राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने प्रेमानंद महाराज से मुलाकात कर आशीर्वाद लिया. इस दौरान दोनों के बीच संवाद भी हुआ. संवाद के दौरान मोहन भागवत ने प्रेमानंद महाराज से कहा, बस आपके दर्शन करने थे, आपकी बात वीडियो में सुनी, तो लगा कि आपसे मिलना चाहिए.
बातचीत के दौरान भागवत ने कहा, ' आप लोगों से सुनते हैं, वही हम भी बोलते हैं. लेकिन चिंता ये होती है, हम लोग करते चले जा रहे हैं, आप लोग भी कर रहे हैं, इतनी बातें बढ़ भी रही हैं. प्रयास तो करेंगे ही, निराश तो कभी होगे नहीं. क्योंकि जीना तो इसी के लिए है, मरना भी इसी के साथ है. परंतु क्यो होगा, ये चिंता मन में आती है. मेरे मन में भी, सबके मन में.
इस पर प्रेमानंद महाराज ने कहा, ''इसका उत्तर सीधा है कि क्या हमने श्रीकृष्ण पर भरोसा नहीं करते. हमें जो खास बात पकड़नी है, क्या हम भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भरोसे में कमी है. अगर भरोसा दृढ़ है, तो वही होगा, जिसे कहा जाता है परम मंगलमय. परम मंगल होगा. कदम पीछे नहीं. हम अपने अध्यात्म बल को जानते हैं. कदम पीछे नहीं... हम अपने स्वरूप को जानते हैं, इसलिए हमको डरना नहीं कि क्या होगा? तीन प्रकार की लीलाएं भगवान की हो रहीं हैं- एक सृजन, एक पालन, एक संहार... जिस समय जैसा आदेश होगा, हम उनके दास हैं, वैसा ही करेंगे. क्या होगा... वही होगा जो मंगल रचा होगा. जो श्रीकृष्ण ने रचा होगा. संशय नहीं करना अब. जैसे अपने लोगों को श्रीकृष्ण ने तैयार किया है. वैसा ही एक और तैयार हो जाएगा, जो बहुत जोर का संभाला. आपको चिंता नहीं करना है, क्या होगा. हमारे साथ श्रीकृष्ण हैं, वही होगा जो मंगल होगा.''
हमारा तिरंगा, हमारा राष्ट्र, हमारा भगवान- प्रेमानंद महाराज
प्रेमानंद महाराज ने कहा, ''बस निराशा, हताशा, उदास हमारे जीवन में अधिकार नहीं रखते, किसी भी परस्थिति में. किसी भी तरह का शोक नहीं, भय नहीं. अभिनासी हूं, जो सेवा मिली है, दहाड़ता रहूंगा, जब तक सांस है. जब शरीर छूटेगा, तो जो स्वरूप है, उसी को प्राप्त हो जाउंगा.''
प्रेमानंद महाराज ने कहा, ''हमारा तिरंगा, हमारा राष्ट्र, हमारा भगवान है. आप तप के द्वारा, भजन के द्वारा लाखों की बुद्धि को शुद्ध कर सकते हैं. एक भजन लाखों का उद्धार कर सकता है. तुम भजन करो, इंद्रियों पर विजय प्राप्त करो और राष्ट्र सेवा करो. राष्ट्र की सेवा के लिए प्राण समर्पित करो. ये राष्ट्र सेवी हैं. लेकिन ये जितेंद्री होकर, भोगी होकर नहीं योगी होकर.''
प्रेमानंद महाराज ने कहा, आचरण से, संकल्प से और वाणी से तीनों से समाज सेवा और राष्ट्र सेवा करनी है. हम हमेशा चाहेंगे, आप जैसे सतमार्ग में प्रेरित करने वाले स्वस्थ रहें, भगवान सदैव रक्षा करें और आगे बढ़ते रहें. देशवासियों की बौद्धिक और वैचारिक स्तर का सुधार करते रहें.
ऐसे लोग कम देखने को मिलते हैं. इससे पहले प्रेमानंद महाराज ने कहा, अपने लोगों को जन्म जो भगवान ने दिया है, वो सिर्फ सेवा के लिए दिया. व्यवहारिक सेवा और अध्यात्मिक सेवा. केवल व्यवहारिक सेवा होती रहे, हम अपने देशवासियों को सुखी करना चाहते हैं, तो सिर्फ सुविधाओं और वस्तुओं से नहीं कर सकते. उनका बौद्धिक स्तर सुधरना चाहिए. आज हमारे समाज का बौद्धिक स्तर गिरता जा रहा है. ये चिंता की बात है. हम सुविधाएं दे देंगे, हम भोग विलासिता की सामग्रियां दे देंगे. लेकिन उनके हृदय की मलीनता है, जो हिंसात्मक प्रवृत्ति है, अपवित्र बुद्धि है, ये ठीक नहीं होगी. हमारा देश धार्मिक देश है. यह धर्म प्रधानता देश है. इसी बात को बार बार हम सबसे निवेदन करते हैं, जो हमारी नई पीढ़ी है. इसी से हमारे राष्ट्र की सेवा करने वाले प्रकट होते हैं. इन्हीं में से कोई विधायक, सांसद बनता है, कोई प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बनता है. उन्हीं में अपने लोग हैं. हमारी शिक्षा सिर्फ आधुनिकता का रूप लेती जाए और हिंसात्मक प्रवृत्ति नई पीढ़ी में देखकर बहुत दुख होता है. इसलिए शरीर में कितनी भी पीढ़ी हो, हम प्रयास करते हैं, जितने लोग हमारे सामने आते हैं, उनकी बुद्धि शुद्ध होनी चाहिए.
उन्होंने कहा, धर्म का क्या स्वरूप है, जीवन का लक्ष्य क्या है. हमें जितना राम और श्रीकृष्ण प्रिय हैं, उतना ही हमारा देश प्रिय है. हमारे लिए देश का जन जन प्रिय है. लेकिन जो भावनाएं बन रही हैं, वो हमारे देश और धर्म के लिए ठीक नहीं है. हिंसा का बढ़ता स्वरूप बहुत ही विपत्तिजनक है. अगर ये बढ़ता रहा, तो हम सुख सुविधाएं देने के बाद भी देश की जनता को सुखी नहीं रख पाएंगे. क्योंकि सुख का स्वरूप विचार से होता है. हमारा विचार गंदा हो रहा है, हमारा उद्देश्य है, ये है कि हमारे देशवासियों का विचार शुद्ध होना चाहिए.