
देवी चामुण्डा की प्रतिमा सामने थी. पंडित मंत्र पढ़ते हुए देवी का आह्वान कर रहे थे. पूजा पर बैठी थीं भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी. वह पंडित के कहे अनुसार मुद्राएं बना रही थीं. लेकिन उनके आंसू थे कि रुक नहीं रहे थे. वह रोती जा रही थीं, रोती ही जा रही थीं. इंदिरा की आंखों से टपक रहे नयनजल प्रायश्चित के थे या फिर पश्चाताप के! मां इंदिरा का विलाप अपने छोटे बेटे और क्राउन प्रिंस संजय गांधी के लिए था. जिन्हें वह कुछ ही महीने पहले सदा के लिए खो चुकी थीं.
आज उन्हीं संजय गांधी की जयंती है. संजय होते तो आज जीवन के 77 वसंत पूरे कर चुके होते. लेकिन 16वीं सदी के उस मंदिर में भारत की प्रधानमंत्री! माजरा क्या था? फिर ये अनुष्ठान? और सबसे हैरानकुन सवाल- आयरन लेडी इंदिरा के नैन देवी के सामने बरस क्यों रहे थे?
इन सवालों पर पड़े रहस्यों से पर्दा उठाया है वरिष्ठ पत्रकार और इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने. उन्होंने अपनी किताब 'How Prime ministers decide' में बतौर पत्रकार देश के प्रधानमंत्रियों की जिंदगी में करीबी से दस्तक दिया है और पन्ना-पन्ना पलटते पलटते वहां तक चली गई हैं, जहां उस किरदार पर कोई मुखौटा नहीं होता. इस किताब में नीरजा ने इंदिरा की शख्सियत के अंदर मौजूद कोमल मां को टटोला है.
शपथ ग्रहण के बाद कीर्तन करने आ गईं इंदिरा
तो किस्सा यूं है. नीरजा चौधरी अपनी किताब में लिखती हैं- जनवरी 1980 में इंदिरा फिर से देश की प्रधानमंत्री चुनी गईं. 14 जनवरी 1980 को जब वे पीएम पद की शपथ लीं, उसी दिन उन्होंने 12 विलिंग्टन क्रेसेंट रोड स्थित अपने आवास पर कीर्तन का आयोजन किया था. उत्तर भारत में पावन मौकों पर इस तरह का आयोजन आम हैं. राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण के बाद वे तुरंत अपने घर आ गईं और कीर्तन में शामिल हो गईं.
इसी दौरान इंदिरा के इनर सर्किल में शामिल अनिल बाली ने उन्हें याद दिलाया कि अब चुनाव समाप्त हो चुका है, शपथ ग्रहण भी हो चुका है. इसलिए उन्हें अपने वादे के अनुसार चामुण्डा देवी के दर्शन करने के लिए जाना चाहिए. इंदिरा ने तुंरत ही सहमति में हामी भरी. उन्होंने अनिल बाली से कहा कि इस यात्रा के लिए उन्हें 4-5 महीने का समय चाहिए.
बता दें कि अनिल बाली मोहन मीकिन ग्रुप के कपिल मोहन के भतीजे थे. इस परिवार की इंदिरा गांधी से नजदीकियां थीं.
देवी चामुण्डा के दर्शन का बना प्लान
आगे के दिन इंदिरा के लिए काफी व्यस्त रहे. इधर संजय अब दनादन फैसले ले रहे थे. आखिरकार मई 1980 में इंदिरा को फुर्सत मिली. मई 1980 में इंदिरा के निजी सचिव आरके धवन का एक पत्र अनिल बाली को मिला. पत्र में अनिल बाली को कहा गया कि प्रधानमंत्री 22 जून 1980 को चामुण्डा देवी मंदिर का दौरा करना चाहती हैं. लिहाजा इसके लिए तैयारी करवाई जाए.
नीरजा कहती हैं कि इस समय तक इंदिरा देश के नामी मंदिरों के दौरे कर रही थीं. चामुण्डा देवी का ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित है. इंदिरा की हामी के बाद चामुण्डा देवी मंदिर में प्रधानमंत्री के आगमन की तैयारियां शुरू हो गईं.
खुद बाली और उनके परिवार के लोग मंदिर पहुंचे और पुजारी से विशेष पूजा की तैयारी करने को गया है. नीरजा अपनी पुस्तक में लिखती हैं,"हिमाचल प्रदेश की पूरी सरकार... स्वयं मुख्यमंत्री रामलाल कैंप कर रहे थे." सारी तैयारी हो गई थी.
साधारण मनुष्यों को मां क्षमा कर देती है, लेकिन शासक को...
तभी 20 जून की शाम को अचानक चामुण्डा मंदिर संदेश जाता है कि इंदिरा का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है. इस सूचना को सुनकर पंडित मानो उबल पड़ा. नीरजा लिखती हैं- उसने कहा, "आप इंदिरा से कहिए, ये चामुण्डा हैं, यदि कोई साधारण मनुष्य नहीं आ पाता है तो मां क्षमा कर देती हैं, लेकिन शासक अपमान करता है तो मां क्षमा नहीं करती हैं, देवी की अवमानना नहीं कर सकते." बाली ने पुजारी से बात की और उन्हें समझाने की कोशिश की.
नीरजा बताती हैं कि इंदिरा 1977-80 के बीच बेहद धार्मिक की प्रवृति हो गई थीं. चामुण्डा वो स्थल था जहां इंदिरा की गहरी आस्था थी. इसके अलावा वो दूसरे मंदिरों में हाजिरी दे रही थीं. देश का कोई भी ऐसा बड़ा मंदिर नहीं था जहां वो नहीं पहुंची थीं. वो कहती हैं कि इंदिरा संजय गांधी को लेकर बेहद फिक्रमंद रहा करती थीं, आपातकाल के बाद का घटनाक्रम ऐसा था कि इंदिरा को डर लगा रहता था कि संजय को नुकसान पहुंचाया जा सकता है. उनके बार-बार मंदिर जाने की एक वजह यह भी थी.
23 जून की सुबह मंदिर में विधिवत पूजा की गई. लेकिन वहां इंदिरा मौजूद नहीं थी. पूजा के बाद बाली का पूरा ग्रुप वहां से निकल गया. लेकिन अनहोनी तो आने वाली थी. वे लोग 50 किलोमीटर ही निकले थे. इस किताब में बाली के बयान को याद करते हुए नीरजा लिखती हैं, "अभी हम 50 KM दूर ज्वालामुखी मंदिर ही पहुंचे थे कि मेरा सचिव मेरे पास दौड़ता हुआ आया, उसने कहा- संजय गांधी का प्लेन क्रैश हो गया है! रेडियो पाकिस्तान पर खबर आ रही है.
क्या मैं चामुण्डा देवी नहीं गई इसलिए...
अनिल बाली को लगा जैसे वज्र गिरा हो. हिमाचल से वो तुंरत दिल्ली की ओर निकले. अनिल देर रात 2.30 बजे इंदिरा के आवास पहुंचे. वो सीधा इंदिरा के पास पहुंचे, पीएम स्तब्ध और काठ सी होकर संजय गांधी के शव के पास बैठी थीं. अनिल बाली को देखते ही वे उनसे बात करने के लिए उठीं. इंदिरा ने पूछा- क्या इस हादसे का मेरा चामुण्डा न जाने से कोई संबंध है?
अनिल बाली ने उन्हें संभाला- मैडम इस बात को अभी करने का सही समय नहीं है. बाद में चर्चा करूंगा.
दरअसल, संजय न सिर्फ राजनीति में बल्कि अपनी निजी जिंदगी में भी अपने डेयर डेविल एक्ट के लिए जाने जाते थे. 23 जून 1980 की उस एक फ्लाइट ने गांधी परिवार में दुखद घटनाओं की श्रृंखला शुरू कर दी.
एक रात अचानक सोकर उठीं...
संजय की पत्नी और बीजेपी सांसद मेनका गांधी ने कार्यक्रम रोंदवू विद सिमी ग्रेवाल में संजय की हाई स्पीड जिंदगी, जोखिम भरे शौक और इस हादसे का वर्णन सिनेमाई रोमांच के साथ किया है.
मेनका से जब पूछा गया कि क्या संजय की जिंदगी के उथल-पुथल देखकर उन्हें किसी तरह का अंदेशा नहीं होता था? इसका जवाब हां में देते हुए मेनका कहती हैं, "उनकी मौत से एक साल पहले ही इंदिरा जी और मुझे लगता था कि उनकी जान जाने वाली है. एक रात मैं अचानक सोकर उठी और मुझे ऐसा एहसास हुआ कि कुछ होने वाला है, मैंने एक माला लिया और हर रात गुहार लगाने लगी कि प्लीज मुझे ले जाओ, मुझे ले जाओ... अगर किसी को जाना ही है तो मुझे ले जाओ."
अब वो नहीं रहा, उपवास का क्या मतलब
इसी इंटरव्यू में मेनका बताती है कि मेरी सास मंगलवार को उपवास रखा करती थीं, हनुमान जी की वजह से... और जब संजय का निधन हुआ, उनका निधन सोमवार को हुआ था, अगले दिन उन्होंने उपवास नहीं रखा, मैंने उनसे पूछा आपने उपवास क्यों नहीं रखा? इस पर उन्होंने कहा- अब तो वो नहीं रहा तो अब उपवास का क्या मतलब? तब मेनका बोली- क्या आपने इसी महीने इसे शुरू नहीं किया था. उन्होंने कहा- हां, फिर मैंने उनसे पूछा- क्या आपको पता था कि उनका समय आ गया है? वो बोलीं- हां, इसलिए मैं पूजा कर रही थी.
आए सत्य साईं बाबा
मेनका आगे कहती हैं कि उनकी मौत से एक महीना पहले मैं हर वक्त रोया ही करती थी. मुझे बहुत डर लगा करता था. मैं उन्हें देखती और रोती रहती, रोती रहती. मैं कुछ नहीं समझ पा रही थी. मुझे डरावने सपने आते थे. सिमी ग्रेवाल के साथ इस इंटरव्यू में मेनका ने बताया कि उनके निधन से एक सप्ताह पहले सत्य साईं बाबा आए और पूछा क्यों रो रही हो? उन्होंने कहा- तुम्हारे पति को कुछ नहीं होगा.
मां...आप संजय से कहें कि...
इसके बाद मेनका ने संजय की मौत से पहले वाली सांझ की भावुक करने वाली तस्वीर बयां की. मेनका कहती हैं कि उस शाम हम दोनों ने उसी प्लेन से उड़ान भरी. ये पहली बार था जब वो प्लेन में जा रहे थे. प्लेन के उड़ान भरते ही मैं चिल्लाने लगी. मैं रो रही थी, चिल्ला रही थी, मुझे लगता है कि मैं 2 घंटे तक रोती रही. प्लेन से उतरते ही मैं घर की ओर भागी. मैं सीधे अपनी सास के पास गई और बोली- मां, आप जानती हैं कि मैंने अपनी जिंदगी में आपसे कुछ नहीं मांगा है. मैं अब आपसे ये चाहती हूं कि आप संजय से कहें कि वे इस प्लेन को न उड़ाएं. वो कोई भी प्लेन उड़ा सकते हैं, लेकिन इसको नहीं.
ये तो मर्दों का जहाज है...
बता दें कि संजय गांधी उस रोज टू-सीटर प्लेन पीट्स-S2A को उड़ा रहे थे. मेनका बताती हैं कि संजय तो वहां थे ही, धीरेंद्र ब्रह्मचारी भी वहां थे. तब इंदिरा बोलीं- मेनका ने कभी किसी चीज पर इतना जोर नहीं दिया, इसलिए अगर वह न कह रही है तो न जाओ तुम. लेकिन संजय मेरी पुकार और गुहार को नजरअंदाज कर रहे थे. तभी धवन आए और उन्होंने कहा- अरे ये तो मर्दों का जहाज है. इस पर सिर्फ मर्द जा सकते हैं. मेनका जी ऐसा कह रहीं क्योंकि वो औरत हैं. तभी इंदिरा ने संजय से पूछा कि क्या ये जहाज सेफ है, मैंने कहा- नहीं मां ये सेफ नहीं है, ये खतरनाक प्लेन है... और अगली सुबह यानी कि 23 जून को वो इसी प्लेन के हादसे में अपनी जान गवां बैठे.
बड़ी बीवी जी आपको अस्पताल बुला रही हैं
मेनका कहती हैं कि इसलिए मैं जानती थी कि कुछ हादसा होने वाला है. मेनका से जब पूछा गया कि उन्हें इस हादसे की खबर कैसे मिली तो उन्होंने कहा- आया आई और बोली- बड़ी बीवी जी आपको अस्पताल बुला रही हैं. तभी मेरे हाथ से कुछ गिर गया. मुझे अंदेशा तो था ही, मैं कार में रोती जा रही थी. अस्पताल पहुंचते ही मैंने देखा एक बॉडी निकाली जा रही है.
बताओ उस दिन क्या हुआ था
एक बार फिर बात इंदिरा और अनिल बाली की. 33 साल की उम्र में संजय इस दुनिया में नहीं रहे. 23 जून के इस हादसे के चार दिन बाद अनिल बाली 1 अकबर रोड पहुंचे. शोक में डूबी इंदिरा के साथ थे सुनील दत्त और अभिनेत्री नरगिस. इंदिरा तत्काल बाली को एक कोने में ले गईं और पूछीं कि अब बताओ उस दिन क्या हुआ था?
अनिल बाली ने कहा कि आप जिस दिन चामुण्डा देवी मंदिर आने वाली थीं उस दिन क्या हुआ था. यात्रा कैसे रद्द हुई थी. इंदिरा ने उस दिन के घटनाक्रम को याद करते हुए कहा कि उन्हें पता नहीं कि उनका कार्यक्रम किसने रद्द किया. वो संजय के साथ जम्मू गई थीं. मुझे संजय के साथ ही मंदिर दर्शन के लिए आना था. लेकिन मुझे बताया गया कि चामुण्डा में बारिश हो रही है, इसलिए इस कार्यक्रम को रद्द किया गया.
वहीं पंडित आया इंदिरा के सामने
इसके कई महीनों के बाद साल के अंत में इंदिरा गांधी दिसंबर में चामुण्डा मंदिर पहुंचीं. तारीख थी 13 दिसंबर 1980. 14 दिसंबर को संजय का जन्मदिन हुआ करता था. लेकिन इंदिरा संजय की यादों के साथ उसी मंदिर में पहुंचीं. देवी चामुण्डा के सामने. इंदिरा की पूजा कराने वही पंडित था जिसने कहा था कि मां शासकों का अनादर सहन नहीं करती हैं.
इंदिरा रोये जा रही थीं, वो सिर्फ रो रही थीं
नीरजा अपनी किताब में लिखती हैं, 'पंडित ने पूजा शुरू की, उसके हाथ कांपने लगे, इंदिरा पूरी तल्लीनता से पूजा में डूबी हुईं थीं. वो पंडित के कहे अनुसार काली की पूजा के लिए मुद्राएं बना रही थीं. गर्भ गृह में पूर्णाहूति के लिए पंडित के मंत्र दोहरा रही थीं. वो सभी विधान गहरे परफेक्शन के साथ निभा रहीं थीं'. नीरजा कहती हैं, इस दौरान इंदिरा रोये जा रही थीं, रोये ही जा रही थीं. वो सिर्फ रो रही थीं.
विलाप कर रही इंदिरा को सांत्वना दी उसी पंडित ने. उसने कहा कि अब आपको नहीं रोना है. भारत के नागरिक आपके बेटे-बेटियां हैं. आप उनको देखिए. मंदिर से निकलकर इंदिरा ने एक पेड़ लगाया जो संजय गांधी के पंच सूत्री कार्यक्रम का हिस्सा था. उसी शाम वो दिल्ली आईं और एक कार्यक्रम में अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को पब्लिक के सामने प्रस्तुत किया. गांधी परिवार का समय चक्र अब आगे बढ़ चुका था.