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सेम सेक्स मैरिज पर केंद्र सरकार के इनकार के बाद कोर्ट के हाथ में क्या है? : आज का दिन, 20 दिसंबर

सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने में क्या पेंच है, महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद केंद्र सरकार की कितनी मुश्किल बढ़ाएगा और एसिड अटैक को लेकर NCRB के आंकड़े क्यों चौंकाते हैं? सुनिए 'आज का दिन' में.

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सेम सेक्स मैरिज पर केंद्र सरकार के इनकार के बाद कोर्ट के हाथ में क्या है?
सेम सेक्स मैरिज पर केंद्र सरकार के इनकार के बाद कोर्ट के हाथ में क्या है?

साल 2001 में नीदरलैंड्स पहला देश बना जहां सेम सेक्स मैरिज लीगल की गई थी. वहाँ की पार्लियामेंट ने बिल पास किया. तबसे अब तक तीस से भी ज्यादा देश ऐसे हैं जहां ऐसी शादियाँ लीगल हो चुकी हैं. अभी कुछ दिन पहले ही अमेरिका में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता मिल गई है. भारत में इसे लेकर चर्चा तो छिड़ी हुई है लेकिन संविधान में अब तक ऐसा कोई प्रावधान जुड़ नहीं सका है. हालांकी समलैंगिक संबंधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में जरूर फैसला सुनाया था जिसमें इन्हें लीगल कर दिया गया था. लेकिन अब इसकी सामाजिक स्वीकार्यता को लेकर शिकायत है. कल ऐसे ही एक मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी. याचिका थी चार गे कपल्स की जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से ये मांग की है कि सेम सेक्स मैरिज को लीगल किया जाए. ये सुनवाई इसलिए भी अहम हो गई है क्योंकि कुछ ही दिन पहले केंद्र सरकार ने इन शादियों को लीगल बनाने से इनकार कर दिया था. कल आया इस पर एक बयान, जिसके बाद से इस पर चर्चा ने और तूल पकड़ लिया. बिहार बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा कि कोर्ट को इस मामले पर कोई भी फैसला देने से बचना चाहिए. हालांकि इस पूरे मामले पर एलजीबीटी राइट्स वर्कर्स का कहना है कि 2018 के फैसले ने उनको अधिकार तो जरूर दिए लेकिन अभी भी वो विवाह के अधिकार से वंचित हैं जो आम तौर पर सभी जोड़ों को मिला हुआ है. सवाल ये है कि अगर होमोसेक्सुअल संबंध लीगल हैं तो फिर ऐसी शादियों को लीगल करने में पेंच क्या है और इस मामले में कोर्ट के हाथ में क्या कुछ है? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 

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सीमा को लेकर दो पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक का विवाद अब भी उफ़ान पर है. राजनीति भी ख़ूब हो रही है. कल भी महाराष्ट्र में विपक्ष ने प्रदर्शन किया. शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी तीनों मिल कर महाराष्ट्र की शिंदे-फडणवीस सरकार पर हमलावर हैं. अभी चौदह दिसम्बर को ही गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी पार्टी के दोनों मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी. तय हुआ था कि अब इस मामले का निपटारा कोर्ट करेगा. तब तक दोनों पक्ष शांत रहें. महाराष्ट्र में प्रदेश सरकार डिफेंस मोड पर है क्योंकि एनसीपी समेत उद्धव ठाकरे ने इसे मराठी अस्मिता से जोड़ दिया है. महाराष्ट्र की मांग है कि विवादित इलाके में अधिकतर लोग मराठी हैं तो ये इलाका महाराष्ट्र का है. जबकि कर्नाटक का दावा उल्टा है. कल के प्रदर्शनों के बाद महाराष्ट्र सरकार ने शिवसेना उद्धव गुट समेत तमाम विपक्षी नेताओं की एंट्री बैन कर दी है..लेकिन कैसे ये प्रदर्शन राज्य सरकार की मुश्किल बढ़ा रहे हैं और ग्राउंड पर इन प्रदर्शनों का स्तर कैसा है और केंद्र सरकार की चुनौती किस तरह से बढ़ाएगा ये विवाद? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 
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देख तेज़ाब से जले चेहरे, हम हैं ऐसे समाज का हिस्सा

फरीहा नकवी का ये शेर है. समस्या पुरानी है. एसिड अटैक से झुलसे चेहरे किसी भी समाज पर दाग ही है. ये कहना भी गलत नहीं होगा. जिस तरह पाल्यूशन बढ़ने पर साल भर एक बार पराली जलाने का मामला उठता है और थोड़े दिन बाद सब शांत हो जाती है, उसी तरह जब एसिड अटैक होता है तो मालमा सामने आकर थोड़े दिन में शांत हो जाता है. राजनीति होती है... बयानबाजी होती है और फिर भूल जाते हैं... लेकिन एनसीआरबी का जो डेटा आया है वो इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है... डेटा के मुताबिक पिछले पाँच सालों में करीब 1000 एसिड अटैक के केस आए हैं. साल भर में 200. लेकिन बात यहीं तक नहीं है. अनगिनत केस ऐसे भी हैं जो कहीं दर्ज नहीं होते. और ज्यादातर इन मामलों में विकटिम के जानने वाले ही उनके दोषी होते हैं. इसी को अगर हम ग्लोबली देखें तो इस अटैक के शिकारों का अस्सी प्रतिशत महिलाएं हैं और 60 परसेंट केसेस अनरिपोर्टेड रह जाते हैं. प्रॉबलम इससे आगे भी बढ़ती है जब कनविक्शन की बात आती है. दोषियों को सजा के मामले में भी हालत बुरी है. अब ऐसा नहीं है कि सरकार ने कुछ नहीं किया. हमलों को रोकने के लिए भारत में साल 2013 में जनता को तेजाब की काउंटर पर बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया. जिसके मुताबिक, सिर्फ वही लोग एसिड खरीद सकते हैं, जिनके पास लाइसेंस है. एसिड की खरीद के लिए पहचान को भी अनिवार्य कर दिया गया, लेकिन तेजाब हमेशा की तरह खुलेआम धड़ल्ले से बिक रहा है..राज्यवार देखने पर कहाँ स्थिति बुरी दिखाई दे रही है और दोषियों को सज़ा क्यों नहीं मिल पति? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 
 

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