दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा पर राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि दिल्ली में जो कुछ हुआ, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता, लेकिन उन कारणों को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता, जिनकी वजह से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई. शरद पवार ने कहा कि कृषि कानून को लेकर साल 2003 से चर्चा चल रही थी, लेकिन कभी भी इस पर सहमति नहीं बन सकी.
उन्होंने कहा कि साल 2014 में केंद्र सरकार बदल गई पर इस कानून पर संसद में चर्चा होनी जरूरी थी. इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भी भेजना जरूरी था. अगर इसे कमेटी के पास भेज दिया जाता, तो शायद इतना विरोध न होता. इस कानून को सदन में बिना चर्चा किये हंगामे के बीच पारित कर दिया गया. शरद पवार ने कहा कि मुझे तभी अंदेशा हो गया था कि आगे चलकर इसका विरोध जरूर होगा.
शरद पवार ने कहा कि कड़ाके की ठंड में पिछले 60 दिनों से हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे. किसान इतना संयम दिखा सकते हैं तो केंद्र की भी यह जिम्मेदारी है कि वो इस समस्या का हल ढूंढे, लेकिन कई राउंड चर्चा के बाद भी कोई हल नहीं निकल पाया. केंद्र और कानून व्यवस्था को संभालने वालों ने इस स्थिति को सही तरीके से नहीं संभाला. किसान अपने आपे से इसलिए बाहर हो गए कि परेड के लिए कई कड़ी शर्तें रखीं गई थीं. उन्होंने कहा कि माहाराष्ट्र में राज्य सरकार ने स्थिति को विवेकपूर्ण तरीके से संभाला. मुझे लगता है कि केंद्र सरकार को भी उसी संयम के साथ काम लेना चाहिये था.