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'शव दफनाने के बाद उसे कब्र से बाहर निकालना सही नहीं', हैदरपोरा एनकाउंटर केस में SC की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हैदरपोरा एनकाउंटर मामले में मारे गए आमिर माग्रे के शव को कब्र से बाहर निकालने से इनकार कर दिया. अदालत ने आमिर माग्रे के पिता लतीफ माग्रे की याचिका पर यह फैसला सुनाया. दरअसल लतीफ माग्रे ने जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट के उस आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती दी थी, जिसमें परिवार को मृतक की कब्र पर दुआ पढ़ने की तो मंजूरी दी गई थी लेकिन शव को कब्र से बाहर निकालने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया गया था. 

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सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हैदरपोरा एनकाउंटर मामले में मारे गए आमिर माग्रे के शव को कब्र से बाहर निकालने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि शव को एक बार दफनाए जाने के बाद उसे कब्र से बाहर नहीं निकाला जाना चाहिए. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं, जिससे पता चले कि मृतक को अदब से दफनाया नहीं गया था.

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अदालत ने आमिर माग्रे के पिता लतीफ माग्रे की याचिका पर यह फैसला सुनाया. दरअसल लतीफ माग्रे ने जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट के उस आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती दी थी, जिसमें परिवार को मृतक की कब्र पर दुआ पढ़ने की तो मंजूरी दी गई थी लेकिन शव को कब्र से बाहर निकालने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया गया था. 

इस मामले में हाईकोर्ट ने परिवार के अधिकतम 10 सदस्यों को मृतक की कब्र पर फातिहा ख्वानी (दफनाने के बाद पढ़ी जाने वाली दुआ) की मंजूरी दी थी. इसके साथ ही अदालत ने पीड़ित परिवार को पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद दिए जाने का भी निर्देश दिया था.

लेकिन आमिर माग्रे के पिता ने हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर काफी सोच-विचार के बाद कहा कि एक बार शव को दफनाने के बाद उसे कानून की जद में माना जाता है इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.

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अदालत के मुताबिक, कब्र से शव को बाहर निकालने की मंजूरी तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक यह पुख्ता नहीं हो जाए कि न्याय मिलने के लिए यह जरूरी है. हालांकि, इस मामले में प्रशासन ने कहा कि उन्होंने पूरे सम्मान के साथ शव को दफनाया है और कब्र पर सभी तरह की दुआएं पढ़ी गई हैं.

अदालत ने कहा कि सम्मान का अधिकार और उचित व्यवहार सिर्फ जीवित व्यक्ति के लिए ही नहीं बल्कि मृतकों के लिए भी है. अदालत ने तर्क दिया कि अदालत को भावनाओं के आधार पर फैसला नहीं करना चाहिए बल्कि कानून के आधार पर फैसला लेना चाहिए.

बता दें कि पिछले साल 15 नवंबर को हैदरपोरा इलाके में एक मुठभेड़ के दौरान एक पाकिस्तानी आतंकी समेत चार लोग मारे गए थे. पुलिस का दावा था कि एनकाउंटर में मारे गए चारों लोगों का आतंकी कनेक्शन था. लेकिन मरने वालों में से तीन लोगों के घरवालों ने इस मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए उन्हें बेगुनाह बताया था. इस मामले के तूल पकड़ने पर एसआईटी गठित कर जांच के आदेश दिए गए थे. 

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