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शांति भूषण... वो वकील जिन्होंने PM के चुनाव को करवा दिया था रद्द, इंदिरा-राजनारायण केस का वो किस्सा

1971 में इंदिरा गांधी रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीती थीं. इस चुनाव में उनकी पार्टी को बड़ी जीत मिली थी. इंदिरा ने रायबरेली से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को मात दी. राजनारायण ने इंदिरा की जीत के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इस केस में राजनारायण की ओर से शांति भूषण ने पैरवी की. हाईकोर्ट ने इंदिरा का चुनाव रद्द कर दिया.

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राजनरायण, शांति भूषण और इंदिरा गांधी (फाइल फोटो)
राजनरायण, शांति भूषण और इंदिरा गांधी (फाइल फोटो)

देश के पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण का निधन हो गया. 97 साल की उम्र में उन्होंने नोएडा में अंतिम सांस ली. पिछले कुछ दिनों से शांति भूषण काफी बीमार थे. शांति भूषण का नाम देश के सबसे बड़े वकीलों की लिस्ट में शुमार रहा. यहां तक कि उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ उस केस की पैरवी की थी, जिसमें उनका चुनाव शून्य हो गया था. इतना ही नहीं इस केस में मिली हार के बाद इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लागू कर दी. आईए जानते हैं उस केस के बारे में...

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1971 में 5वीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए. इन चुनाव से पहले कांग्रेस के दो टुकड़े हो गए थे. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को लोकसभा की 545 सीटों में से 352 सीटों पर जीत मिली. जबकि विरोधी गुट वाली कांग्रेस (ओ) को सिर्फ 16 सीटें मिलीं. इस चुनाव में ही इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था. 

इंदिरा गांधी इस चुनाव में रायबरेली से चुनाव लड़ी थीं और उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को मात दी. लेकिन राजनारायण अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे. ऐसे में उन्होंने इंदिरा गांधी की जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. इस केस में राजनारायण की पैरवी शांति भूषण ने की. इस केस को इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के नाम से भी जाना जाता है. 

राजनारायण ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया. ऐसे में उनका चुनाव निरस्त किया जाए. राजनारायण द्वारा कुल 7 आरोप इंदिरा के खिलाफ लगाए गए थे. इस केस में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कोर्ट में पेश भी होना पड़ा. देश में यह पहला मौका था, जब किसी केस में प्रधानमंत्री कोर्ट में पेश हुआ हो. इंदिरा गांधी को कई घंटों तक अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब देना पड़ा था. 

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12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने अपना फैसला सुनाया. उन्होंने 7 में से 5 आरोपों में इंदिरा को राहत दे दी. लेकिन दो मुद्दों पर इंदिरा गांधी को दोषी पाया गया. कोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया. इसके साथ ही जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत अगले छह सालों तक इंदिरा गांधी को लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिया गया. जस्टिस सिन्हा ने अपने आदेश में लिखा था कि इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव में भारत सरकार के अधिकारियों और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया.
 
जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं. इंदिरा गांधी की पैरवी पालखीवाला ने की. जबकि उनके खिलाफ राजनारायण की ओर से शांति भूषण ने पक्ष रखा. जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने 24 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर आंशिक स्थगन आदेश दिया. फैसले के मुताबिक, इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में भाग तो ले सकती हैं लेकिन वोट नहीं कर सकतीं. इस फैसले के खिलाफ विपक्ष ने इंदिरा गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. 25 जून को दिल्ली में जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान में रैली की. इस रैली के बाद ही इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल का ऐलान कर दिया. 

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इन केसों के लिए भी जाने जाते हैं शांति भूषण 

शांति भूषण ने 1993 में मुंबई बम धमाकों के अभियुक्तों और बाद में संसद पर हमला करने वाले आतंकी शौकत हुसैन की पैरवी भी की. अरुंधति रॉय के खिलाफ जब कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चला तो शांति भूषण ने उनका पक्ष रखा. चर्चित पीएफ घोटाला सामने आया तो भी शांति भूषण आरोपियों के खिलाफ मुखर थे. आरोपियों में न्यायपालिका के कई जजों के भी नाम सवालों और शक के घेरे में थे. बिरला परिवार के संपत्ति विवाद में वो राजेंद्र एस लोढ़ा की पैरवी में अदालत की चौखट पर दिखे तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की भी पैरवी की. 

जब कानून मंत्री बने शांति भूषण

आपातकाल खत्म होने के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी. वे जनता पार्टी में शामिल हो गए. इसके बाद उन्हें कानून मंत्री बनाया गया. वे राज्यसभा सांसद बने और 1977 से 1979 तक कानून मंत्री रहे. शांति भूषण साल 1980 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए. लेकिन 1986 में जब भारतीय जनता पार्टी ने एक चुनाव याचिका पर उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया. 

नेता से एक्टिविस्ट बने शांति भूषण

1980 के दशक से शांति भूषण का एक और रूप दिखा. वो रूप था एक्टिविस्ट का. सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी CPIL के संस्थापकों की कतार में सबसे आगे शांति भूषण ही थे. इसमें जस्टिस तारकुंडे और जस्टिस सच्चर भी थे. इसके बाद अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन में भी शांति भूषण सक्रिय दिखे. उन्हीं ने लोकपाल का पूरा मसौदा ड्राफ्ट किया था. आंदोलन के बाद जब राजनीतिक दल बनाने की बात आई तो शांतिभूषण ने अरविंद केजरीवाल को सलाह और हौसला दिया. इसके अलावा उन्होंने एक करोड़ रुपए नकद भी दिए. हालांकि बाद में केजरीवाल सरकार से उनका मोह भंग हो गया. 
 

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