साल था 2020, 'ब्लैक लाइव्स मैटर' आंदोलन दुनियाभर में जोर पकड़ रहा था, उसी दौरान पेरिस में भी उग्र भीड़ का एक समूह प्रदर्शन के लिए उमड़ा. ये भीड़ पेरिस के पैलेस रॉयल के बाहरी हिस्से में जुटी और यहां स्थापित एक प्रतिमा को हटाए जाने के लिए विरोध करने लगी. ये प्रतिमा थी, जीन-बैप्टिस्ट कोल्बर्ट की. फ्रांस का इतिहास उन्हें आर्थिक सुधारों और आर्थिक संरचना के साथ प्रशासनिक कौशल के आदर्श के रूप में देखता रहा है, लेकिन इस व्यक्तित्व के साथ एक काला अध्याय भी जुड़ा हुआ है.
असल में 1685 ईस्वी में कोल्बर्ट द्वारा बनाए गए ब्लैक कोड (Code Noir) कानून ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में दासता को वैध बना दिया था और इसके साथ ही उनके साथ होने वाले क्रूर व्यवहारों को भी. किसी भी आधुनिक समाज में दासता एक अभिशाप के सिवाय कुछ भी नहीं, लेकिन फ्रांस में जब कोल्बर्ट की मूर्ति को लेकर विरोध शुरू हुआ तो मामला सियासी हो गया और एक बार फिर वहां की राजनीति में दक्षिणपंथ और वामपंथ के बीच संघर्ष बढ़ गया.
कोल्बर्ट की मूर्ति को लेकर उठा विवाद, फ्रांस की राजनीति और उसकी सियासत में प्रतीकों और मूर्तियों से जुड़े उन विवादों की ओर इशारा करता है जो फ्रांस में सदियों की परंपरा में एक इतिहास की तरह शामिल रहा है. जब वहां, पुराने शासकों की प्रतिमाएं हटाईं गईं, बड़े पैमानों पर उनका विध्वंस हुआ, हर नए आने वाले ने पुराने गौरवों को मिटाया था और इस प्रवृत्ति ने एक फ्रेंच टर्म 'स्टैच्यूमेनिया' को जन्म दिया था. फ्रांस के सियासी इतिहास में एक दस्तावेज की तरह दर्ज इस फ्रेंच शब्द ने दुनिया भर के देशों का सफर किया, और भारत में भी इसकी कुछ बानगी मिलेगी.
पहले ये जान लेते हैं क्या है 'स्टैच्यूमेनिया'?
फ्रेंच की सियासत से निकले इस शब्द का प्रयोग सियासत में तब प्रयोग होता है जब राज्य में बड़ी संख्या में विशाल और भव्य मूर्तियों के निर्माण और उनकी स्थापना की जाती है. इन्हें सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बताया जाता है और फिर विपक्ष द्वारा उसकी आलोचना की जाती है. जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी तरह हर व्यक्तित्व के भी दो पहलू होते हैं. कोई व्यक्ति एक वर्ग या जाति का गौरव हो सकता है और ऐसा होने में अन्य किसी वर्ग को धक्का लगना स्वाभाविक है, स्टैच्यूमैनिया इसी खींचतान वाली स्थिति-परिस्थिति का बखान करता है.
फ्रांस की राजनीति का हिस्सा रहा ये शब्द
भारतीय राजनीति में यह कुछ उसी तरह का दौर है, जैसा कि आज से करीब 120 पहले फ्रांस में हुआ था. उस वक्त 1870-1940 के दौरान 200 से ज्यादा मूर्तियां बनाई गईं. इसीलिए वहां पर statuemania (स्टैच्यूमेनिया) शब्द भी लोगों के जबान पर पर रहा है और राजनीति का हिस्सा भी है. हालांकि बाद में वह इस दौर से निकल गए.
भारत में मूर्तियों के साथ स्थापित होता गया स्टैच्यूमेनिया
भारत की सियासत में इस शब्द का प्रवेश कोई नई बात नहीं है, बल्कि राजनीति के बीते कुछ दशकों में इसके कई उदाहरण भी मिले हैं. ताजा मामला शिवाजी महाराज की प्रतिमा का है. महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में छत्रपति शिवाजी की विशाल प्रतिमा दिसंबर 2023 में स्थापित की गई थी, जिसका अनावरण एक समारोह में पीएम मोदी ने किया था. प्रतिमा को लेकर विवाद यह है कि यह बीते अगस्त में गिर गई और फिर राज्य के विपक्षी दलों (शिवशेना (उद्धव गुट, कांग्रेस, एनसीपी) ने इस मुद्दे को लपक लिया. उन्होंने प्रदेश और केंद्र की सरकार पर आरोप लगाए हैं. वहीं, राज्य में विपक्ष 'सरकार को जूते मारो' आंदोलन भी चला रहा है.
इसके अलावा स्टैच्यूमेनिया पर गौर करें तो यह सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति, मायावती सरकार में सीएम रहीं मायावती और बसपा संस्थापक कांशीराम की मूर्ति इसका उदाहरण रहे हैं. आदि गुरू शंकराचार्य, अयोध्या, मिहिरभोज की मूर्तियां भी सियासी लड़ाई के केंद्र में रहे हैं, जिनपर जमकर पक्ष-विपक्ष के बीच आरोपों के वार चले हैं.
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी: विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति (182 मीटर) सरदार वल्लभभाई पटेल की है, जिसे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का नाम दिया गया है. इसका निर्माण गुजरात के केवडिया में सरदार सरोवर डैम के पास किया गया. इसे विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया, लेकिन इसके खर्च और स्थापना की जरूरत पर संसद से लेकर सड़क तक बहस हुई. सरदार पटेल को लौहपुरुष के तौर पर जाना जाता है और वह आजादी के बाद अखंड भारत के निर्माणकर्ता के तौर पर जाने जाते हैं, जिन्होंने 562 रियासतों का एकीकरण किया था और भारत को रिपब्लिकन नेशन बनाने के सपने को साकार किया था.
सरदार पटेल की प्रतिमा और विवाद
प्रतिमा को लेकर कई तरह के विवाद उठे. पहले तो भूमि अधिग्रहण का विवाद चर्चा में रहा, फिर इसके निर्माण में होने वाले बड़े खर्च (3000 करोड़) को विपक्ष दलों ने गैर जरूरी बताया. कहा गया कि केवडिया के निवासी आदिवासियों के पूर्वजों से सरकार ने ये जमीन बांध बनाने के नाम पर ली थी, लेकिन अब इसका व्यावसायिक इस्तेमाल हो रहा है. इन्हीं विरोध के बीच मूर्ति का अनावरण किया गया और अब यह गुजरात के पर्यटन का प्रमुख चेहरा भी है.
पूर्व सीएम मायावती और बसपा संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा
उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में कई मूर्तियां और स्मारक बनाए गए, जिनमें दलित नेताओं और स्वयं मायावती की मूर्तियां शामिल थीं. इसे व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ा क्योंकि इस पर बड़े पैमाने पर सार्वजनिक धन खर्च किया गया था. बसपा सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश में लखनऊ और नोएडा में दो बड़े पार्क बनावाए थे और उसमें अपनी, दलित नेता भीमराव अंबेडकर, कांशीराम और पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां बनवाईं. मायावती के इस कदम की तमाम विपक्षी पार्टियों ने जमकर विरोध किया.
सरकारी खर्चे से प्रतिमा निर्माण के लगे थे आरोप
समाजवादी पार्टी ने 2012 के चुनाव में मायावती सरकार पर जो तमाम आरोप लगाए उसमे सरकारी खर्चे पर इन मूर्तियों का बनवाना भी शामिल था.लखनऊ नोएडा और ग्रेटर नोएडा में पार्क और मूर्तियों पर कुल 5,919 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. नोएडा स्थित दलित प्रेरणा स्थल पर बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी की पत्थर की 30 मूर्तियां जबकि कांसे की 22 प्रतिमाएं लगवाई गईं थी. इसमें 685 करोड़ का खर्च आया था. एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन पार्कों और मूर्तियों के रखरखाव के लिए 5,634 कर्मचारी बहाल किए गए थे.
सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा और विवाद
साल 2023 में हरियाणा के कैथल में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया गया, लेकिन इस प्रतिमा पर लिखे एक शब्द ने विवाद करा दिया और 'स्टैच्यूमैनिया' के जिन्न को बोतल से बाहर निकाल दिया. असल में प्रतिमा पर गुर्जर शब्द भी लिखा था. सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर बताए जाने पर राजपूत समाज ने घोर आपत्ति जताई और कड़ा विरोध दर्ज कराया. राजपूत समाज के कड़े विरोध को देखते हुए गुर्जर समाज भी विरोध में आ गया और दोनों ही ओर समाज की बड़ी-बड़ी बैठकें होने लगीं. हरियाणा के तत्कालीन सीएम मनोहर लाल ने राजपूत और गुर्जर समाज के लोगों के साथ बैठक की थी और मामले को सुलझाने का प्रयास किया था, लेकिन न गुर्जर माने और न ही राजपूत क्षत्रिय समाज. मामला हाईकोर्ट पहुंचा और फिर उसके आदेश पर प्रतिमा पर गुर्जर शब्द को छिपाया गया है.
आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा
मध्यप्रदेश तीर्थनगरी ओम्कारेश्वर में जगतगुरु आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊँची प्रतिमा " स्टेच्यू ऑफ़ वननेस" का अनावरण बीते साल सितंबर 2023 में किया गया था. यह पूरी दुनिया में आदि गुरु शंकराचार्य की सबसे ऊची प्रतिमा हैं. नर्मदा किनारे देश का चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओम्कारेश्वर शंकराचार्य की दीक्षा स्थली है जहां वे अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद मिले और यहीं 4 वर्ष रहकर उन्होंने विद्या अध्ययन किया.
रामानुजाचार्य की प्रतिमा हैदराबाद में स्थापित
5 फरवरी 2022 को हैदराबाद में संत और समाज सुधारक रामानुजाचार्य की प्रतिमा का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनावरण किया था. रामानुज की 216 फीट ऊंची प्रतिमा को 'स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी' नाम दिया गया है. 216 फीट ऊंची मूर्ति सोना, चांदी, तांबा,पीतल और जस्ते की बनी हुई है, जबकि दूसरी मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की गई है, जो रामानुजाचार्य के 120 सालों की यात्रा की याद में 120 किलो सोने से निर्मित की गई है.
श्रीराम की प्रतिमा
अयोध्या में भगवान राम की 251 मीटर ऊंची मूर्ति बनाई जाने की योजना है, जो कि निर्माण के बाद दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बन जाएगी. इसमें 20 मीटर ऊंचा चक्र होगा. मूर्ति 50 मीटर ऊंचे बेस पर खड़ी होगी. इसके अलावा राजस्थान में महादेव शिव, बोध गया में गौतम बुद्ध की प्रतिमा का निर्माण हो रहा है.