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'छोटी सी कोठरी में शुरुआती 11 दिन कठिन थे...', संजय सिंह ने सुनाई जेल में बिताए 6 महीने की आपबीती

संजय सिंह ने कहा कि जेल में मुझे निश्चित समय पर म्यूजिक रूम, बैडमिंटन कोर्ट में जाने की अनुमति मिल गई थी. यहां तक कि खाने से संबंधित मुद्दों का भी समाधान किया गया था. संजय ने कहा कि उनके पास मोबाइल फोन नहीं था, इसलिए उन्होंने जेल के समय का उपयोग किताबें पढ़ने में किया.

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संजय सिंह ने तिहाड़ जेल में बिताए 6 महीने के अनुभव बताए
संजय सिंह ने तिहाड़ जेल में बिताए 6 महीने के अनुभव बताए

AAP पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने अपने जेल में बिताए दिनों को याद किया. उन्होंने कहा कि तिहाड़ जेल में 6 महीने रहने के दौरान वह काफी दृढ़ और बहादुरी के साथ रहे. यहां तक कि उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों से भी कहा था कि बातचीत के दौरान रोना नहीं है. संजय सिंह को पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दे दी थी. वह करीब 6 महीने तक तिहाड़ जेल में बंद रहने के बाद 3 अप्रैल को रिहा हुए थे. 

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समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक संजय सिंह ने तिहाड़ के अंदर के अपने दिनों को याद किया. उन्होंने कहा कि शुरुआती 11 दिन काफी कठिन थे. मैं एक छोटी सी कोठरी के अंदर था और मुझे बाहर जाने की अनुमति नहीं थी. मैं पुलिस सुरक्षा में था, इसके बाद मैंने जेल प्रशासन से बात की और मांग की कि मुझे एक सामान्य कैदी के रूप में अधिकार दिए जाएं. उन्हें पुलिस सुरक्षा के तहत निश्चित समय पर बाहर जाने की अनुमति दी गई थी.

 

6 महीने में नेल्सन मंडेला और महात्मा गांधी की किताबें पढ़ीं

संजय सिंह ने कहा कि जेल में मुझे निश्चित समय पर म्यूजिक रूम, बैडमिंटन कोर्ट में जाने की अनुमति मिल गई थी. यहां तक कि खाने से संबंधित मुद्दों का भी समाधान किया गया था. संजय ने कहा कि उनके पास मोबाइल फोन नहीं था, इसलिए उन्होंने जेल के समय का उपयोग किताबें पढ़ने में किया. AAP नेता ने बताया कि उन्होंने 6 महीने में नेल्सन मंडेला, महात्मा गांधी, डॉ. राम मनोहर लोहिया, भगत सिंह की रचनाएं पढ़ीं. 6 महीने में उन्होंने जितानी किताबें पढ़ीं, उतना पिछले 6 साल में नहीं पढ़ पाए.

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'परिवार ने बहादुरी से समय बिताया'

तिहाड़ में 6 महीने बिताने के बाद राज्यसभा सांसद ने कहा कि उनका मनोबल काफी मजबूत है और इससे उनकी आगे की लड़ाई मजबूत होगी. या तो आप घर बैठें या लड़ें, हम लड़ेंगे. जब संजय सिंह जेल में थे तो उनकी पत्नी अनीता ही सब कुछ संभाल रही थीं. इस बारे में उन्होंने कहा कि अनीता सिंह ने बहादुरी के साथ समय काटा. उन्होंने कहा कि किसी भी परिवार के लिए ये एक कठिन स्थिति है, अगर वे ऐसी परिस्थितियों से जूझते हैं. लेकिन सवाल ये है कि हम मजबूती से कैसे खड़े रह सकते हैं? मैं बहुत सतर्क था. मुझे पता था कि कैदियों और उनके परिवारों के बीच होने वाली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग रिकॉर्ड की जाती है. उन्होंने कहा कि वह अपने परिवार को जेल के दिलचस्प किस्सों या किसी मजेदार घटना से खुश करने की कोशिश करेंगे. संजय सिंह ने कहा कि वह अपने परिवार को ऐसी कहानियां सुनाएंगे, जो उन्हें हंसाएं. पहले दिन उन्होंने मुझसे पूछा कि आप कैसे हैं, आपकी सेहत कैसी है, तो मैंने उनसे कहा कि हमेशा मुझसे पूछें 'जेल वाले कैसे हैं'. किसी को रोने की इजाजत नहीं थी. मैंने उन्हें बताया कि ये सब रिकॉर्ड किया जा रहा है. कुछ लोग उन्हें रोते हुए या संजय सिंह को उदास देखकर खुश होंगे.

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जेल नंबर दो में सेल नंबर 28 था ठिकाना

संजय सिंह को जेल नंबर दो में सेल नंबर 28 में रखा गया था, लेकिन बाद में उन्हें जेल नंबर पांच में शिफ्ट कर दिया गया था. इस बारे में उन्होंने कहा कि ये काफी अजीब है. मुझे जेल नंबर दो से जेल नंबर पांच में शिफ्ट कर दिया गया. मनीष सिसौदिया अलग जेल में हैं और सत्येन्द्र जैन अलग जेल में हैं. मुझे नहीं पता कि वे हमें इतना बड़ा आरोपी क्यों मानते हैं कि हम सभी को अलग-अलग जेलों में चौबीसों घंटे सीसीटीवी की निगरानी में रखा गया था.
 

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