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Ram Mandir Pran Pratishtha: '22 जनवरी नई शुरुआत, कड़वाहट खत्म कर राष्ट्र निर्माण में जुटें', राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले RSS प्रमुख ने की अपील

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने लिखा- हम सभी ने 22 जनवरी के भक्तिमय उत्सव में मंदिर के पुनर्निर्माण के साथ साथ भारत और इससे पूरे विश्व के पुनर्निर्माण को पूर्तता में लाने का संकल्प लिया है. इस भावना को अंतर्मन में स्थापित करते हुए अग्रसर हों... जय सिया राम.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत. (Photo: RSS Website)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत. (Photo: RSS Website)

अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कड़वाहट को मिटाने, विवाद और संघर्ष को समाप्त करने का आह्वान किया है. आरएसएस चीफ ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर एक आर्टिकल में लिखा है, 'पक्ष और विपक्ष में जो विवाद पैदा हुआ है, उसे खत्म किया जाना चाहिए. इस बीच जो कड़वाहट पैदा हुई है वह भी खत्म होनी चाहिए. समाज के प्रबुद्ध लोगों को यह देखना होगा कि विवाद पूरी तरह खत्म हो. अयोध्या की पहचान एक ऐसे नगर से हो, जहां कोई युद्ध नहीं है, यह संघर्ष से मुक्त जगह है'. मोहन भागवत का पूरा लेख नीचे पढ़ सकते हैं...

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हमारे भारत का इतिहास पिछले लगभग डेढ़ हजार वर्षों से आक्रांताओं से निरंतर संघर्ष का इतिहास है. आरंभिक आक्रमणों का उद्देश्य लूटपाट करना और कभी-कभी सिकंदर जैसे आक्रमण अपना राज्य स्थापित करने के लिए होता था. परंतु इस्लाम के नाम पर पश्चिम से हुए आक्रमण यह समाज का पूर्ण विनाश और अलगाव ही लेकर आए. देश समाज को हतोत्साहित करने के लिए उनके धार्मिक स्थलों को नष्ट करना अनिवार्य था. इसलिए विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में मंदिरों को भी नष्ट कर दिया.

ऐसा उन्होंने एक बार नहीं, बल्कि अनेकों बार किया. उनका उद्देश्य भारतीय समाज को हतोत्साहित करना था, ताकि भारतीय स्थायी रूप से कमजोर हो जाएं और वे उन पर अबाधित शासन कर सकें. अयोध्या में श्रीराम मंदिर का विध्वंस भी इसी मनोभाव से, इसी उद्देश्य से किया गया था. आक्रमणकारियों की यह नीति केवल अयोध्या या किसी एक मंदिर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए थी.

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भारतीय शासकों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया. परन्तु विश्व के शासकों ने अपने राज्य के विस्तार के लिए आक्रामक होकर ऐसे कुकृत्य किये हैं. परंतु इसका भारत पर उनकी अपेक्षानुसार वैसा परिणाम नहीं हुआ, जिसकी आशा वे लगा बैठे थे. इसके विपरीत भारत में समाज की आस्था निष्ठा और मनोबल कभी कम नहीं हुआ. समाज झुका नहीं, उनका प्रतिरोध का जो संघर्ष था वह चलता रहा. इस कारण जन्मस्थान बार बार पर अपने आधिपत्य में कर, वहां मंदिर बनाने का निरंतर प्रयास किया गया. उसके लिए अनेक युद्ध, संघर्ष और बलिदान हुए. और राम जन्मभूमि का मुद्दा हिंदुओं के मन में बना रहा.

1857 में विदेशी अर्थात ब्रिटिश शक्ति के विरुद्ध युद्ध योजनाएं बनाई जाने लगीं तो उसमें हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर उनके विरुद्ध लड़ने की तैयारी दर्शाई और तब उनमें आपसी विचार-विनिमय हुआ. और उस समय गौ-हत्या बंदी और श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति के मुद्दे पर सुलह हो जाएगी, ऐसी स्थिति निर्माण हुई. बहादुर शाह जफर ने अपने घोषणापत्र में गौ-हत्या पर प्रतिबंध भी शामिल किया. इसलिए सभी समाज एक साथ मिलकर लड़े. उस युद्ध में भारतीयों ने वीरता दिखाई लेकिन दुर्भाग्य से यह युद्ध विफल रहा और भारत को स्वतंत्रता नहीं मिली. ब्रिटिश शासन अबाधित रहा, परन्तु राम मंदिर के लिए संघर्ष नहीं रुका.

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अंग्रेजों की हिंदू-मुसलमानों में 'फूट डालो और राज करो' की नीति के अनुसार, जो पहले से चली आ रही थी और इस देश की प्रकृति के अनुसार अधिक से अधिक सख्त होती गई. एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने संघर्ष के नायकों को अयोध्या में फांसी दे दी और राम जन्मभूमि की मुक्ति का प्रश्न वहीं का वहीं रह गया. राम मंदिर के लिए संघर्ष जारी रहा. 1947 में देश को स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जब सर्वसम्मति से सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया, तभी ऐसे मंदिरों की चर्चा शुरू हुई. राम जन्मभूमि की मुक्ति के संबंध में ऐसी सभी सर्वसम्मति पर विचार किया जा सकता था, परंतु राजनीति की दिशा बदल गयी. भेदभाव और तुष्टीकरण जैसे स्वार्थी राजनीति के रूप प्रचलित होने लगे और इसलिए प्रश्न ऐसे ही बना रहा.

सरकारों ने इस मुद्दे पर हिंदू समाज की इच्छा और मन की बात पर विचार ही नहीं किया. इसके विपरीत, उन्होंने समाज द्वारा की गई पहल को उध्वस्त करने का प्रयास किया. स्वतन्त्रता पूर्व से ही इससे संबंधित चली आ रही कानूनी लड़ाई निरंतर चलती रही. राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए जन आंदोलन 1980 के दशक में शुरू हुआ और तीस वर्षों तक जारी रहा. वर्ष 1949 में राम जन्मभूमि पर भगवान श्री रामचन्द्र की मूर्ति का प्राकट्य हुआ. 1986 में अदालत के आदेश से मंदिर का ताला खोल दिया गया. आगामी काल में अनेक अभियानों एवं कारसेवा के माध्यम से हिन्दू समाज का सतत संघर्ष जारी रहा. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला स्पष्ट रूप से समाज के सामने आया.

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जल्द से जल्द अंतिम निर्णय के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने के लिए आगे भी आग्रह जारी रखना पड़ा. 9 नवंबर 2019 को 134 वर्षों के कानूनी संघर्ष के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सत्य और तथ्यों को परखने के बाद संतुलित निर्णय दिया. दोनों पक्षों की भावनाओं और तथ्यों पर भी विचार इस निर्णय में किया गया था. कोर्ट में सभी पक्षों के तर्क सुनने के बाद यह निर्णय सुनाया गया है. इस निर्णय के अनुसार मंदिर के निर्माण के लिए एक न्यासी मंडल की स्थापना की गई. मंदिर का भूमिपूजन 5 अगस्त 2020 को हुआ और अब पौष शुक्ल द्वादशी युगाब्द 5125, तदनुसार 22 जनवरी 2024 को श्री रामलला की मूर्ति स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन किया गया है.

धार्मिक दृष्टि से श्री राम बहुसंख्यक समाज के आराध्य देव हैं और श्री रामचन्द्र का जीवन आज भी संपूर्ण समाज द्वारा स्वीकृत आचरण का आदर्श है. इसलिए अब अकारण विवाद को लेकर जो पक्ष विपक्ष खड़ा हुआ है, उसे खत्म कर देना चाहिए. इस बीच में उत्पन्न हुई कड़वाहट भी समाप्त होनी चाहिए. समाज के प्रबुद्ध लोगों को यह अवश्य देखना चाहिए कि विवाद पूर्णतः समाप्त हो जाये. अयोध्या का अर्थ है 'जहाँ युद्ध न हो, संघर्ष से मुक्त स्थान’ वह नगर ऐसा है. संपूर्ण देश में इस निमित्त मन में अयोध्या का पुनर्निर्माण आज की आवश्यकता है और हम सभी का कर्तव्य भी है.

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अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण का अवसर अर्थात राष्ट्रीय गौरव के पुनर्जागरण का प्रतीक है. यह आधुनिक भारतीय समाज द्वारा भारत के आचरण के मर्यादा की जीवनदृष्टि की स्वीकृति है. मंदिर में श्रीराम की पूजा 'पत्रं पुष्पं फलं तोयं' की पद्धति से और साथ ही राम के दर्शन को मन मंदिर में स्थापित कर उसके प्रकाश में आदर्श आचरण अपनाकर भगवान श्री राम की पूजा करनी है क्योंकि 'शिवो भूत्वा शिवं भजेत् रामो भूत्वा रामं भजेत्' को ही सच्ची पूजा कहा गया है.

इस दृष्टि से विचार करें तो भारतीय संस्कृति के सामाजिक स्वरूप के अनुसार...

मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत्।
आत्मवत् सर्वभूतेषु, यः पश्यति सः पंडितः।
इस तरह हमें भी श्री राम के मार्ग पर चलने होगा।

जीवन में सत्यनिष्ठा, बल और पराक्रम के साथ क्षमा, विनयशीलता और नम्रता, सबके साथ व्यवहार में नम्रता, हृदय की सौम्यता और कर्तव्य पालन में स्वयं के प्रति कठोरता इत्यादि, श्री राम के गुणों का अनुकरण हर किसी को अपने जीवन में और अपने परिवार में सभी के जीवन में लाने का प्रयत्न ईमानदारी, लगन और मेहनत से करना होगा.

साथ ही, अपने राष्ट्रीय जीवन को देखते हुए सामाजिक जीवन में भी अनुशासन बनाना होगा. हम जानते हैं कि श्रीराम लक्ष्मण ने उसी अनुशासन के बल पर अपना 14 वर्ष का वनवास और शक्तिशाली रावण के साथ सफल संघर्ष पूरा किया था. श्रीराम के चरित्र में प्रतिबिंबित न्याय और करुणा, सद्भाव, निष्पक्षता, सामाजिक गुण, एक बार फिर समाज में व्याप्त करना, शोषण रहित समान न्याय पर आधारित, शक्ति के साथ.साथ करुणा से संपन्न एक पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना, यही श्रीराम की पूजा होगी.

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अहंकार, स्वार्थ और भेदभाव के कारण यह विश्व विनाश के उन्माद में है और अपने ऊपर अनंत विपत्तियां ला रहा है. सद्भाव, एकता, प्रगति और शांति का मार्ग दिखाने वाले जगदाभिराम भारतवर्ष के पुनर्निर्माण का सर्व-कल्याणकारी और 'सर्वेषाम् अविरोधी' अभियान का प्रारंभ, श्री रामलला के राम जन्मभूमि में प्रवेश और उनकी प्राण प्रतिष्ठा से होने वाला है. हम उस अभियान के सक्रिय कार्यान्वयनकर्ता हैं. हम सभी ने 22 जनवरी के भक्तिमय उत्सव में मंदिर के पुनर्निर्माण के साथ साथ भारत और इससे पूरे विश्व के पुनर्निर्माण को पूर्तता में लाने का संकल्प लिया है. इस भावना को अंतर्मन में स्थापित करते हुए अग्रसर हों... जय सिया राम.
 

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