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नोएडा-ग्रेटर नोएडा के बिल्डर्स को SC से झटका... जानें 7 नवंबर के ऑर्डर पर क्यों है आपत्ति और घर खरीदारों पर क्या होगा असर?

सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बिल्डरों की उस अपील को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने 7 नवंबर 2022 को जारी आदेश को निरस्त करने की मांग की थी. दरअसल, पिछले साल 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर जमीन के बकाये भुगतान में देरी होने पर लगने वाले 8 फीसदी ब्याज की सीमा को हटा दिया था. जानें क्या है ये पूरा मामला और घर खरीदारों पर क्या होगा असर?

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जमीन के बकाये भुगतान में बिल्डरों को ज्यादा ब्याज देना होगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
जमीन के बकाये भुगतान में बिल्डरों को ज्यादा ब्याज देना होगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बिल्डर्स को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया है, जो अदालत ने पिछले साल 7 नवंबर को जारी किया था. 

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7 नवंबर को जारी आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2020 के उस आदेश को वापस ले लिया था, जिसमें बिल्डरों के लिए जमीन की कीमत के भुगतान में देरी पर ब्याज की दर 8 फीसदी तय की गई थी. 

दरअसल, 10 जून 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी की वजह से ब्याज की दर 8 फीसदी तय कर दी थी. इसके बाद 19 अगस्त और 25 अगस्त 2020 को भी इसी आदेश को दोहराया गया. लेकिन पिछले साल 7 नवंबर को अदालत ने इस आदेश को वापस ले लिया था. यानी, नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण बिल्डरों से जमीन की कीमत के भुगतान में देर होने पर 8 फीसदी से ज्यादा ब्याज वसूल सकते हैं.

क्या है पूरा मामला?

- कोरोना महामारी की वजह से रियल एस्टेट की हालत खराब हो गई थी. इसे देखते हुए 10 जून 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी किया था.

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- इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने जमीन के बकाये भुगतान में देरी पर ब्याज की दर 8 फीसदी तक सीमित कर दिया था. इससे नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बिल्डरों को बड़ी राहत मिली थी.

- उस समय अदालत ने कहा था कि रियल एस्टेट के कई सारे प्रोजेक्ट ठप हो गए हैं और घर खरीदारों की भी हालत खराब है, इसलिए इन्हें प्रोत्साहन देने की जरूरत है.

- दरअसल, पहले नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी जमीन के बकाये में भुगतान में देरी होने पर 15 से 23 फीसदी की दर से ब्याज वसूलती थी. 

वापस क्यों लिया फैसला?

- पिछले साल 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के तब के चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने जून 2020 को जारी आदेश को वापस ले लिया था. तब अदालत ने माना था कि इस वजह से दोनों अथॉरिटीज को भारी नुकसान हुआ है.

- 28 फरवरी को जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच ने 7 नवंबर 2022 को जारी आदेश को वापस लेने से इनकार कर दिया. 

- पिछले साल नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने अदालत में तर्क दिया था कि अगर 2020 के आदेश को वापस नहीं लिया जाता है, तो इससे साढ़े 7 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा.

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- दोनों अथॉरिटीज ने आरोप लगाया था कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बिल्डरों ने 2020 में अपने पक्ष में आदेश पास करवाने के लिए तथ्यों को छिपाया था.

- इसके बाद अलग-अलग बिल्डरों जिनमें ACE ग्रुप ऑफ कंपनीज भी शामिल थी, ने सुप्रीम कोर्ट से 7 नवंबर 2022 के आदेश को वापस लेने की अपील की थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील को खारिज करते हुए कहा कि 7 नवंबर के आदेश को वापस लेने का कोई कारण नहीं है.

दोनों अथॉरिटी ने क्या तर्क दिया?

- सुप्रीम कोर्ट ने जून 2020 को जो आदेश जारी किया था, वो ACE ग्रुप ऑफ कंपनीज की याचिका पर आया था. इसके बाद पंचशील बिल्डर्स और सुपरटेक ग्रुप भी इसमें शामिल हो गए थे.

- दोनों अथॉरिटीज की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट रवींद्र कुमार ने कहा कि ACE ग्रुप ने ब्याज दरों और लीज प्रीमियम का भुगतान करने में चूक की थी और उन तथ्यों को छिपाया. 

- उन्होंने आरोप लगाया कि बिल्डर्स खुद खरीदारों से 18 फीसदी की दर से ब्याज वसूलते हैं और अथॉरिटी को 11 फीसदी की दर से ब्याज चुकाते हैं, वो भी किश्तों में.

घर खरीदारों पर भी असर पड़ेगा?

- सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब बिल्डरों को जमीन के बकाये भुगतान में देरी होने पर 8 फीसदी से ज्यादा की दर से ब्याज चुकाना होगा.

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- माना जा रहा है कि अगर बिल्डर समय पर पैसा नहीं देते हैं तो इससे घरों की रजिस्ट्री में भी देरी हो सकती है.

- इतना ही नहीं, कोरोना की वजह से रियल एस्टेट इंडस्ट्री वैसे ही बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में जब बिल्डरों को ज्यादा ब्याज चुकाना होगा तो जाहिर है कि उसकी भरपाई घर खरीदारों से की जाएगी. लिहाजा घरों की कीमत महंगी हो सकती है.

 

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