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'मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा, इस पर विचार करना होगा', बोले RSS चीफ मोहन भागवत

सरसंघचालक ने कहा कि समाज परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तन होता है. पूरी दुनिया में समाज में परिवर्तन आया है जिसके परिणामस्वरूप व्यवस्थागत परिवर्तन हुआ है. मोहन भागवत ने कहा कि मणिपुर एक वर्ष से शांति की राह देख रहा है. प्राथमिकता से इस पर विचार करना होगा.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत. (Photo: RSS Website)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत. (Photo: RSS Website)

मोदी सरकार 3.0 का शपथ ग्रहण समारोह रविवार शाम को हुआ. लगभग 24 घंटे बाद मंत्रालय का बंटवारा भी हो गया. इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक (RSS) मोहन भागवत का बयान आया है. मोहन भागवत ने कहा है कि जनता ने जनादेश दिया है, सब कुछ उसी के अनुसार होगा. क्यों? कैसे? संघ इसमें शामिल नहीं है. उन्होंने कहा, मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है. प्राथमिकता से इस पर विचार करना होगा.

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सरसंघचालक ने कहा कि समाज परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तन होता है. पूरी दुनिया में समाज में परिवर्तन आया है जिसके परिणामस्वरूप व्यवस्थागत परिवर्तन हुआ है. यही लोकतंत्र का सार है. उन्होंने कहा कि इस बार भी हमने अपना लोकमत जागरण का कार्य किया है. वास्तविक सेवक मर्यादा का पालन करते हुए चलता है. अपने कर्तव्य को पूरा करना आवश्यक है.

'चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया'
मोहन भागवत ने कहा कि कर्म करना परंतु लिप्त नहीं होना, यही संघ वृत्ति है. चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है. संसद में किसी भी प्रश्न के दोनों पहलू सामने आए इसलिए ऐसी व्यवस्था है. चुनाव प्रचार में एक दूसरे को लताड़ना, तकनीकी का दुरुपयोग, असत्य प्रसारित करना ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि चुनाव में विरोधी की जगह प्रतिपक्ष कहा जाए. चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने आई समस्याओं पर विचार करना होगा.

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'लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद बाहर का माहौल अलग'
सरसंघचालक ने कहा कि लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद बाहर का माहौल अलग है. नई सरकार भी आकार ले चुकी है, ऐसा क्यों हुआ, संघ को इससे कोई मतलब नहीं है. संघ हर चुनाव में जनमत को रिफाइंड करने का काम करता है, इस बार भी किया लेकिन नतीजों के विश्लेषण में उलझना नहीं चाहिए.

उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान प्रतिस्पर्धा अपरिहार्य है, लेकिन यह सत्य पर आधारित होनी चाहिए. हमारी परंपरा आम सहमति बनाने की है, इसलिए संसद में दो पक्ष होते हैं ताकि किसी भी मुद्दे के दोनों पक्षों पर चर्चा हो सके. हमने अर्थव्यवस्था, रक्षा रणनीति, खेल, संस्कृति, टेक्नोलॉजी आदि जैसे कई क्षेत्रों में प्रगति की है. इसका मतलब यह नहीं है कि हमने सभी चुनौतियों पर काबू पा लिया है.

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