
महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता शरद पवार ने एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया. पवार 1999 में एनसीपी के गठन के बाद से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. शरद पवार ने अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ के विमोचन के मौके पर अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला किया. पवार ने अपनी आत्मकथा में अजित पवार की बगावत और उनकी वापसी, पीएम मोदी से रिश्ते, एमवीए के गठन के वक्त कांग्रेस की भूमिका और पीएम मोदी से उनके रिश्तों को लेकर तमाम बड़े खुलासे किए हैं. आइए जानते हैं कि पवार ने अपनी आत्मकथा में क्या क्या लिखा?
शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में जिक्र किया है कि क्यों उनके और पीएम मोदी के रिश्तों की इतनी चर्चा होती है. पवार लिखते हैं, 2004 से 2014 में वे गुजरात सरकार और केंद्र के बीच ब्रिज का काम करते थे. तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे और उस समय उनके केंद्र की सत्ताधारी कांग्रेस से रिश्ते अच्छे नहीं थे.
पवार ने लिखा, ''इस दौरान केंद्र और गुजरात सरकार की बात नहीं हो रही थी. ऐसे में गुजरात की जनता को नुकसान हो रहा था. इसलिए मैंने पहल की और तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से बात की. वह काफी समझदार और सुलझे हुए नेता थे क्योंकि वह इस बात को समझते थे. बाद में मुझे गुजरात और केंद्र के बीच संवाद स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. मेरे और नरेंद्र मोदी के बीच अच्छे संबंधों के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है. ये संबंध उस वक्त बने जब 10 साल तक मैं केंद्र में प्रतिनिधित्व कर रहा था.''
उन्होंने लिखा, राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यों में संवाद जरूरी है. बड़े पद पर बैठे व्यक्ति को संवाद से परहेज नहीं करना चाहिए. यह पूरे देश के लिए नुकसानदायक है. मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का संवाद बहुत सीमित था.
शरद पवार ने लिखा, अजित पवार ने जब 2019 में बगावत कर बीजेपी के साथ हाथ मिलाया, तो यह बगावत सिर्फ पार्टी तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह पारिवारिक मामला भी था और इस संकट को दूर करने में उनकी पत्नी प्रतिभा की अहम भूमिका थी.
पवार ने लिखा, ''जब अजित पवार ने बगावत की तो पार्टी के नेता लगातार उनके संपर्क में थे.अजित के भाई श्रीनिवास को उनके साथ संवाद बनाए रखने के लिए कहा गया था . मेरी पत्नी प्रतिभा और अजित के संबंध काफी गहरे हैं. प्रतिभा कभी राजनीतिक घटनाक्रम में नहीं पड़तीं, लेकिन अजित का मामला परिवार से जुड़ा था. अजित ने प्रतिभा पवार से मिलने के बाद दुख जताया और उन्होंने स्वीकार किया कि जो कुछ हुआ, वह गलता था. ऐसा नहीं होना चाहिए था और यह हमारे लिए काफी था और इसने पूरे प्रकरण पर पर्दा डाल दिया.''
क्या हुआ था 2019 में?
दरअसल, महाराष्ट्र में 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था. वहीं, एनसीपी कांग्रेस के साथ मिलकर मैदान में उतरी थी. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला था. लेकिन सीएम के पद को लेकर दोनों पार्टियों में विवाद हो गया था. इसके बाद बीजेपी और शिवसेना की राह अलग अलग हो गई थीं.
इसके बाद शिवसेना सरकार बनाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस के संपर्क में थी. तभी एक सुबह अचानक से बीजेपी ने अजित पवार गुट के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया. इसके कुछ घंटों बाद देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी. हालांकि, शरद पवार की कोशिशों के चलते अजित अपने साथ जरूरी विधायक लाने में सफल नहीं हो सके और उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने सरकार बनाई थी. इस सरकार में भी अजित पवार डिप्टी सीएम बने थे.
शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में उद्धव ठाकरे का भी जिक्र किया है. इसमें उन्होंने लिखा, बिना संघर्ष किए उद्धव ठाकरे के इस्तीफे ने महाविकास अघाड़ी की सत्ता को खत्म कर दिया.
पवार ने अपनी आत्मकथा में लिखा, ''हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवसेना में बगावत हो जाएगी, जिसके बाद शिवसेना अपना नेतृत्व खो देगी. उद्धव ने बिना संघर्ष किए इस्तीफा दे दिया, जिसके कारण एमवीए सरकार गिर गई.''
उन्होंने कहा, ''जिस सहजता के साथ बालासाहेब ठाकरे के साथ बातचीत होती थी, वो उद्धव से बात करते वक्त कमी महसूस हुई.;'' पवार ने सरकार बनने के कुछ समय बाद उद्धव के बीमार होने का भी जिक्र किया और कहा- उन्हें (उद्धव) हेल्थ कंडीशन की वजह से दिक्कतों का सामना करना पड़ा. अपने डॉक्टर के शेड्यूल के बीच कामकाज देखने पड़े.
शरद पवार ने अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी. इसी पार्टी से वे विधायक भी बने थे. लेकिन 1999 में पवार ने ही सबसे पहले सोनिया गांधी के विदेशी होने का मुद्दा उठाया था. इसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था. इसके बाद पवार ने एनसीपी का गठन किया.
पवार ने अपनी आत्मकथा में महाविकास अघाड़ी के गठन के वक्त कांग्रेस की भूमिका का भी जिक्र किया. उन्होंने लिखा, ''एक तरफ बीजेपी के खिलाफ महाविकास अघाड़ी गठबंधन बनाने के लिए कांग्रेस को शामिल करना जरूरी था. लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का रवैया अहंकारी था.''
शरद पवार ने कहा, ''मैंने अपने एक इंटरव्यू में भी कांग्रेस की अहंकारी प्रवृत्ति की बात कही थी. कांग्रेस को डर था कि महाविकास अघाड़ी में शिवसेना के साथ आने से कांग्रेस की देशव्यापी धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंच सकता है. लेकिन लेकिन जब महाविकास अघाड़ी बनी तो कांग्रेस की यह भूमिका बदलने लगी जिससे हमारी पार्टी के नेता बेचैन हो उठे.''
उन्होंने कहा, कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे, अहमद पटेल चर्चा के लिए मुंबई आए. इस चर्चा से बहुत कुछ नहीं निकला. सैद्धांतिक रूप से सरकार बनाने में कोई बाधा नहीं थी, लेकिन कांग्रेस के साथ बातचीत में धैर्य की परीक्षा हो रही थी. एनसीपी और शिवसेना दोनों को महसूस हो रहा था कि सरकार बनाने में जितना अधिक समय लगेगा, सत्ता संघर्ष के खेल में बने रहना उतना ही मुश्किल होगा. इसका एक कारण यह भी था कि राष्ट्रपति शासन की तलवार लटक रही थी, क्योंकि राज्य में विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने वाला था.