स्टेन स्वामी, 84 साल के आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता जिनकी एल्गार परिषद/भीमा कोरेगांव से जुड़े मामले में पिछले साल गिरफ्तारी हुई थी, उनकी सोमवार को मुंबई के एक हॉस्पिटल में मौत हो गई. सोमवार को ही उनकी जमानत की अर्जी पर फिर सुनवाई होनी थी, लेकिन अदालत में उनकी मौत की खबर आई. जिसपर जज भी दुखी हो गए. यूरोपियन यूनियन और यूएन मानवाधिकार संगठन के प्रतिनिधियों ने भी इसे जबर्दस्त धक्के वाली खबर बताया है.
एल्गार परिषद केस (elgar parishad case) क्या था, स्टेन स्वामी (Stan Swamy) पर इसमें क्या आरोप थे और जांच में क्या कुछ हुआ है. वह यहां विस्तार से जानिए.
क्या है एल्गार परिषद केस
यह सब 1 जनवरी 2018 को शुरू हुआ. जब लाखों की संख्या में दलित पुणे के पास एकत्रित हुए. वहां ये लोग भीमा कोरेगांव (bhima koregaon) की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए जुटे थे. 1818 में हुई पेशवाओं के खिलाफ यह लड़ाई ब्रिटिश आर्मी ने जीती थी, जिसमें बड़ी संख्या में दलित समुदाय के लोग भी शामिल थे. इस कार्यक्रम में कुछ भाषणों के बाद हिंसा हुई थी, जिसमें काफी नुकसान हुआ.
पढ़ें - एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी का निधन, भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में एक साल पहले हुई थी गिरफ्तारी
मौके पर मौजूद लोगों की गवाही पर पिंपरी थाने में FIR दर्ज हुई. इसमें दो हिंदुवादी नेता मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े का नाम शामिल था, जिनपर हिंसा को भड़काने का आरोप था. लेकिन फिर 8 जनवरी को दूसरी FIR दर्ज हुई. इसमें दावा किया गया कि हिंसा के पीछे एल्गार परिषद की मीटिंग थी, जो कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में बुलाई गई थी. इसके बाद पुलिस ने कुछ एक्टिविस्ट की गिरफ्तारी की, उनके माओवादी संबंध बताए गए.
वरवरा राव को मिली जमानत, गौतम नवलखा की अर्जी खारिज
एल्गार परिषद/भीमा कोरेगांव मामले में साल 2018 से ही गिरफ्तारी चल रही है. इसमें अबतक 16 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. जांच के दौरान पुणे पुलिस ने कई शहरों में छापेमारी की थी. इसमें दिल्ली, फरीदाबाद, गोवा, मुंबई, रांची और हैदराबाद में छापे मारे गए थे.
गिरफ्तार लोगों में कार्यकर्ता-वकील सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवरा राव, नागपुर के वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू और सांस्कृतिक समूह कबीर कला मंच के तीन सदस्य शामिल हैं. मामले में 81 साल के वरवरा राव को जमानत मिल चुकी है. वहीं गौतम नवलखा की जमानत अर्जी खारिज हो गई थी. सुधा भारद्वाज ने पिछले साल जमानत की अर्जी लगाई थी, जो कि खारिज हो गई थी.
मामले की जांच कर रही NIA ने स्टेन स्वामी को अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया था. NIA की तरफ से उनकी बेल का विरोध करते हुए कहा गया था कि उनके नक्सलियों से लिंक हैं. वह हॉस्पिटल में भर्ती होने से पहले तक नवी मुंबई की तलोजा केंद्रीय जेल में बंद थे.
स्टेन स्वामी पर NIA ने आरोप लगाया था कि वह प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य हैं. एनआईए ने आरोप लगाया था कि वह इसके मुखौटा संगठनों के संयोजक हैं तथा सक्रिय रूप से इसकी गतिविधियों में शामिल रहते हैं. जांच एजेंसी ने उनपर संगठन का काम बढ़ाने के लिए एक सहयोगी के माध्यम से पैसे हासिल करने का आरोप लगाया था.
पिछले साल कोर्ट ने कहा था - स्टेन ने गंभीर साजिश रची थी
स्टेन स्वामी ने पिछले साल नवंबर में चिकित्सा आधार और खुद को बेगुनाह बताते हुए जमानत के लिए आवेदन किया था. याचिका में दलील दी गई थी कि वह पार्किंसंस बीमारी से पीड़ित हैं और वह दोनों कानों से सुन नहीं सकते हैं. पार्किंसंस में शरीर कांपने लगता है, ऐसे में स्वामी को पानी का ग्लास तक पकड़ने में दिक्कत होती थी. स्वामी ने यह भी दलील दी थी कि उनको जेल अस्पताल में स्थानांतरित किया जाए.
इसी साल मार्च में स्टेन की याचिका पर सुनवाई के दौरान NIA की स्पेशल कोर्ट ने कहा था कि प्रथम दृष्टया लगता है कि स्वामी ने देश में अशांति पैदा करने और सरकार को गिराने के लिए प्रतिबंधित माओवादी संगठन के सदस्यों के साथ मिलकर 'गंभीर साजिश' रची थी. स्पेशल जज डीई कोथलकर ने कहा था कि उनका आदेश रिकॉर्ड पर लाई गई सामग्री पर आधारित है जिससे लगता है कि स्वामी प्रतिबंधित माओवादी संगठन के सदस्य हैं.
अदालत ने तब जिस सामग्री का हवाला दिया था उसमें करीब 140 ईमेल थे जिनका स्वामी और उनके सहआरोपी के बीच आदान प्रदान हुआ था. आरोप था कि स्वामी को मोहन नाम के एक 'कॉमरेड' से माओवादी गतिविधियों को कथित रूप से आगे बढ़ाने के लिए आठ लाख रुपये मिले थे.
कोर्ट ने तब जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था, 'रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री से प्रथम दृष्टया स्पष्ट है कि आवेदक न केवल प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) का सदस्य था बल्कि वह संगठन के उद्देश्य के मुताबिक गतिविधियों को आगे बढ़ा रहा था जो राष्ट्र के लोकतंत्र को खत्म करने के अलावा और कुछ नहीं है.'