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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि सीएए-एनआरसी का भारत के मुस्लिम नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है. गुवाहाटी में नानी गोपाल महंत द्वारा लिखित किताब 'Citizenship DEBATE over NRC & CAA Assam & the Politics of History' का विमोचन करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि भारत के नागरिकों को सीएए और एनआरसी पर चिंता करने की आवश्यकता नहीं है.
उन्होंने कहा कि सीएए-एनआरसी किसी भारतीय नागरिक के खिलाफ बनाया गया कानून नहीं है. सीएए से भारत के मुस्लिम नागरिकों को कोई नुकसान नहीं होगा. राजनीतिक लाभ लेने के लिए कुछ लोगों ने इसे हिंदू-मुसलमान का मुद्दा बना दिया है जबकि यह हिंदू-मुसलमान का विषय नहीं है.
मोहन भागवत ने आगे कहा कि भारत के विभाजन के बाद यह वादा किया गया था कि प्रत्येक देश अल्पसंख्यक लोगों की देखभाल करेगा. हम आज तक इसका पालन कर रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान ने नहीं किया. सभी लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ इस सपने के साथ लड़ाई लड़ी कि एक स्वतंत्र देश होगा. देश के बंटवारे के समय लोगों की सहमति नहीं ली गई थी.
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...तो बंटवारा नहीं होता
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि अगर उस समय लोगों की सहमति ली जाती तो देश का बंटवारा नहीं होता. लेकिन नेताओं ने फैसला लिया और जनता ने मान लिया. देश के बंटवारे के फैसले के बाद जिन लोगों को बेदखल करना पड़ा, आज भी ये लोग बेदखल हो रहे हैं. उनका क्या कसूर है, कौन चिंता करेगा, उनके बारे में सोचें? उन लोगों की मदद करना हमारा नैतिक कर्तव्य है.
उन्होंने यह भी कहा कि हमें किसी धर्म, भाषा या पंथ से कोई समस्या नहीं है. समस्या तब शुरू होती है जब कोई वर्चस्व के इरादे से एकरूपता थोपने की कोशिश करता है. समस्याओं को अगली पीढ़ी को न सौंपें, बल्कि अवसरों को सौंपने के लिए समस्याओं का निवारण करें.
यह हिंदू-मुस्लिम मुद्दा नहीं
भागवत ने कहा कि एनआरसी यह जानने का एक तरीका है कि हमारे देश का नागरिक कौन है, यह किसी विशेष के खिलाफ नहीं है. देश की राजनीति में इसे राजनीतिक लाभ के हिसाब से ही माना जाएगा या कुछ लोग इसे साम्प्रदायिक लाइन में ला देंगे. वे इसे हिंदू-मुस्लिम मुद्दे में बनाते हैं, लेकिन यह हिंदू-मुस्लिम मुद्दा नहीं है. हमें इन सब चीजों को देखना होगा और देश की जनता ने तय किया है कि देश की राजनीति सही दिशा में होनी चाहिए. यह सुनिश्चित करने के लिए एक इकोसिस्टम बनाया गया था कि कोई डेटा हमारे सामने न आए.