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बजट गरीबों पर साइलेंट स्ट्राइक, महंगाई-गरीबी जैसी चुनौतियों का समाधान करने में विफल- सोनिया गांधी

सोनिया गांधी ने लिखा, देश में गरीब हो, या मिडिल क्लास, शहरी हो या ग्रामीण वे महंगाई, बेरोजगारी और कम होती कमाई जैसी मार झेल रहे हैं. 2023-24 का बजट न सिर्फ इन महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहा, बल्कि गरीबों और कमजोरों के लिए बजट का प्रावधान और कम करके इन्हें और भी खराब कर देता है.

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सोनिया गांधी (फाइल फोटो)
सोनिया गांधी (फाइल फोटो)

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बजट को गरीबों पर साइलेंट स्ट्राइक बताई है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि अपने कुछ अमीर दोस्तों को लाभ पहुंचाने की प्रधानमंत्री की नीति ने देश में लगातार आपदाओं को जन्म दिया. नोटबंदी से लेकर गलत तरीके से तैयार की गई जीएसटी से छोटे कारोबारियों को नुकसान हुआ है. इसके अलावा तीन कृषि कानूनों को लाने का असफल प्रयास किया गया. कृषि की लगातार उपेक्षा की जा रही है. 

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अंग्रेजी समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस में सोनिया गांधी ने लिखा, हाल ही के दिनों खत्म हुई भारत जोड़ो यात्रा में यात्रियों ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक यात्रा की. इस दौरान लाखों भारतीयों से बात की गई. भारत जोड़ो यात्रियों ने जो आवाजें सुनीं, वे गहरी आर्थिक संकट और भारत जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है, उस बारे में व्यापक निराशा व्यक्त कर रही थीं. चाहें कोई गरीब हो, या मिडिल क्लास, शहरी हो या ग्रामीण वे महंगाई, बेरोजगारी और कम होती कमाई जैसी मार झेल रहे हैं. 
 
सोनिया ने लिखा, 2023-24 का बजट न सिर्फ इन महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहा, बल्कि गरीबों और कमजोरों के लिए बजट का प्रावधान और कम करके इन्हें और भी खराब कर देता है. यह मोदी सरकार की गरीबों पर साइलेंट स्ट्राइक (मौन प्रहार ) है. जो 2004-14 के दौरान यूपीए सरकार द्वारा बनाए गए सभी दूरगामी अधिकार-आधारित कानूनों के केंद्र में थी. 

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सोनिया गांधी ने लिखा, प्रत्येक भारतीय के लिए स्वतंत्रता का वादा एक अच्छे जीवन का था, यह न सिर्फ उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से उन्हें सशक्त बनाने के समान अवसर देने के लिए भी था. यूपीए युग का अधिकार-आधारित कानून इस लक्ष्य की दिशा में एक सुविचारित, एकजुट कदम था. 

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लिखा, अधिकार-आधारित कानून नागरिकों को सशक्त बनाते हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि शिक्षा, भोजन, काम और पोषण प्रदान करना सरकार का कर्तव्य है. अधिकारों की इन तमाम बातों के प्रति प्रधानमंत्री की नापसंदगी किसी से छिपी नहीं है. पहले पीएम ने संसद में इन कानूनों का उपहास उड़ाया. लेकिन कोरोना के समय उन्हें इन पर भरोसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. लेकिन इस बजट में उन्होंने अब फंडिंग को कम कर दिया, ऐसा पिछले एक दशक में नहीं हुआ था. 

उन्होंने लिखा, MGNREGA के फंड को कम कर दिया. इसे 2018-19 से नीचे के स्तर पर लाया गया. ऐसे में अब ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों को कम काम मिलेगा. इस योजना के तहत मजदूरी जानबूझकर बाजार दरों से कम रखी जा रही है, और श्रमिकों को समय पर भुगतान भी नहीं मिल पा रहा है. 
 
सोनिया गांधी ने लिखा, सर्व शिक्षा अभियान के लिए फंडिंग लगातार तीसरे साल कम की गई है. इससे हमारे स्कूलों में संसाधनों की कमी हो जाएगी. बच्चों को कम पौष्टिक भोजन मिलेगा, क्योंकि इस साल स्कूलों में मिड-डे मील के लिए फंड को 10% कम कर दिया गया. पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 5 किलो मुफ्त खाद्यान्न मनमाने ढंग से बंद करने के बाद से गरीबों को मिलने वाला राशन आधा कर दिया गया है. इसी तरह, अल्पसंख्यकों, विकलांगों के लिए योजनाओं और बुजुर्गों के लिए पेंशन, सभी को सरसरी तौर पर कम कर दिया गया है. 

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सोनिया ने लिखा, मौन प्रहार ऐसे वक्त पर हुआ, जब हमारी आर्थिक स्थिति लगातार दयनीय होती जा रही है. GDP कोरोना से पहले के स्तर पर पहुंच चुका है, ऐसे में आर्थिक सर्वेक्षण में पूर्ण रिकवरी का दावा किया गया है. लेकिन सिर्फ अमीर भारतीयों को इस रिकवरी का फायदा मिल रहा है. RBI के उपभोक्ता सर्वेक्षणों के मुताबिक, अधिकांश लोगों को लगता है कि नवंबर 2019 से हर महीने आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है. इनकी वजह स्पष्ट हैं, दैनिक वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं और मोदी सरकार विशेष रूप से युवाओं के लिए नौकरियां पैदा करने में विफल रही है. लोगों की आय कम होने के बावजूद लोग दैनिक आवश्यक वस्तुओं पर अधिक खर्च करने के लिए मजबूर हैं. 

सोनिया के मुताबिक, लोगों की आय कम होने के बावजूद लोग दैनिक आवश्यक वस्तुओं पर अधिक खर्च करने के लिए मजबूर हैं. पीएम की नीति गरीब और मिडिल क्लास भारतीयों  की कीमत पर अपने कुछ अमीर दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए है. यह नीति लगातार आपदाओं को जन्म दे रही है. विनाशकारी निजीकरण ने बेशकीमती राष्ट्रीय संपत्ति को चुनिंदा निजी हाथों में सस्ते में सौंप दिया है, जिससे बेरोजगारी बढ़ रही है, खासकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए. 

 

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