
दिल्ली का कालिंदी कुंज. यहां एक बस्ती जैसी बनी हुई है. नीली-पीली पन्नियों से ढंके हुए घर. ये दूर से देखने में तो किसी झुग्गी-बस्ती जैसे दिखते हैं, लेकिन असल में ये कैम्प हैं, जहां रोहिंग्या परिवार रह रहे हैं. ये वो रोहिंग्या मुसलमानों के परिवार हैं, जो म्यांमार के रखाइन प्रांत से भगाए गए हैं और भारत में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं.
इन्हीं रोहिंग्याओं को लेकर भारत में फिर बवाल शुरू हो गया है. बवाल केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के ट्वीट से शुरू हुआ. उन्होंने ट्वीट कर बताया कि रोहिंग्याओं को बक्करवाल में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए बने फ्लैट्स में शिफ्ट करने का फैसला लिया है. बवाल हुआ तो गृह मंत्रालय ने साफ करते हुए कहा कि ये 'अवैध विदेशी' हैं और इन्हें डिटेंशन सेंटर में ही रखा जाएगा.
कालिंदी कुंज में बने कैम्प में रह रहीं 35 साल की मरियम हरदीप पुरी के ट्वीट से खुश थीं. वो खुश थीं कि दशकों बाद उन्हें पक्के घर में रहने को मिलेगा. लेकिन गृह मंत्रालय के स्पष्टीकरण ने उनकी उम्मीद तोड़ दी.
मरियम ने न्यूज एजेंसी से कहा, 'हमें नहीं पता कि सरकार ने अपना फैसला क्यों बदला. हम सिर्फ इस बात से खुश थे कि दशकों बाद मैं और मेरी बेटी एक पक्के घर में रहेंगे.'
रोहिंग्या राइट्स एक्टिविस्ट अली जोहार ने न्यूज एजेंसी को बताया कि दिल्ली में लगभग 1,100 रोहिंग्या रहते हैं. इनमें से ज्यादातर रोहिंग्या किराये के घरों में रह रहे हैं. गृह मंत्रालय ने 2017 में राज्यसभा में बताया था कि देशभर में लगभग 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान होने का अनुमान है.
हरदीप सिंह पुरी के ट्वीट पर जवाब देते हुए गृह मंत्रालय ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों को EWS फ्लैट देने के लिए कोई आदेश नहीं दिया है. गृह मंत्रालय के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने रोहिंग्याओं को नई जगह शिफ्ट करने का प्रस्ताव दिया था. इस पर मंत्रालय ने दिल्ली सरकार को कहा है कि अवैध विदेशी जहां रह रहे हैं, वहीं रहने दें. जब तक उन्हें उनके देश नहीं भेज दिया जाता, तब तक उन्हें डिटेंशन सेंटर में ही रखा जाएगा. गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया है कि वो तुरंत उन जगहों को डिटेंशन सेंटर घोषित करे, जहां रोहिंग्या रह रहे हैं.
42 साल के कबीर अहमद 2012 में भारत आए थे. वो भी कालिंदी कुंज में बने कैम्प में रह रहे हैं. उनके पास संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी की ओर से जारी आईडी कार्ड है. अहमद को डर है कि अगर सरकार इस जगह को डिटेंशन घोषित करती है, तो उनके साथ गलत बर्ताव हो सकता है.
अहमद ने न्यूज एजेंसी से कहा, 'भारत के कुछ राज्यों में डिटेंशन सेंटर में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ कैसा बर्ताव हुआ है, उस बारे में हमने सुना है. मुझे डर है कि कहीं हमारे साथ भी ऐसा न हो. हमने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है और न ही किसी को नुकसान पहुंचाने का इरादा है.'
अहमद यहां संकरी से गलियों के बीच बनी छोटी सी जगह पर रहते हैं. उनका दावा है कि 10 साल में सांप के काटने से उनके तीन बच्चों की मौत हो चुकी है. अहमद कहते हैं, 'मैं महीनेभर में मजदूरी करके हजार रुपये से भी कम कमाता हूं और उसी से परिवार का पेट पालता हूं. हम छोटे से टेंट में रह रहे हैं, जहां बारिश में पानी भर जाता है. यहां हालात बहुत खराब है. 10 साल में सांप के काटने से मेरे तीन बच्चों की मौत हो गई है.'
वहीं, मरियम दावा करती हैं कि कालिंदी कुंज में रह रहे कुछ शरणार्थियों को कहा गया है कि उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाएगा. मरियम बताती हैं कि मंगलवार शाम को कुछ अधिकारी आए थे और उन्होंने कहा था कि यहां से कहीं और ले जाया जाएगा.
मरियम 5 साल पहले अपने पति से अलग हो गई थीं. वो अपनी बेटी के साथ यहां रहती हैं. वो 11 साल पहले भारत आई थीं और घर चलाने के लिए कबाड़ का काम करतीं हैं. वो बताती हैं कि उनकी बेटी पास में ही बने सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती है, लेकिन वो इतना नहीं कमा पातीं कि अपनी बेटी की पढ़ाई का खर्च उठा सकें. मरियम दावा करतीं हैं कि इन कैम्प में न पीने के पानी की सुविधा है और न ही टॉयलेट हैं.
गृह मंत्रालय के मुताबिक, देशभर में 40 हजार के आसपास रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं. गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि इन रोहिंग्या शरणार्थियों को जब तक कानून के तहत उनके देश नहीं भेज दिया जाता, तब तक उन्हें डिटेंशन सेंटर में ही रखा जाएगा.