राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज कुमार झा ने मंगलवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा के दौरान आशा वर्कर्स का मानदेय बढ़ाने की मांग की. उन्होंने कहा कि आशा वर्कर्स के साथ ही बाकी योजनाओं से जुड़ीं वर्कर्स जो इस देश की योजनाओं को गांव-गली-कूचों तक पहुंचाती हैं, उनका मानदेय मूंगफली के बराबर भी नहीं है. इनका मानदेय बढ़ाया जाए और साथ ही रिटायरमेंट लाभ भी तय करना होगा.
मनोज कुमार झा ने क्यूबा के पब्लिक हेल्थ सिस्टम का उदाहरण देते हुए कहा कि एक बड़े साम्राज्य से लड़ने के बावजूद क्यूबा ने ये सुनिश्चित किया कि उसके लोगों का जीवन मानवीय सूचकांक के हर स्तर पर ऊपर रहे. आरजेडी सांसद ने कहा कि सहजन जिसको मोरंगा भी कहते हैं, वो क्यूबा में नहीं होता था लेकिन क्यूबन डॉक्टर्स ने रिसर्च करके बताया कि ये मैन न्यूट्रिशन का बहुत बड़ा साधन है और कई तरह के रोग निरोधक तत्व इसमें हैं. उन्होंने कहा कि क्यूबा से टीम केरल आई, तमिलनाडु आई और सहजन के उत्तम बीज लेकर गई. आज वहां दर्जनों रिसर्च इंस्टीट्यूट हैं.
प्रोफेसर मनोज कुमार झा ने कहा कि ये बातें इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आज हमारे हेल्थ सेक्टर की जो दिक्कतें हैं, वो क्राइसिस ऑफ कैपिटलिज्म की वजह से भी पैदा हुई हैं. उन्होंने सरकार की एक कमेटी की रिपोर्ट कोट करते हुए ये भी कहा कि कैपिटलिज्म का घनघोर विरोधी नहीं हूं. प्रोफेसर झा ने कहा कि एक नई व्यवस्था का जन्म हो रहा है- मेडिकल पॉवर्टी. लोग मेडिकल एक्सपेंस के कारण गरीब होते जा रहे हैं. इसका दर्द इस सदन में मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता. प्रतिदिन दो काम बिहार के सांसदों का है.
उन्होंने काम बताते हुए कहा कि एक है रेलवे पीएनआर कन्फर्म कराना और दूसरा है एम्स में भर्ती करवा दो किसी तरह. आरजेडी सांसद ने कहा कि पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर अगर हमारा टूट गया तो देश का सपना टूटेगा. इस देश के करोड़ों लोग कुछ नहीं सोच पाएंगे क्योंकि हर कोई बड़े-बड़े पांच सितारा अस्पताल में जाने की हिम्मत नहीं कर पाता है और अगर करता भी है तो जमीन बेचकर. उन्होंने स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसक घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि ये भी इसी व्यवस्था की जनक हैं.
सरकारें बनाने-बिगाड़ने लगी फार्मा इंडस्ट्री
आरजेडी सांसद ने कहा कि इसी पूंजीवादी व्यवस्था की वजह से फार्मा इंडस्ट्री का कंट्रोल इतना मजबूत है कि कई जगह तो ये सरकार बनाने-बिगाड़ने लगे हैं. उन्होंने एमएमसी को लेकर स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि इसके विस्तार में नहीं जाना चाहता. स्वास्थ्य के क्षेत्र में संविदा पर भर्ती के कारण भी स्वास्थ्यकर्मी प्राइवेट सेक्टर का रुख कर रहे हैं. लग रहा है जैसे ये किसी के इशारे से, इरादे से हो रहा है. ये चिंता का विषय है. प्रोफेसर झा ने कहा कि फार्मा इंडस्ट्री का जोर भी उन दवाओं पर है, जिनसे धन इकट्ठा होता है, दवाएं महंगी हैं.
यह भी पढ़ें: 'मनरेगा की मजदूरी 400 की जाए', राज्यसभा में सोनिया गांधी की डिमांड, प्रियंका ने उठाया केरल के किसानों का मुद्दा
उन्होंने बजट आवंटन बढ़ाने की मांग करते हुए कहा कि चिकित्सा से जुड़ी वस्तुओं पर 5 फीसदी जीएसटी की बात हुई है. इसको लागू किया जाए. आरजेडी के राज्यसभा सांसद ने कहा कि बिहार से आता हूं और हम लोगों का एम्स से बहुत पुराना ताल्लुक है. एम्स कई जगह बना है, पुरानी सरकार ने भी बनाया है और आपने (एनडीए सरकार ने) भी बनाया है. लेकिन दिल्ली के एम्स की एक संस्कृति है. संस्कृति सर्जिकली इम्प्लांटेड नहीं हो सकती. कहीं न कहीं ये कमी रह रही है. उन्होंने कहा कि सरकार ने हर राज्य से कहा कि आठ परसेंट खर्च करो. बिहार में 5.7 फीसदी है.
बिहार मुफ्त में बदनाम हुआ- झा
आरजेडी सांसद प्रोफेसर झा ने कहा कि एनएचएम के अंदर सबसे कम पर कैपिटा ग्रांट बिहार को है. हम मुफ्त में बदनाम हुए बजट में. सब लोगों ने कहा बिहार को दे दिया, बिहार को दे दिया. उन्होंने कहा कि बिहार अक्सर मुफ्त हुए बदनाम वाली कैटेगरी में आ जाता है. 217 रुपये पर कैपिटा ग्रांट है जो देश में सबसे कम है. आरजेडी सांसद ने कहा कि देश में कहीं भी कोई मौत हो, उसमें एक बिहारी जरूर मिल जाएगा.
यह भी पढ़ें: मणिपुर में हालात सुधारने के लिए केंद्र ने क्या कदम उठाए? वित्त मंत्री ने राज्यसभा में गिनाया
उन्होंने कहा कि केंद्र का ही मानक है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कम से कम चार से छह बेड होने चाहिए. बिहार में 38 फीसदी पीएचसी इसे पूरा करते हैं. प्रोफेसर झा ने मेडिकल सीट्स का मुद्दा उठाते हुए कहा कि रीजन वाइज देखें तो बिहार की सीट्स महाराष्ट्र की सीट्स के 30 फीसदी के बराबर हैं. उन्होंने सहरसा में पीजीआई जैसे एक इंस्टीट्यूट की भी मांग की.