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10 में से छह लोग आवारा कुत्तों से परेशान, 42% ने माना महिलाओं से छेड़छाड़ है आम: इंडिया टुडे का GDB सर्वे

इंडिया टुडे ग्रुप ने हाउ इंडिया लिव्ज (How India Lives) और कैडेंस इंटरनेशनल (Kadence International) के साथ मिलकर देश के लोगों से घरेलू व्यवहार (Gross Domestic Behaviour) को लेकर एक सर्वे किया है जिसमें उनसे कई सवाल पूछे गए. लोगों ने सर्वे के दौरान जो जवाब दिए हैं वो बेहद चौंकाने वाले हैं. सर्वे के मुताबिक देश में हर 10 में से छह लोग आवारा कुत्तों से परेशान हैं जबकि 42 फीसदी लोगों ने माना की यहां महिलाओं से छेड़छाड़ आम बात है.

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यह सांकेतिक तस्वीर है.
यह सांकेतिक तस्वीर है.

भारत आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में तेजी से तरक्की कर रहा है जिसका असर लोगों के घर-परिवार और सामाज में व्यक्तिगत व्यवहार पर भी पड़ा है. ऐसे में इंडिया टुडे ग्रुप ने हाउ इंडिया लिव्ज (How India Lives) और कैडेंस इंटरनेशनल (Kadence International) के साथ मिलकर देश के लोगों से उनकी राय जानने के लिए पहला सकल घरेलू व्यवहार यानी की Gross Domestic Behaviour पर सर्वे करवाया है जिसके आंकड़े आपको चौंका देंगे. सर्वे के मुताबिक हर 10 में से छह लोग आवारा कुत्तों से परेशान हैं जबकि 42 फीसदी लोगों ने माना की महिलाओं से छेड़छाड़ आम बात है.

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इस सर्वे की खास बात ये है कि इसमें देश भर में सामाजिक और व्यक्तिगत व्यवहार का अध्ययन किया गया है. सर्वे में 21 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 98 जिलों में 9,188 लोगों से बातचीत कर उनकी राय ली गई है. सर्वे में 50.8 फीसदी पुरुष और 49.2 फीसदी महिलाओं ने हिस्सा लिया है. सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोगों में 54.4 फीसदी शहरी और 45.6 फीसदी ग्रामीण लोग शामिल हैं और उनसे नागरिक शिष्टाचार, सार्वजनिक सुरक्षा, महिला-पुरुष के लिए नजरिया, विविधता और भेदभाव से जुड़े 30 सवाल पूछे गए थे जिसमें कुछ अहम सवालों पर उनकी राय हम आपको नीचे बता रहे हैं.

Gross Domestic Behaviour सर्वे की हर एक डिटेल यहां क्लिक कर पढ़ें

क्या आपके इलाके में सार्वजनिक जगहों पर छेड़छाड़ या महिलाओं को परेशान किया जाना आम बात है ?

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सर्वे के दौरान लोगों से पहला सवाल ये पूछा गया कि क्या आपके इलाके में सार्वजनिक जगहों पर छेड़छाड़ या महिलाओं को परेशान किया जाना आम बात है. इस पर 42 फीसदी लोगों ने माना की हां ये आम बात है जबकि 56 फीसदी लोगों ने इसका जवाब नहीं के रूप में दिया और उनका मानना था कि ऐसी कोई भी घटना आम बात नहीं है.

तमिलनाडु के 17 फीसदी लोगों ने छेड़छाड़ की शिकायत की जबकि पड़ोसी राज्य कर्नाटक में 79% लोगों ने माना कि उनके इलाके में यह सामाजिक बुराई आम बात है.

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सर्वे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा, सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं का उत्पीड़न एक समस्या है. तकरीबन समान सामाजिक-आर्थिक सूचकांक वाले दो पड़ोसी दक्षिणी राज्यों के बीच इस असंगति की आखिर क्या वजह है? शायद वह वजह है एक राज्य में उपेक्षा और चुप्पियों के विपरीत, दूसरे राज्य में जन सतर्कता और सामुदायिक प्रवर्तन की अघोषित जिम्मेदारी का होना. मगर शायद यह धारणा का प्रभाव भी है, और हर नीति-निर्माता जानता है कि धारणा हकीकत जितनी ही दमनकारी हो सकती है.


आपके इलाके में क्या लोग अक्सर ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करते हैं?

लोगों से दूसरा सवाल ये पूछा गया कि क्या आपके इलाके में लोग अक्सर ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करते हैं? इस सवाल के जवाब में 49 फीसदी लोगों ने माना की हां लोग ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करते हैं जबकि 47 फीसदी लोगों ने कहा कि लोग ट्रैफिक नियमों का पालन करते हैं.

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ग्राफिक्स

वहीं चार फीसदी लोगों ने तीसरे विकल्प को चुना और कहा कि उन्हें इसके बारे में पता नहीं है. ट्रैफिक नियमों को लेकर पूछे गए इस सवाल के जवाब में असम के 68 फीसदी लोगों ने कहा कि ट्रैफिक नियमों की अनदेखी उनके इलाके में आम बात नहीं है. कर्नाटक के 89% लोगों ने बताया कि उनके राज्य में यह तो सामान्य सी बात है.

क्या आपके आसपास ऐसे इलाके हैं जहां आप खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं?

इस सर्वे में लोगों से तीसरा सवाल ये पूछा गया कि क्या आपके आसपास ऐसे इलाके हैं जहां आप खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं? इस सवाल के जवाब में 37 प्रतिशत लोगों ने कहा कि हां वो असुरक्षित महसूस करते हैं जबकि 56 फीसदी लोगों ने कहा उन्होंने कभी असुरक्षित महसूस नहीं किया जबकि 7 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.

इस सवाल पर उत्तर प्रदेश के 30% फीसदी लोगों ने माना कि कुछ खास इलाकों में वो असुरक्षित महसूस करते हैं जबकि केरल में 73 फीसदी कभी खुद को असुरक्षित महसूस नहीं करते हैं.

अपने इलाके में हिंसक अपराध की घटना देखने पर पुलिस को रिपोर्ट करने में सुरक्षित महसूस करते हैं?

जब लोगों से सर्वे में ये पूछा गया कि क्या आप अपने इलाके में हिंसक अपराध की घटना देखने पर पुलिस को रिपोर्ट करने में सुरक्षित महसूस करते हैं तो इसके जवाब में सर्वे में हिस्सा लेने वाले 84 फीसदी लोगों ने कहा कि पुलिस को रिपोर्ट करने के बाद वो सुरक्षित महसूस करते हैं जबकि सिर्फ 16 फीसदी लोगों ने माना की वो इसके बाद भी खुद को असुरक्षित मानते हैं. इस सवाल पर तमिलनाडु के 95 फीसदी लोगों ने कहा कि वो हिंसक घटनाओं के बारे में रिपोर्ट करने में सुरक्षित महसूस करेंगे.

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आप अपने शहर में बस, मेट्रो या लोकल ट्रेन जैसे सार्वजनिक वाहनों में सफर करते हुए सुरक्षित महसूस करते हैं?

Gross Domestic Behaviour सर्वे के दौरान जब लोगों से पूछा गया कि आप अपने शहर में बस, मेट्रो या लोकल ट्रेन जैसे सार्वजनिक वाहनों में सफर करते हुए सुरक्षित महसूस करते हैं? तो 86 फीसदी लोगों ने सार्वजनिक परिवहन को सुरक्षित माना वहीं 14 फीसदी ने इसे असुरक्षित करार दिया. इसी सवाल पर महाराष्ट्र में 89% फीसदी लोगों ने कहा कि वो सार्वजनिक वाहनों में सुरक्षित महसूस करते हैं जबकि पंजाब में 27% लोगों ने इन्हें सुरक्षित बताया.

इस सर्वे को लेकर यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा,कुल मिलाकर 86 फीसद भारतीयों का कहना है कि कागज पर ये आंकड़े सम्मानजनक हैं. मगर ये ऊबड़खाबड़-भारत की गलियों और पगडंडियों (गांव के संदर्भ में) पर घटने वाली त्रासदियों और परतों को छिपा लेते हैं. सुरक्षा आखिरकार महज खतरे की गैरमौजूदगी ही नहीं है, बल्कि यह विश्वास की मौजूदगी भी है.  विश्वास को जीडीपी या वृद्धि दरों के विपरीत आसानी से नहीं मापा जा सकता. इसे महसूस किया, जिया और पल भर में खो भी दिया जाता है.

अपने घर के आसपास या मोहल्ले में आवारा कुत्तों के होने से आपको कोई दिक्कत नहीं?

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सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोगों से अगला सवाल ये पूछा गया कि उन्हें अपने घर के आसपास या मोहल्ले में आवारा कुत्तों के होने से क्या कोई दिक्कत नहीं है? इस सवाल के जवाब में सर्वे में शामिल लोगों में से 40 फीसदी ने कहा कि उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं जबकि ज्यादातर लोग यानी की 60 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें आवारा कुत्तों से दिक्कत है. वहीं इस सवाल के जवाब में केरल के 96% लोगों ने कहा कि वो आसपास आवारा कुत्ते नहीं चाहते जबकि उत्तराखंड के 64% लोगों को आवारा कुत्तों से कोई समस्या नहीं है.

इसको लेकर यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं कि 96 फीसद लोग अपने आसपास आवारा कुत्तों से परेशानी जाहिर करते हैं. यह डर जायज नजर आता है, क्योंकि केरल में 2024 में कुत्तों के काटने के हैरतअंगेज ढंग से 31.6 लाख मामले दर्ज हुए थे, जो 2017 के 13.5 लाख मामलों से दोगुने थे. ऐसे में कोई कह सकता है कि केरल में खतरा साथी नागरिकों से नहीं बल्कि उनके आसपास रहने वाले कुत्तों से है.

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