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'रामायण-महाभारत से प्रेरित है हमारी डिप्लोमेसी...', एस जयशंकर ने क्यों लिया श्रीकृष्ण और हनुमान का नाम

जयशंकर ने कहा कि जब यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू हुआ, तो भारत ने किसी एक पक्ष का साथ देने के बजाय शांति का रास्ता चुना. उन्होंने इसे क्रिकेट से जोड़ते हुए कहा, 'इसके लिए नेट प्रैक्टिस की जरूरत होती है. हमारी सरकार तीसरे कार्यकाल में है और राष्ट्रीय सुरक्षा व विदेश नीति में इसका अनुभव साफ दिखता है.'

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Foreign Minister of India Dr. S Jaishankar (Photo Credit: Business Today)
Foreign Minister of India Dr. S Jaishankar (Photo Credit: Business Today)

विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने बिजनेस टुडे के एक कार्यक्रम BT Mindrush के दौरान भारत की विदेश नीति पर गहराई से चर्चा की. इंडिया टुडे ग्रुप के न्यूज डॉयरेक्टर राहुल कंवल से खास बातचीत करते हुए उन्होंने यूक्रेन-रूस संकट में भारत की तटस्थता की तारीफ को रेखांकित किया साथ ही कहा कि, यह सरकार के अनुभव और निष्पक्ष नजरिए का नतीजा है. इस दौरान उन्होंने विपक्षी नेता शशि थरूर की तारीफ का भी जिक्र किया, जिन्होंने भारत की कूटनीति को सराहा था. अपनी इस परिचर्चा में 

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यूक्रेन-रूस संकट में भारत की तटस्थता
जयशंकर ने कहा कि जब यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू हुआ, तो भारत ने किसी एक पक्ष का साथ देने के बजाय शांति का रास्ता चुना. उन्होंने इसे क्रिकेट से जोड़ते हुए कहा, 'इसके लिए नेट प्रैक्टिस की जरूरत होती है. हमारी सरकार तीसरे कार्यकाल में है और राष्ट्रीय सुरक्षा व विदेश नीति में इसका अनुभव साफ दिखता है.' उन्होंने बताया कि जहां कई देश भावनाओं में बह गए, वहीं भारत ने संकट को निष्पक्षता से देखा और वैश्विक हालात को समझदारी से परखा. पीएम मोदी के वर्ल्ड लीडर्स के साथ रिश्तों और उनकी दूरदर्शिता को भी उन्होंने इसकी वजह बताया.

शशि थरूर पर क्या बोले जयशंकर?
बीते दिनों कांग्रेस नेता शशि थरूर ने जयशंकर और विदेश मंत्रालय की तारीफ की थी, जिस पर जयशंकर ने हल्के अंदाज में कहा, 'मैं हमेशा थरूर के हमारे बारे में फैसले की कद्र करता हूं.' उन्होंने मजाक में यह भी जोड़ा कि इससे थरूर अपनी पार्टी में मुश्किल में पड़ सकते हैं. लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की तटस्थता को अब दुनिया सही मान रही है.

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रूस-यूक्रेन संकट को निष्पक्षता से देखा
रूस-यूक्रेन के युद्ध के दौरान भारत ने बैलेंस कैसे बनाया, इस सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा, 'क्रिकेट की तरह इसमें भी बहुत अभ्यास चाहिए. हमारी सरकार के पास तीसरे कार्यकाल का अनुभव है, खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति में. हमने संकट को निष्पक्षता से देखा, जहां दूसरे देश भावनाओं में बह गए. हमने पिछले 6-7 सालों की प्रोपेगंडा से बचते हुए वैश्विक रुझानों को समझा. पीएम मोदी के रिश्तों और उनके नजरिए ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई.'

भारत की रणनीतिक सोच रामायण-महाभारत से जुड़ी
जयशंकर ने भारतीय रणनीतिक सोच को रामायण, महाभारत और चाणक्य से जोड़ा. उन्होंने कहा, 'पिछले 10-11 सालों में लोगों में विदेश नीति के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है. सोशल मीडिया और टेक्नोलॉजी ने इसे आसान बनाया है.' उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि महाभारत में श्रीकृष्ण की सलाह या रामायण में हनुमान के किरदार के महत्व को लोग आसानी से समझते हैं. 'अगर हम अपनी परंपरा और इतिहास पर गर्व नहीं करेंगे, तो दूसरे देशों से यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं?'

छवि बनाने में करनी होगी मेहनत
भारतीय रणनीतिक सिद्धांत विदेश नीति में कैसे और कितनी शामिल के जवाब में उन्होंने कहा कि, 'यह कहना मुश्किल है कि मैंने कितना अच्छा किया. लेकिन 10-11 सालों में लोगों में विदेश नीति के प्रति जागरूकता बढ़ी है. जयशंकर ने इतिहासकार विलियम डालरिंपल के उस तर्क का जवाब दिया जिसमें कहा गया कि चीनी सिल्क रूट एक आधुनिक मिथक है, जबकि असल व्यापार भारत और रोमन साम्राज्य के बीच था. उन्होंने कहा, 'यह पिछले कुछ सालों का नहीं, बल्कि 200 सालों का नतीजा है. ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में हमारा इतिहास जानबूझकर दबाया गया, जबकि चीन को बढ़ावा दिया गया. आज हम अलग शुरुआती बिंदु से अपनी छवि बना रहे हैं. यह मुश्किल है, लेकिन हम कड़ी मेहनत करेंगे.'
 

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