scorecardresearch
 

समाजवादी पार्टी की गोवा में एंट्री, क्या कांग्रेस का खेल बिगाड़ेंगे अखिलेश यादव?

गोवा में जहां वर्तमान में भाजपा की सरकार है और आम आदमी पार्टी के दो विधायक हैं, सपा का प्रवेश कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है. कांग्रेस, जो यूपी में दबाव की राजनीति कर रही है.

Advertisement
X
अखिलेश यादव- फाइल फोटो
अखिलेश यादव- फाइल फोटो

उत्तर प्रदेश और गोवा में 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू हो गई है. इसी क्रम में, समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने विश्वस्त सिपहसालार और करीबी मनीष जगन अग्रवाल को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष, व्यापार सभा और गोवा प्रदेश का प्रभारी बनाया है. यह फैसला सपा के राष्ट्रीय पार्टी बनने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.

Advertisement

गोवा में जहां वर्तमान में भाजपा की सरकार है और आम आदमी पार्टी के दो विधायक हैं, सपा का प्रवेश कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है. कांग्रेस, जो यूपी में दबाव की राजनीति कर रही है, गोवा में सपा के एंट्री से खतरे में पड़ सकती है. गोवा में केवल दो पार्टियां, कांग्रेस और भाजपा, मुख्य रूप से सत्ता में रही हैं, और सपा का प्रवेश कांग्रेस के लिए सीधा खतरा हो सकता है.

गोवा की आजादी में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का संघर्ष और योगदान था, और गोवा देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के बाद तेजी से उभरता हुआ प्रदेश है. यहां आर्थिक गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं, और व्यापार सभा के अध्यक्ष के तौर पर मनीष जगन अग्रवाल का वहां पहुंचना सपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. गोवा में विधानसभा की 40 सीटें हैं.

Advertisement

एक देश, एक चुनाव पर क्या है अखिलेश की राय?
देश में अगर एक देश, एक चुनाव की बात करें तो अखिलेश यादव ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए कहा है कि लोकतांत्रिक संदर्भों में 'एक' शब्द ही अलोकतांत्रिक है. 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ''एक देश-एक चुनाव' के संदर्भ में जन-जागरण के लिए आपसे कुछ जरूरी बातें साझा कर रहा हूं. इन सब बिंदुओं को ध्यान से पढ़िएगा क्योंकि इनका बहुत गहरा संबंध हमारे देश, प्रदेश, समाज, परिवार और हर एक व्यक्ति के वर्तमान और भविष्य से है.'

'लोकतांत्रिक संदर्भों में 'एक' शब्द ही अलोकतांत्रिक है. लोकतंत्र बहुलता का पक्षधर होता है. 'एक' की भावना में दूसरे के लिए स्थान नहीं होता, जिससे सामाजिक सहनशीलता का हनन होता है. व्यक्तिगत स्तर पर 'एक' का भाव, अहंकार को जन्म देता है और सत्ता को तानाशाही बना देता है.'

'एक देश-एक चुनाव' का फैसला सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा. ये देश के संघीय ढांचे पर भी एक बड़ी चोट करेगा. इससे क्षेत्रीय मुद्दों का महत्व खत्म हो जाएगा और जनता उन बड़े दिखावटी मुद्दों के मायाजाल मे फंसकर रह जाएगी, जिन तक उनकी पहुंच ही नहीं है.'

'हमारे देश में जब राज्य बनाए गए तो ये माना गया कि एक तरह की भौगोलिक, भाषाई व उप सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के क्षेत्रों को 'राज्य' की एक इकाई के रूप में चिन्हित किया जाए. इसके पीछे की सोच ये थी कि ऐसे क्षेत्रों की समस्याएं और अपेक्षाएं एक सी होती हैं, इसीलिए इन्हें एक मानकर नीचे-से-ऊपर की ओर ग्राम, विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के स्तर तक जन प्रतिनिधि बनाएं जाएं. इसके मूल में स्थानीय से लेकर क्षेत्रीय सरोकार सबसे ऊपर थे. ‘एक देश-एक चुनाव’ का विचार इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही पलटने का षड्यंत्र है.'

Live TV

Advertisement
Advertisement