महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार का दिन अचानक उस समय बेहद अहम हो गया, जब एनसीपी चीफ शरद पवार ने पार्टी के 25वें स्थापना दिवस के मौके पर खास घोषणा की. उन्होंने माइक संभाला, दो बातें कहीं और अगले ही पल पार्टी को मिले उसके दो कार्यकारी अध्यक्ष. नाम सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल. शनिवार दोपहर करीब 1 बजे हुई इस घोषणा में जितने अहम ये दोनों नाम थे, उतना ही महत्व इस बात का भी रहा कि आखिर पार्टी के वरिष्ठ नेता, शरद पवार के बाद नंबर 2 और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजित पवार का कहीं नाम नहीं था.
अब इस घोषणा के बाद तीन बातें साफ हैं...
सवाल... आखिर शरद पवार ने पार्टी में अजित पवार को कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं सौंपी?
कयास... क्या शरद पवार ने अजित पवार को गंभीर पॉलिटिकल संदेश दे दिया है?
निष्कर्ष- सुप्रिया सुले एनसीपी चीफ की अगली उत्तराधिकारी हैं, ऐसा लगभग तय है.
लेकिन.... अब नजर डालते हैं कि इन सभी बातों के असल में क्या मायने हैं.
क्या होगा अजित पवार का रुख?
एनसीपी में दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की खबर के बाद अजित पवार और उनके समर्थकों का रुख क्या होगा, इसे जानने की कोशिश की जाने लगी. कहा गया कि, अजित को चाचा शरद पवार ने बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है. क्योंकि बीते कई बार से अजित अपनी बदली चाल रुख दिखा चुके थे. हालांकि महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार इस पूरे फैसले और बड़े कैनवस से देख रहे हैं.
सुप्रिया सुले से नाराजगी?
राज्य की राजनीति के मामलों के जानकार, साहिल जोशी कहते हैं कि, 'पार्टी का ये फैसला, सुप्रिया सुले को राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री कराने को लेकर है. क्योंकि ये पार्टी लाइन में पहले से क्लियर था कि अजित पवार महाराष्ट्र की राजनीति को देखेंगे-समझेंगे और वह यह करते भी आए हैं. जाहिर है कि आगे भी करेंगे. ऐसे में इस बात का अंदेशा तो नहीं है कि अजित पवार का खेमा सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से नाराज होगा.
बल्कि ये साफ भी कर दिया गया है कि अजित पवार नाराज नहीं हैं. एनसीपी जनरल सेक्रेटरी सुनील तटकरे ने कहा कि 'अजीत दादा ने हमेशा संगठन के लिए काम किया है, उन्होंने पिछले 24 वर्षों से पार्टी को मजबूत किया है, पार्टी के काम और जिम्मेदारियों में भूमिका निभाने में कभी भी किसी पद की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि अजीत पवार परेशान नहीं हैं, वह महाराष्ट्र में काम करना चाहते हैं और कर रहे हैं.
शरद पवार ने उठाया है विशुद्ध राजनीतिक कदम
वैसे, जब इस बात की चर्चा उठती थी कि शरद पवार का उत्तराधिकारी कौन होगा तो इसके जवाब में अजित पवार को गद्दी मिलने के कयास लगते रहते थे. महाराष्ट्र की जिम्मेदारी अजित पवार के कंधे पर है. कल को सीएम बनने का मौका आता है तो अजित पवार का नाम दावेदारी में पहले आएगा. लेकिन अभी शरद पवार ने दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर इस बहस को अजित पवार की तरफ से मोड़ दिया है और इस मामले में उन्हें करीने से किनारे लगा दिया है.
अब सवाल उठता है कि अगर, शरद पवार भतीजे अजित को उत्तराधिकारी नहीं बना रहे हैं और सुप्रिया सुले इस प्रश्न का भविष्य में उत्तर हो सकती हैं तो उन्होंने दो कार्याकारी अध्यक्ष क्यों बनाए हैं. इसका जवाब अभी हाल ही में हुए दो मई के घटनाक्रम में मिलता है. शरद पवार ने दो मई को जिस तरीके से इस्तीफा दिया, तो उस दौरान पार्टी में बातचीत हुई और ये सुझाव दिया गया कि कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाए. क्योंकि अभी आगामी चुनाव होने में सिर्फ एक साल बाकी है. ऐसे में पार्टी से अलग होना या राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से शरद पवार का हटना बड़ा लॉस हो सकता है. ऐसे में कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए.
एनसीपी के अंदर दो वैचारिक खेमे
अब एनसीपी के अंदर भी वैचारिक तरीके से दो खेमे हैं. इसे 2019 के चुनाव से बेहतर समझा जा सकता है. जब एक खेमे को लग रहा था कि भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए तो वहीं सुप्रिया सुले व अन्य लोग कांग्रेस व शिवसेना के साथ जाना ही ठीक मान रहे थे. उस अनुभव को देखते हुए दोनों खेमों पर कार्यकारी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
दूसरी ओर, अगर सुप्रिया सुले को ही कार्यकारी बनाया जाता है तो यह सीधा मैसेज जाता कि वह शरद पवार की अगली उत्तराधिकारी हैं, लेकिन, फिलहाल इस मामले में शरद पवार खुलकर सामने नहीं आना चाहते हैं. जैसे शिवसेना में बालासाहेब ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर उत्तराधिकारी बनाया था, लेकिन शरद पवार अभी ऐसा नहीं करना चाहते हैं. यही वजह है कि एनसीपी में दो उत्तराधिकारी बनाए गए हैं.