राजद्रोह कानून (Sedition Law) की वैधता पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस कानून की समीक्षा पूरी होने तक कोई नया केस दर्ज नहीं होगा. कोर्ट ने पहले से दर्ज मामलों की सुनवाई पर भी रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि जो लोग इस कानून के तहत जेल में बंद हैं वो जमानत के लिए अपील कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए ये भी कहा है कि इस कानून का गलत इस्तेमाल हुआ है और देश के नागरिकों के अधिकार की रक्षा जरूरी है.
कोर्ट का ये आदेश उन लोगों के लिए राहत के तौर पर देखा जा रहा है जो राजद्रोह के आरोप में जेल में बंद हैं. साथ ही उन लोगों के लिए भी जिनके खिलाफ राजद्रोह के केस लगाए गए हैं. लेकिन क्या राजद्रोह कानून पर रोक लगने से ही ऐसे लोग जेल से बाहर आ जाएंगे या फिर उन्हें केस से राहत मिल जाएगी?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मतलब यह नहीं है कि वर्तमान में जेल में बंद आरोपी को अब रिहा कर दिया जाएगा क्योंकि केवल राजद्रोह कानून पर रोक लगाई गई है और सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इन आरोपियों के खिलाफ कानून की अन्य धाराओं के तहत कार्यवाही जारी रहेगी. वे जमानत के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं. लिहाजा, अब ये उस कोर्ट पर निर्भर करेगा जहां जमानत की अर्जी लगाई जाएगी या अर्जी लंबित है.
सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने इंडिया टुडे को बताया कि, "अदालत ने प्रभावी रूप से कानून को स्थगित कर दिया है. राज्यों को सलाह जारी की जाएगी, कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा. जो लोग जेल में हैं वो राहत के लिए उपयुक्त अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं, जहां अदालतों को फैसला करना होगा."
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने बताया है कि इस तरह के 800 से ज्यादा केस लंबित हैं.
नवनीत राणा के वकील ने किया स्वागत
हाल ही में महाराष्ट्र में भी इस कानून से जुड़ा एक हाई प्रोफाइल केस सामने आया है. अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा ने महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे के घर के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने का ऐलान किया था, जिसके बाद उनके खिलाफ एक्शन लिया गया. नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा को गिरफ्तार किया गया और राजद्रोह का केस भी लगाया गया. अब जबकि कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगा दी है तो नवनीत राणा के वकील ने इसका स्वागत किया है.
उमर खालिद- जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद के खिलाफ भी राजद्रोह का केस चल रहा है. उमर दिल्ली की जेल में बंद हैं. उनके खिलाफ 2020 के दिल्ली दंगों को लेकर ये केस चल रहा है. उमर की जमानत याचिका दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष लंबित है.
शरजील इमाम- शरजील इमाम पर राजद्रोह का केस है और वो जेल में बंद है. शरजील के खिलाफ यूपी में ये केस चल रहा है. शरजील पर 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएए कानून के खिलाफ बयान देते हुए भड़काऊ भाषण देने का आरोप है. शरजील के वकील तनवीर अहमद मीर ने कहा है कि वो दिल्ली हाई कोर्ट में कल (गुरुवार) जमानत की अर्जी देंगे. शरजील 28 महीनों से जेल में बंद है.
कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ भी गुजरात में राजद्रोह के केस चल रहे हैं. इनके अलावा कुछ पत्रकार भी इस कानून का सामना कर रहे हैं. मणिपुर के जर्नलिस्ट किशोर चंद्र और छत्तीसगढ़ के जर्नलिस्ट कन्हैया लाल शुक्ला पर भी राजद्रोह का केस चल रहा है. इनके खिलाफ सोशल मीडिया पोस्ट और कार्टून शेयर करने के आरोप में केस दर्ज किया गया है.
विवादित धर्मगुरु कालीचरण ने रायपुर की धर्मसंसद में महात्मा गांधी के खिलाफ आपत्तिजनक बातें कही थीं. जिसके लिए उनके खिलाफ राजद्रोह का केस भी लगाया गया था. कालीचरण फिलहाल बेल पर है.
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी भी यूपी सरकार के खिलाफ आपत्तिजनक भाषण देने के मामले में इस कानून का सामना कर रहे हैं.
क्या है राजद्रोह कानून?
IPC की धारा 124 (A) के अनुसार, राजद्रोह एक अपराध है. राजद्रोह के अंतर्गत भारत में सरकार के प्रति मौखिक, लिखित या संकेतों और दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने के प्रयत्न को शामिल किया जाता है. हालांकि, इसके तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किए बिना की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता. राजद्रोह गैरजमानती अपराध है. राजद्रोह के अपराध में तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और इसके साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
गृह मंत्रालय के आकंड़ो के मुताबिक, 2014 से 2019 के बीच कुल राजद्रोह के कुल 326 केस दर्ज किए गए. इसमें से सबसे ज्यादा केस असम (54) में दर्ज हुए. कुल दर्ज मामलों में से 141 केसों में चार्जशीट दायर हुई है. वहीं सिर्फ छह लोगों को इस कानून के तहत दोषी पाया गया है.
(कनू सारदा के इनपुट के साथ)