शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है और कहा कि देश में फिलहाल जो हाहाकार मचा है इसका ठीकरा राज्यों पर फोड़ने की बजाय केंद्र सरकार के प्रमुखों को आत्मपरीक्षण करने की आवश्यकता है. साथ ही सामना ने अदालतों पर भी निशाना साधा और कहा कि अदालतें भी सुविधानुसार देरी से जागती हैं.
सामना ने अपने संपादकीय में लिखा कि नासिक के बाद मुंबई के पास स्थित विरार के एक कोविड अस्पताल में आग लगने से 14 मरीजों की दम घुटने, झुलसने से मौत हो गई. दो दिन पहले नासिक में ऑक्सीजन के रिसाव से 24 लोगों ने जान गंवाई. उससे पहले भंडारा जिला स्थित सरकारी अस्पताल में आग लगी और 10 बच्चों की मौत हो गई. भांडुप के ‘ड्रीम’ मॉल स्थित कोविड सेंटर में लगी आग में भी 11 लोगों को जान गंवानी पड़ी.
'महाराष्ट्र में हादसों की शृंखला ही शुरू है. इस शृंखला का अंत क्या होगा, ये कोई नहीं बता सकता है, परंतु कोरोना के कारण महाराष्ट्र और देश एक दुश्चक्र में फंस गया है. ये तय है. नासिक के हादसे की जांच के लिए उच्चस्तरीय समिति स्थापित किए जाने की खबर ताजी है. इसी दौरान विरार के अस्पताल में आग की जांच का आदेश मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दिया. कुल मिलाकर ऐसे हादसों से हर ओर आक्रोश व भय का ही माहौल निर्माण हुआ है.'
'कोरोना के मरीजों को बेड व प्राणवायु (ऑक्सीजन) नहीं मिल रही है. इस पर शोर मचने के दौरान जगह-जगह कोविड अस्पतालों के आईसीयू में आग लगने से मरीजों का जलकर मरना, मतलब उन्हें जीते जी दहकती चिता पर ढकेलने जैसा ही है. देश में कोरोना के स्थिति अनियंत्रित होने की बाद दुनिया द्वारा स्वीकार किए जाने से देश की सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) या उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) क्या कहते हैं इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है.'
'अदालतें सुविधानुसार देरी से जागती हैं'
सामना लिखता है, 'हाल के दिनों में अदालतें सुविधानुसार देरी से जागती हैं. कोरोना एक राष्ट्रीय आपदा है और इस आपदा से लड़ने के लिए केंद्र सरकार ने क्या योजना बनाई है, इसकी जानकारी सर्वोच न्यायालय ने अब मांगी है. देश की गंभीर कोरोना स्थिति का संज्ञान सर्वोच्च न्यायालय ने खुद लिया है. खुशी की बात है, परंतु पश्चिम बंगाल के राजनीतिक नेताओं के, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री के लाखों के रोड शो और हरिद्वार में धार्मिक मेलों को सर्वोच्च न्यायालय ने सही समय पर संज्ञान में लिया होता तो लोगों पर इस तरह सड़क पर तड़पकर मरने की नौबत नहीं आई होती.'
विदेशी मीडिया में मोदी सरकार की आलोचना किए जाने पर सामना ने लिखा, 'दिल्ली के एक गंगाराम अस्पताल में प्राणवायु का दबाव कम होने से 24 घंटों में 25 कोरोना मरीज मर गए. यह देश की राजधानी की स्थिति है. इस स्थिति के लिए देश की केंद्र सरकार जिम्मेदार नहीं होगी तो कौन जिम्मेदार है? हिंदुस्तान कोरोना का नरक बन गया है, ऐसा अब विदेशी अखबारों में प्रकाशित होने लगा है. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की विदेश में क्या प्रतिष्ठा बची है?'
'कोरोना संक्रमण से हिंदुस्तान का तंत्र इतना डगमगा गया है कि कोरोना ने हिंदुस्तान को पूरी तरह नरक बना दिया है. ऐसी घोर आलोचना ‘ब्रिटेन’ के प्रतिष्ठित अखबार ‘दि गार्डियन’ ने की है. रोज लाख से ज्यादा मरीज मिलने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्र सरकार ने इस संकट को नजरअंदाज किया. सत्ताधारियों का यही अति आत्मविश्वास कोरोना के फैलने की वजह सिद्ध हुआ. ऐसी ‘फटकार’ ‘गार्डियन’ ने लगाई है.'
'झूठे भ्रम का निर्माण किया'
सामना लिखता है, 'देश में फिलहाल जो हाहाकार मचा है इसका ठीकरा राज्यों पर फोड़ने की बजाय केंद्र सरकार के प्रमुखों को आत्मपरीक्षण करने की आवश्यकता है. देश की स्वास्थ्य प्रणाली ने कोविड-19 के संकट को परास्त करने का ऐसा झूठा भ्रम निर्माण किया. परंतु दूसरी लहर आएगी और वह भयंकर होगी, यह जानकारी होने के बावजूद केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए क्या किया? यह सवाल ही है.'
'पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों के चुनाव की ओर ध्यान झोंकने की बजाय कोरोना की दूसरी लहर की ओर ध्यान दिया होता तो हिंदुस्तान पर कोरोना के नरक में गिरने की नौबत नहीं आई होती. गुजरात व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कोरोना मरीजों की मृत्यु के आंकड़े छुपाकर रखे गए. मुर्दाघरों में लाशें छुपाकर रखी गर्इं. फिर भी श्मशानों में सामुदायिक चिताएं जली ही. अच्छे दिन लाएंगे, ऐसा वचन देनेवालों के राज में मरीजों के लिए बेड नहीं है, ऑक्सीजन नहीं है, टीका और दवाइयां नहीं हैं. सिर्फ छटपटाहट और पश्चाताप है.'
'नासिक, वसई, विरार, भांडुप, भंडारा के अस्पतालों में आग लगने से प्राणहानि हुई यह सच्चाई है. परंतु ऐसे अस्पताल जल्दबाजी में तैयार करके उनमें मरीजों को भर्ती करना पड़ा, यही वास्तविक नरक है. देश का कामकाज रामभरोसे चल रहा है, ऐसी आलोचना दिल्ली के उच्च न्यायालय ने की. सर्वोच्च न्यायालय ने भी जाते-जाते केंद्र को निशाने पर लिया. केंद्र के पास कुछ राष्ट्रीय योजना होगी तो उसे प्रस्तुत करने का फरमान सर्वोच्च न्यायालय ने जारी किया. इससे क्या होगा?'
नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए सामना ने लिखा, 'मोदी और उनके सहयोगियों को देश को स्वर्ग ही बनाना था. उसके लिए ही उन्होंने वोट मांगे, परंतु अब देश श्मशान और कब्रिस्तान बनता नजर आ रहा है. कहीं सामुदायिक चिताएं जल रही हैं, कहीं अस्पताल खुद ही मरीजों के साथ जल रहे हैं! अच्छे दिन, स्वर्ग दूर ही रह गया, परंतु वह नरक यही है क्या? ऐसा ही सवाल देश की वर्तमान भयावह अवस्था देखने के बाद उठता है.'