाल | 3.91 लाख |
श्रीलंका | 2.21 लाख |
ईरान | 1.08 लाख |
अफगानिस्तान | 36 हजार |
भूटान | 1 हजार |
मालदीव्स | 00 |
(सोर्सः International Labour Organisation)
ऐसा नहीं है कि गर्मी या तापमान सिर्फ भारत में ही बढ़ रहा है. वर्ल्ड मीटियरलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, जून के महीने में अमेरिका-कनाडा जैसे देशों में तापमान में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई. कनाडा के कई इलाकों में तापमान 45 डिग्री के पार पहुंच गया. 29 जून को तो यहां के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में पारा 49.6 डिग्री पहुंच गया था. इसी तरह अमेरिका के पोर्टलैंड में पारा 44 डिग्री के ऊपर पहुंच गया था. 2015 में पेरिस में एक समझौता हुआ था, जिसमें भारत ने भी हस्ताक्षर भी किए थे. इस समझौते में इस सदी के आखिर तक तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखना तय हुआ है. अब ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि हम इस समझौते की शर्तों को पूरा करने में कितना कामयाब रहे.