इंडिया टुडे के 'ग्रॉस डोमेस्टिक बिहेवियर' सर्वे में भारतीयों के खानपान और भेदभाव को लेकर नजरिए का खुलासा हुआ है. सर्वे में पूछा गया कि क्या खानपान की आदतों के आधार पर भेदभाव करना ठीक है. नतीजे बताते हैं कि आधे से ज्यादा लोग इसके खिलाफ हैं, इसे लेकर राज्यवार सोच में बड़ा अंतर देखने को मिला, जिसमें केरल और ओडिशा के विचारों में जमीन-आसमान का फर्क उभरकर सामने आया.
खानपान के मामले में केरल उदार
केरल इस मामले में सबसे उदार राज्य साबित हुआ, जहां खानपान की आदतों के आधार पर भेदभाव को पूरी तरह खारिज किया गया. दूसरी ओर, ओडिशा के लोग इस मुद्दे पर सबसे ज्यादा रूढ़िवादी दिखे. सर्वे में ओडिशा के लोगों ने भोजन विकल्पों के आधार पर बहिष्कार को उचित ठहराया, जो इसलिए भी हैरान करने वाला है क्योंकि वहां शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह की आबादी मिलती है. यह सोच उत्तरी राज्यों जैसे बिहार की तुलना में भी ज्यादा रूढ़िवादी है, जो इस मामले में अपेक्षाकृत उदार दिखा.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी भेदभाव
दक्षिणी राज्यों में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भी भेदभाव के पक्ष में दिखे, लेकिन उनकी सोच ओडिशा जितनी कट्टर नहीं थी. सर्वे में यह भी पाया गया कि खानपान में शुद्धता-अशुद्धता की अवधारणा भारतीयों के लिए हमेशा से अहम रही है, लेकिन बदलते वक्त के साथ इसमें उदारता बढ़ रही है. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भी इस मुद्दे पर कोई खास अंतर नहीं दिखा, जो दर्शाता है कि खानपान को लेकर सोच अब क्षेत्रीय सीमाओं से परे जा रही है.
सांस्कृतिक विविधता पर कितनी उदारता?
सर्वे यह संकेत देता है कि खानपान जैसे निजी मामलों में भेदभाव की प्रवृत्ति कम हो रही है. केरल की उदारता जहां एक मिसाल है, वहीं ओडिशा की सोच यह सवाल उठाती है कि क्या सांस्कृतिक विविधता हमेशा उदारता की गारंटी देती है. सूचकांक में केरल के बाद पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र भी उदार राज्यों में शुमार हुए, जबकि मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य इस मामले में पीछे रहे.