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RSS ने शिक्षा के लिए मातृभाषा के उपयोग का किया समर्थन, कहा- राष्ट्रीय एकता के खिलाफ साजिश चिंतनीय

भाषा को लेकर विवाद पर आरएसएस के रुख के बारे में पूछे जाने पर, खासकर जब दक्षिणी राज्य कह रहे हैं कि उनकी भाषा को दरकिनार किया जा रहा है, मुकुंदा ने कहा कि आरएसएस न केवल शिक्षा के लिए बल्कि दैनिक गतिविधियों के लिए भी मातृभाषा के इस्तेमाल को प्राथमिकता देता है.

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RSS के संयुक्त महासचिव सी आर मुकुंदा और अखिल भारतीय प्रचार प्रसार प्रमुख सुनील आंबेकर
RSS के संयुक्त महासचिव सी आर मुकुंदा और अखिल भारतीय प्रचार प्रसार प्रमुख सुनील आंबेकर

हिंदी को लेकर चल रहे भाषाई विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपना रुख साफ किया है. संघ के संयुक्त महासचिव सी आर मुकुंदा ने शुक्रवार भाषा विवाद को राजनीति से प्रेरित करार देते हुए कहा कि आरएसएस मातृभाषा को शिक्षा और दैनिक संचार का माध्यम मानता है. उन्होंने परिसीमन पर बहस को भी "राजनीति से प्रेरित" बताया.

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आरएसएस नेता ने डीएमके पर भी परोक्ष हमला किया, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत तीन-भाषा फार्मूले का विरोध कर रही है, उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय एकता को चुनौती देने वाली ताकतें "चिंता का विषय" हैं.

बेंगलुरु में तीन दिवसीय बैठक

आरएसएस की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) की शुक्रवार को  बेंगलुरु में तीन दिवसीय बैठक शुरू हुई. एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुकुंदा ने कहा कि मणिपुर की स्थिति और देश में ‘उत्तर-दक्षिण विभाजन’ पैदा करने के प्रयासों सहित ‘कुछ समकालीन और ज्वलंत मुद्दों पर गहन चर्चा’ होगी.

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भाषा को लेकर संघ की राय
बैठक का उद्घाटन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने किया. तीन भाषाओं के विवाद के बारे में पूछे जाने पर मुकुंदा ने कहा कि संघ कोई प्रस्ताव पारित नहीं करेगा और संगठन मातृभाषा को शिक्षा और दैनिक संचार का माध्यम बनाना पसंद करता है. परिसीमन विवाद पर उन्होंने कहा कि यह "राजनीति से प्रेरित" है और सीटों की संख्या पर आरएसएस का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय एकता को चुनौती देने वाली ताकतें चिंता का विषय हैं.

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भाषा को लेकर विवाद पर आरएसएस के रुख के बारे में पूछे जाने पर, खासकर जब दक्षिणी राज्य कह रहे हैं कि उनकी भाषा को दरकिनार किया जा रहा है, मुकुंदा ने कहा कि आरएसएस न केवल शिक्षा के लिए बल्कि दैनिक गतिविधियों के लिए भी मातृभाषा के इस्तेमाल को प्राथमिकता देता है. उन्होंने कहा, "आरएसएस ने इस बारे में कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया है कि दो भाषा या तीन भाषा प्रणाली होनी चाहिए. हमने पहले अपनी मातृभाषा पर एक प्रस्ताव पारित किया था." तमिलनाडु सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत तीन भाषा फार्मूले का विरोध कर रही है और दावा कर रही है कि यह हिंदी थोपने का प्रयास है.

मणिपुर को लेकर कही ये बात

मुकुंदा ने कहा, "एक संगठन के तौर पर हम उन ताकतों को लेकर चिंतित हैं जो राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे रही हैं, खासकर उत्तर-दक्षिण विभाजन को बढ़ा रही हैं, चाहे वह परिसीमन हो या भाषा." उन्होंने कहा कि आरएसएस के स्वयंसेवक और 'विचार परिवार' से जुड़े विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता, खासकर दक्षिणी राज्यों में सद्भाव लाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बैठक में आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के प्रमुख शामिल होंगे.

मुकुंदा ने कहा, "पिछले 20 महीनों से मणिपुर मुश्किल दौर से गुजर रहा है, लेकिन आज कुछ उम्मीद जगी है. केंद्र सरकार के कुछ फैसलों को देखते हुए, जिनमें से कुछ राजनीतिक और कुछ प्रशासनिक हैं, मणिपुर के लोगों में उम्मीद जगी है." उन्होंने कहा कि आरएसएस स्थिति का विश्लेषण कर रहा है और उसका मानना ​​है कि "प्राकृतिक माहौल बनने में काफी समय लगेगा." एक सवाल के जवाब में मुकुंदा ने कहा कि दो आदिवासी समूहों मैती और कुकी को एक साथ लाने के प्रयास जारी हैं, जो आपस में लड़ रहे हैं. 

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उन्होंने यह भी कहा कि कई चीजों को राजनीतिक रूप से हल करने की जरूरत है और कुछ फैसले केंद्र को लेने होंगे. उन्होंने बताया, "वे (भारत सरकार) अपना काम कर रहे हैं और हम समुदायों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं. हम कुछ सद्भाव हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. हमने कई राहत शिविर लगाए हैं." 13 फरवरी को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था और विधानसभा को निलंबित कर दिया गया था. मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद पूर्वोत्तर राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई थी.

NRC का किया जिक्र
 बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न के बारे में मुकुंद ने कहा कि इस मामले पर अगले तीन दिनों में चर्चा की जाएगी. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) पर उन्होंने कहा कि आरएसएस का मानना ​​है कि इस देश में रहने वालों की एक पहचान होनी चाहिए, लेकिन वे इस पर कोई प्रस्ताव पारित नहीं करेंगे. इस साल आरएसएस के 100 साल पूरे होने पर उन्होंने कहा कि जश्न मनाने से ज्यादा ध्यान विस्तार और एकीकरण पर होगा. 

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शीर्ष पदाधिकारी समाज में बदलाव लाने में आरएसएस के सामाजिक प्रभाव की भी समीक्षा करेंगे. उन्होंने कहा कि पिछले साल आरएसएस का कई गुना विस्तार हुआ है. उनके मुताबिक इस साल तमिलनाडु में शाखाओं की संख्या 4,000 को पार कर गई है. मुकुंद ने यह भी दावा किया कि कुछ स्थानों पर आरएसएस शाखाओं का विरोध राजनीतिक कारणों से हो रहा है, न कि धार्मिक या सांस्कृतिक कारणों से.

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उन्होंने बताया, "इस समय 83,129 सक्रिय शाखाएं हैं, जो पिछले साल की तुलना में 10,000 से अधिक हैं. 51,710 स्थानों पर दैनिक गतिविधियां और 21,936 स्थानों पर साप्ताहिक गतिविधियां हो रही हैं." उन्होंने कहा कि प्रयागराज में कुंभ मेले के बारे में आरएसएस का दृष्टिकोण यह है कि इसने सांस्कृतिक गौरव को बढ़ाया है और भारतीयों के आत्मविश्वास को बढ़ाया है. 

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