आने वाली 15 अगस्त को भारत अपनी आजादी के 75 साल पूरे करने जा रहा है. भारत को ये आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली और इससे लगभग दो महीने पहले 19 जून 1947 को मुंबई में सलमान रुश्दी का जन्म हुआ. जो अब बड़े लेखक के रूप में पहचाने जाते हैं. आजादी के दिन आधी रात को पैदा होने वाले बच्चों पर उन्होंने 'मिडनाइट चिल्ड्रन' जैसी कालजयी कहानी रची और इसी उपन्यास ने उन्हें 1981 में पहले उन्हें बुकर अवार्ड दिलाया और बाद में वह 'बुकर ऑफ द बुकर्स' जैसा सम्मान पाने वाले लेखक भी बने.
अब सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में चाकू से हमला किया गया है. अभी वो जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहे हैं, लेकिन इस तरह का हमला करने और जान से मारने की धमकी उन्हें काफी पहले से मिलती रही है.
सलमान रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज' किताब ने ऐसे विवादों को जन्म दिया, जो जिंदगीभर उनके साथ बने रहे. उनकी इस किताब को इस्लाम विरोधी और ईश निंदा करने वाला माना गया. इसी वजह से 1980 के दशक में उन्हें ईरान से जान से मारने की धमकियां मिलीं. ये किताब 1988 से ही ईरान में बैन है, लेकिन इसकी वजह से सलमान रुश्दी हमेशा चरमपंथियों के निशाने पर रहे.
ईरान से निकाला था फतवा
सलमान रुश्दी को ईरान से मिली धमकी किसी भी हालत में मामूली नहीं थी. क्योंकि उन्हें मारने वाले को 30 लाख डॉलर इनाम देने का ऐलान हुआ था. वहीं ईरान में गणतंत्र के संस्थापक और देश के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह रुहोल्ला ख़ुमैनी ने उनके खिलाफ 1989 में फतवा भी जारी किया था. हालांकि बाद में ईरान की सरकार ने इसे उनका निजी विचार बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया था.
साल 2012 में भी सलमान रुश्दी को जान से मारने की धमकी मिली और ईरान के एक धार्मिक संगठन ने ईनाम की राशि को बढ़ाकर 33 लाख डॉलर कर दिया.
'सेफ हाउस' में रहने को मजबूर हुए रुश्दी
भारत में सलमान रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज' पहले से बैन थी और जब 1989 में ईरान ने उनके खिलाफ फतवा जारी किया, उसके कुछ ही दिन बाद मुंबई में एक दंगे में 12 लोगों की मौत हो गई. इंग्लैंड की सड़कों पर ना सिर्फ सलमान रुश्दी के पुतले जलाए गए. बल्कि उनकी किताब की प्रतियां भी जलाई गईं.
इस किताब की वजह से रुश्दी लगभग एक दशक से भी ज्यादा समय तक 'सेफ हाउस' में रहने को मजबूर रहे. लेकिन उन्होंने लिखना बंद नहीं किया. धीरे-धीरे उन्होंने वापस सामान्य जनजीवन जीना शुरू किया. वह पार्टियों और समारोहों में नजर आने लगे.
पिता ने बदला था सरनेम
सलमान रुश्दी का खानदानी सरनेम 'देहलवी' होता था. उनके दादा का नाम ख्वाजा मोहम्मद दिन खालिकी देहलवी था. ये तो उनके पिता अनीस अहमद थे जिन्होंने परिवार को 'रुश्दी' की पहचान दी.
ब्रिटिश राज के दौरान उनके पिता ने कैंब्रिज से शिक्षा पाई और इसी दौरान उन पर महान इस्लामिक दार्शनिक इब्न रुश्द का प्रभाव पड़ा और उन्होंने अपने सरनेम को बदलकर 'रुश्दी' कर दिया.
इस बारे में एक बार सलमान रुश्दी ने कहा भी था कि मेरे वालिद को उनका काम पसंद आया और इसलिए उन्होंने हमारा पारिवारिक नाम 'रुश्दी' रख लिया. नतीजे में उस दार्शनिक में मेरी भी दिलचस्पी पैदा हुई और मैंने भी उसके विचार और तर्कों की तरफ वही खिंचाव महसूस किया, जो मेरे वालिद ने किया था. तो मेरे हिसाब से मेरे अब्बा ने सही चीज को चुना.