राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) मुस्लिम विरोधी छवि तोड़ने और देश में सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखन के लिए लगातार बातचीत का अभियान चला रहा है. मुस्लिम बुद्धिजीवी-उलेमाओं की आरएसएस के नेताओं के साथ अबतक कई दौर की बातचीत हो चुकी है. एक मार्च को एक बार फिर आरएसएस नेताओं की मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत हुई है.
आरएसएस के प्रतिनिधियों ने एक मार्च की मुस्लिम बुद्धिजीवियों और उलेमाओं के साथ बातचीत की है. इस बार की बातचीत में जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर, जामिया के रजिस्ट्रार, इस्लामिक सेंटर के प्रेसिडेंट सिराजुद्दीन कुरैशी और कई मुस्लिम प्रोफेसर और डॉक्टर शामिल हुए थे.
वहीं अगर आरएसएस के प्रतिनिधियों की बात की जाए तो पहले की तरह ही रामलाल, कृष्णगोपाल और राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के अध्यक्ष इंद्रेश कुमार शामिल हुए. इस बैठक में मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने देश में हालात को लेकर चर्चा की. इससे पहले 14 जनवरी को दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के आवास पर आरएसएस नेताओं के साथ मुस्लिम उलेमाओं और बुद्धिजीवियों की बैठक हुई थी. इसमें मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व जमात-ए-इस्लामी के मोहतशिम खान ने किया था. बैठक में जमीयत उलेमा हिंद के दोनों गुट मौजूद थे जिनमें नियाज फारूकी और फजलुर्रहमान कासमी थे. मुस्लिम बुद्धजीवियों में शाहिद सिद्दीकी, एसवाई कुरैशी, नजीब जंग और अजमेर दरगाह के प्रतिनिधि सलमान चिश्ती ने शिरकत की थी.
आरएसएस नेताओं के साथ मुस्लिम समुदाय की यह दूसरी बैठक थी. पहली बैठक पिछले साल अगस्त के संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ हुई थी, जिसमें सिर्फ मुस्लिमों के बुद्धजीवियों ने शिरकत की थी. इस बैठक में आरएसएस ने गोहत्या और काफिर (गैर-मुस्लिमों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला शब्द) पर चिंता जाहिर की थी. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तानी, जिहादी, बढ़ती आबादी और बहुविवाह की प्रथा के बारे में गलत प्रचार कर मुस्लिमों को बदनाम करने पर चिंता जताई थी.
हालांकि, बैठक में सांप्रदायिक सौहार्द मजबूत करने और हिंदू-मुस्लिमों के बीच गहरी हो रही खाई को पाटने की जरूरत पर बल दिया गया था. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिम बुद्धजीवियों से कहा था कि देश के लिए सांप्रदायिक सद्भाव जरूरी है और ऐसी बैठकें होती रहनी चाहिए. मुस्लिम स्कॉलरों को उन्होंने कृष्ण गोपाल, इंद्रेश कुमार और रामलाल के संपर्क में रहने की सलाह दी थी.