सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है. केंद्र ने अपने हलफनामे के जरिए इसका विरोध किया है. जोर देकर कहा गया है कि यह सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार (स्वाभाव या प्रकृति) के अनुरूप नहीं है. अब कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने इस मुद्दे पर अपने विचार रखे हैं. उनकी तरफ से साफ कहा गया है कि सरकार किसी के अधिकारों के खिलाफ नहीं है, लेकिन बात जब शादी की आती है, तब ये नीतिगत मामला बन जाता है.
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सरकार किसी की निजी जिंदगी या उसकी गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं कर रही है. निजी आजादी पर कभी भी सवाल नहीं उठाया गया है या सरकार ने उस पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है. लेकिन बात जब शादी की आती है, ये एक नीतिगत मामला है जिस पर चर्चा की जरूरत है. अब ये बयान मायने रखता है क्योंकि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज का विरोध किया है. उसने इसे समाज, संस्कृति के खिलाफ बताया है. केंद्र का पक्ष रखते हुए एसजी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हमने (केंद्र) हलफनामे में कहा है कि भारतीय वैधानिक और व्यक्तिगत कानून शासन में विवाह की विधान संबंधी समझ केवल एक जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच विवाह को संदर्भित करती है. इसमें कोई भी हस्तक्षेप व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन का विनाश होगा. इससे पहले सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि यह मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में है. इसलिए मामले में संसद में ही बहस हो सकती है.
हलफनामे में आगे कहा गया कि मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना ही उचित है. कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. क्योंकि उसमे पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा? अभी के लिए समलैंगिक विवाह (same sex marriage) को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई याचिका पर अब 18 अप्रैल को सुनवाई होगी. याचिका पर 5 जजों की संवैधानिक बेंच 18 अप्रैल को सुनवाई करेगी.