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ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी केसः सुप्रीम कोर्ट में दो हफ्ते टली सुनवाई, मुस्लिम पक्ष ने दाखिल की है याचिका

इस पूरे विवाद को लेकर मुस्लिम पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कुल तीन याचिकाएं दायर हैं. पहली याचिका हिंदू पक्ष के केस की सुनवाई से जुड़ा है. दूसरी याचिका मामले में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति से जुड़ी है. जबकि, तीसरी याचिका वजुखाने के एएसआई सर्वे और कार्बन डेटिंग के खिलाफ है.

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ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी केस
ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी केस

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी मामले में सुप्रीम कोर्ट में दो हफ्ते तक सुनवाई टल गई है. सुप्रीम कोर्ट को पहले इस पर विचार करना है कि श्रृंगार गौरी में मूर्तियों की रोजाना पूजापाठ की मांग वाली हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई लायक है या नहीं.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिकाओं को सुनवाई लायक माना था. इसे मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमान इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने याचिका दायर की है.

मुस्लिम पक्ष ने दलील दी है कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के कारण हिंदू पक्ष का केस सुनवाई के लायक नहीं है. इस कानून के तहत, 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, उसी में रहेगा, उसे बदला नहीं जा सकता.

इस पूरे विवाद को लेकर मुस्लिम पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कुल तीन याचिकाएं दायर हैं. पहली याचिका हिंदू पक्ष के केस की सुनवाई से जुड़ा है. दूसरी याचिका मामले में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति से जुड़ी है. जबकि, तीसरी याचिका वजुखाने के एएसआई सर्वे और कार्बन डेटिंग के खिलाफ है.

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मुस्लिम पक्ष ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में इन दो याचिकाओं पर सुनवाई की भी मांग की. हालांकि, हिंदू पक्ष ने इस पर ऐतराज जताते हुए कहा कि परिसर का सर्वे हो जाने के बाद ये मांग अब निष्प्रभावी हो गई है.

क्या है श्रृंगार गौरी का मामला?

18 अगस्त 2021 को पांच महिलाओं ने सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था. महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन-दर्शन की मांग की. महिलाओं की मांग पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया था.

अदालत के आदेश पर मई 2022 में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे किया गया. सर्वे के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का दावा था कि ये शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ये केस जिला जज को सौंप दिया था.

ज्ञानवापी मस्जिद का क्या है विवाद?

जिस तरह से अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद था, ठीक वैसा ही ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर का विवाद भी है. स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ को सबसे अहम माना जाता है. 

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1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की. 

याचिका में दावा किया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनाया था. 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी. इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया.

किसकी क्या दलील?

हिंदू पक्ष की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और पूरी जमीन हिंदुओं को सौंपी जाए. हिंदू पक्ष का दावा है कि ये मस्जिद मंदिर के अवशेषों पर बनी है.

वहीं, मुस्लिम पक्ष इसके खिलाफ है. मुस्लिम पक्ष इसे मस्जिद ही बताता है. इसके साथ ही ये भी दावा करता है कि मस्जिद में आजादी से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है.

मुस्लिम पक्ष की दलील है कि चूंकि आजादी से पहले नमाज पढ़ रहे हैं, इसलिए इस पर 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट भी लागू होता है.

हालांकि, जिला कोर्ट ने पिछले साल अपने फैसले में साफ कर दिया था कि हिंदू 1993 तक यहां रोजाना पूजा करते आ रहे थे और उसके बाद साल में एक बार पूजा करते रहे थे, इसलिए प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट इस मामले पर लागू नहीं होता.

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प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. दरअसल, ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो उसी रूप में रहेगा. उसके साथ छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता.

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