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WHO में चीफ साइंटिस्ट रहीं डॉ. सौम्या स्वामीनाथन को सरकार ने बनाया प्रिंसिपल एडवाइजर, टीबी उन्मूलन का जिम्मा सौंपा

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रोफेसर और डॉ. सौम्या स्वामीनाथन को राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के लिए प्रधान सलाहकार के रूप में नियुक्त किया है. डॉ. सौम्या इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक रही हैं. उन्होंने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक के रूप में भी कार्य किया है.

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डॉ. सौम्या स्वामीनाथन.
डॉ. सौम्या स्वामीनाथन.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में चीफ साइंटिस्ट रहीं डॉ. सौम्या स्वामीनाथन को केंद्र सरकार ने बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने का फैसला लिया है. सरकार ने डॉ. सौम्या को प्रो-बोनो आधार पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के लिए प्रिंसिपल एडवाइजर नियुक्त किया है.

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डॉ. सौम्या स्वामीनाथन विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक रही हैं. इससे पहले वो भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की महानिदेशक के रूप में भी कार्यरत रही हैं. डॉ. सौम्या, भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की बेटी हैं. केंद्र सरकार ने इसी साल स्वामीनाथन को भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित किए जाने का फैसला लिया था. यह पुरस्कार भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. 

क्या जिम्मेदारी संभालेंगी सौम्या?

स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा, टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की प्रिंसिपल एडवाइजर के रूप में डॉ. सौम्या स्वामीनाथन अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समग्र रणनीति पर तकनीकी सलाह देंगी. नीति निर्देश और नतीजों के लिए जरूरी पाठ्यक्रम सुधार का सुझाव देंगी और अनुसंधान रणनीति पर सलाह देंगी. वे विश्व स्तर पर शीर्ष प्रतिभा वाले विशेषज्ञ समूहों के गठन में भी सहायता करेंगी. इसके अतिरिक्त वे कार्यक्रम के प्रभाव का आकलन करने में मंत्रालय, राज्य के अधिकारियों और विकास भागीदारों का समर्थन करेंगी.

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जानिए एमएस स्वामीनाथन के बारे में...

डॉ. एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में हुआ. उनकी तीन बेटियां सौम्या स्वामीनाथन, मधुरा स्वामीनाथन और नित्या स्वामीनाथन हैं. डॉ. एमएस स्वामीनाथन की कृषि यात्रा 1943 के विनाशकारी बंगाल अकाल के बाद शुरू हुई. भारत की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करने के निर्णय ने उन्हें 1960 के दशक की हरित क्रांति में एक प्रमुख शख्सियत बनाया, जिसने भारत को खाद्य कमी वाले देश से दुनिया के अग्रणी कृषि उत्पादकों की श्रेणी में ला दिया. उन्होंने गेहूं और चावल की ज्यादा उपज वाली किस्मों को पेश किया, जिससे लाखों लोगों को भुखमरी से बचाया गया. भारतीय कृषि पर डॉ. स्वामीनाथन का परिवर्तनकारी प्रभाव तब सामने आया जब उन्होंने ज्यादा उपज वाली फसल किस्मों की शुरूआत की. उनका दूरदर्शी दृष्टिकोण भारत में हरित क्रांति की अगुआई करने में सहायक रहा, उस समय देश गरीबी और सामाजिक सुरक्षा की कमी से जूझ रहा था. 

एम एस स्वामीनाथन

किसान आयोग के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय किसान कल्याण नीति तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और किसानों को खेती की लागत का 50% का भुगतान करने जैसे उपायों की सिफारिश की. डॉ. स्वामीनाथन के प्रयासों का प्रभाव क्रांतिकारी से कम नहीं था. भारत का खाद्य उत्पादन आसमान छू गया और देश खाद्यान्न की कमी की स्थिति से खाद्यान्न आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ गया. उनके काम ने ना सिर्फ संभावित अकाल को टाला बल्कि अनगिनत कृषक समुदायों की आर्थिक स्थिति को भी बेहतर बनाया. डॉ. स्वामीनाथन को पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण समेत कई पुरस्कार मिले. रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और विश्व खाद्य पुरस्कार जैसे अवॉर्ड से वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली. वे 2007 से 2013 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे.
 

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