क्या दिल्ली समेत उत्तर भारत को पराली जलाने से उठने वाले जहरीले धुएं से अब मिल जाएगा छुटकारा? हर साल जाड़े का मौसम शुरू होने से पहले खेतों में पराली (फसलों के अवशेष) को जलाए जाने से यह समस्या शुरू होती है. अब इसका समाधान ‘पूसा डीकम्पोजर’ कैप्सूल के नाम से सामने आया है. अगर इस प्रक्रिया से फायदा होता है तो अगले साल से इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाएगा. ये जानकारी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को यहां एक बैठक में दी.
यह बैठक फसल कटाई के बाद पराली जलाए जाने से हर साल उत्तर भारत में वायु प्रदूषण बढ़ने की समस्या पर विचार के लिए बुलाई गई थी. इस वर्चुअल बैठक में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के पर्यावरण मंत्रियों और अधिकारियों ने हिस्सा लिया.
कैसे पराली को खाद में बदल देता है पूसा डीकम्पोजर?
पूसा डीकम्पोजर फसल के अवशेष को खाद में तब्दील कर देता है. डीकम्पोजर कैप्सूल और अन्य अवयवों जैसे कि - गुड़ और बेसन- का इस्तेमाल करके एक तरल फॉर्म्यूलेशन बनाया जाता है. उसे फिर खेतों में फसल के अवशेष पर छिड़का जाता है. इससे वो तेजी से सड़ कर खाद में बदल जाता है.
इस साल पराली जलाए जाने की घटनाएं पहले ही पजांब से सामने आ चुकी हैं. मॉनसून के जाने के बाद सर्दियों की आहट पर पराली जलाने और अन्य स्रोतों से उठने वाला धुआं (स्मॉग) हवा में ज़हर घोल देता है. इससे हर साल दिल्ली और उत्तर भारत के शहरों में लोगों को सांस लेने की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यह स्मॉग का खतरा हर साल उत्तर भारत के आसमान पर मंडराता है.
जावड़ेकर ने पूसा डीकम्पोजर के इस्तेमाल पर कहा, “इस साल, सभी राज्यों में ट्रॉयल किए जाएंगे. एक बार जब ये ट्रायल हजारों हेक्टेयर जमीन पर पूरे हो जाएंगे तो हमारे पास इसके लाभ को लेकर बेहतर और निर्णायक रिपोर्ट होगी.”
जावड़ेकर ने आगे कहा, “केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की 50 से अधिक टीमों का गठन राज्यों के साथ निगरानी और समन्वय के लिए किया जाएगा. दिल्ली में, हमारे पास 800 हेक्टेयर भूमि में धान की फसलें हैं, जबकि यूपी में 10,000 हेक्टेयर जमीन इसके लिए है.” मंत्री के मुताबिक फोकस राज्यों के साथ पूर्ण तालमेल और समन्वय पर है.
4 कैप्सूल की कीमत मात्र 20 रुपये
इस कम लागत वाली तकनीक को पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने विकसित किया है. चार पूसा डीकम्पोजर कैप्सूल की कीमत सिर्फ 20 रुपये होगी. इससे 25 लीटर घोल बनाया जा सकता है जो एक हेक्टेयर जमीन के लिए प्रभावी रहेगा.
वहीं, दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने गुरुवार को कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 5 अक्टूबर को दिल्ली में वायु प्रदूषण के खिलाफ एक मेगा अभियान शुरू करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार नजफगढ़ के खरखरी नाहर गांव में पूसा वैज्ञानिकों के तहत केंद्रीकृत सिस्टम शुरू करने जा रही है. यहां पराली की समस्या से निपटने में कारगर कैमिकल्स का उत्पादन किया जाएगा.
राय ने कहा, “5 अक्टूबर तक, ये केंद्र स्थापित हो जाएगा और 6 अक्टूबर से, पूसा वैज्ञानिकों के तहत 400 अलग-अलग शिविरों में इन कैमिकल्स के उत्पादन का काम शुरू हो जाएगा. 3-4 दिन में कैमिकल्स का पहला दौर तैयार हो जाएगा. मांग के आधार पर हम खेतों में ट्रैक्टरों के माध्यम से कैमिकल स्प्रे करेंगे.”
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री ने आगे कहा, “दिल्ली सरकार शहर में 800 हेक्टेयर भूमि पर छिड़कने के लिए एक फर्मेन्टेड तरल समाधान तैयार करने की प्रक्रिया शुरू करेगी, जहां से किसानों की ओर से पराली जलाए जाने की रिपोर्ट सामने आती हैं. अधिकतर राज्यों में, किसानों को पराली के निस्तारण की तकनीक अपनाने के लिए आर्थिक मदद देने की आवश्यकता है. आज, हमने सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार से इस विशेष तकनीक को अपनाने का अनुरोध किया है.”
दिल्ली एक्सपेरिमेंट
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुताबिक खेतों पर स्प्रे छिड़कने की सारी व्यवस्था दिल्ली सरकार की ओर से किसानों के लिए मुफ्त की जाएगी. उन्होंने कहा कि पूरी परियोजना के कार्यान्वयन की लागत 20 लाख रुपये से कम है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा, “चार कैप्सूल- गुड़ और बेसन के तरल घोल का जब छिड़काव किया जाता है तो ये कठोर भूसे को नरम कर देता है और इसे खाद में बदल देता है. यह एक सस्ता विकल्प है. हमने तय किया है कि यह फॉर्म्यूलेशन दिल्ली सरकार खुद पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट के मार्गदर्शन में तैयार करेगी. हमने उसी के लिए सभी व्यवस्थाएं की हैं. छिड़काव के 15-20 दिनों के बाद पराली नर्म होकर खाद में बदल जाती है.”
बता दें कि पिछले साल पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी यूपी में पराली जलाए जाने की घटनाओं ने दिल्ली के प्रदूषण में 44 प्रतिशत हिस्सेदारी निभाई.