देश में धर्म पर रोज नए मुद्दों की भरमार हो रही है. औरंगजेब से राणा सांगा तक. रामनवमी से लेकर नवरात्र तक. हर कहीं सियासी बयानबाजी जारी है. कहीं नमाज को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं तो कहीं वक्फ पर आर पार की जंग जारी है. धर्म की इसी सियासत में शनिवार को सलमान खान की घड़ी में छपी तस्वीरों को लेकर नया बवाल खड़ा हो गया है.
सलमान की घड़ी में श्रीराम, राम जन्मभूमि और हनुमान की तस्वीर को लेकर एक मौलाना ने इसे इस्लाम के खिलाफ बताया है. सवाल है कि क्या सिर्फ एक घड़ी में किसी धर्म से जुड़े प्रतीक चिह्नों के इस्तेमाल से किसी और मजहब को नुकसान पहुंचेगा? सवाल ये भी है कि क्या जबरन और जानबूझकर ऐसे मुद्दों को उछाला जा रहा है?
मौलाना रिजवी ने सलमान को शरीयत का गुनहगार साबित कर दिया है. बॉलीवुड के सुलतान यानी सलमान खान इन दिनों अपनी रिलीज होने वाली फिल्म सिकंदर के प्रमोशन में बिजी हैं, लेकिन उनकी घड़ी ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. हालांकि कुछ दूसरे मुस्लिम धर्मगुरु की दलील कुछ और है. वो मौलाना रजवी की बातों से इत्तेफाक नहीं रखते. ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव यासूब अब्बास ने इस विवाद को गैरजरूरी बताया है. उन्होंने कहा कि यह व्यक्तिगत आस्था का मामला है और इसे बेवजह तूल नहीं दिया जाना चाहिए.
सलमान की घड़ी पर बयानबाजी सिर्फ धर्मगुरुओं तक सीमित नहीं रही. राजनीति में भी इस पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है. समाजवादी पार्टी के नेता आशुतोष वर्मा ने इसे चुनावी माहौल में धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश बताया. वहीं, विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेता विनोद बंसल ने कहा कि सलमान खान को हिंदू धर्म के प्रतीकों का सम्मान करना चाहिए और अगर उन्होंने ऐसा किया है तो यह स्वागत योग्य है.
वहीं आने वाली अपनी फिल्म से पहले सलमान हाल ही में किसी भी विवाद से बचने की बात कहते नजर आए थे. उन्होंने कहा था कि मैं बहुत सारी कॉन्ट्रोवर्सी से गुजर चुका है, तो अब कोई नहीं चाहिए. और मुझे नहीं लगता कि कॉन्ट्रोवर्सी की वजह से कोई फिल्म हिट होती है. अभी फिल्म रिलीज हो जाए, इसके बाद भी कोई कॉन्ट्रोवर्सी नहीं चाहिए.
बता दें कि सलमान खान को लेकर पहले भी उनकी धार्मिक निष्ठा को लेकर मुस्लिम संगठनों ने सवाल उठाए हैं. और इस वक्त देश में धर्म से जुड़े मुद्दों को लेकर पहले से ही विवाद का पहाड़ खड़ा है. ऐसे में घड़ी में छपी तस्वीर को लेकर सवाल उठाना कहां तक जायज है? सवाल ये भी है कि क्या महज किसी दूसरे धर्म के प्रतीक से खुद का धर्म और उसपर आस्था खतरे में पड़ जाएगी? ये खुद में ही एक बड़ा प्रश्न है. खासकर तब जब जरुरत शांति और सामंजस्य की है.