अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भी जातिगत पूर्वाग्रह के कारण भेदभाव का मामला सामने आया है. इसका असर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले SC/ST के छात्रों पर पड़ रहा है. दरअसल, भाजपा नेता किरीट प्रेमजीभाई सोलंकी की अध्यक्षता वाली अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कल्याण समिति ने AIIMS में आरक्षण नीति के कार्यान्वयन पर एक रिपोर्ट में कई खुलासे किए हैं.
रिपोर्ट में फैकल्टी रिक्रूटमेंट के दौरान दलित और आदिवासी उम्मीदवारों के साथ भेदभाव का आरोप लगाया गया है. साथ ही समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि जातिगत भेदभाव के कारण SC/ST के MBBS स्टूडेंट्स परीक्षाओं में बार-बार फेल होते हैं.
राज्यसभा में पेश की गई समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति ने इस बात की जांच की कि क्या SC/ST समुदाय के MBBS स्टूडेंट्स को मेहनत करने के बाद भी परीक्षा के पहले, दूसरे या तीसरे चरण में फेल कर दिया जाता है. तो जांच में पाया गया कि इन छात्रों ने सैद्धांतिक परीक्षाओं (Theory Examinations) में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन उन्हें व्यावहारिक परीक्षाओं ( Practical Examinations) में फेल कर दिया गया. यह स्पष्ट रूप से SC/ST छात्रों के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाता है.
अनुचित व्यवहार रोकने के लिए हो कड़ी कार्रवाई
द टेलीग्राफ ऑनलाइन के मुताबिक रिपोर्ट में कहा गया है कि परीक्षार्थी छात्रों का नाम पूछते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं कि कोई छात्र SC/ST समुदाय से संबंधित है या नहीं. इसलिए समिति सिफारिश करती है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को भविष्य में इस तरह के अनुचित व्यवहार को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.
छात्रों के लिए कोड नंबर का इस्तेमाल हो
30-सदस्यीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि एम्स के छात्रों को एक कोड नंबर का उपयोग करके अपनी परीक्षा देने के लिए कहा जाए, न कि उनके नाम को पूछा जाए.
छात्र के फेल होने पर जांच करें डीन
परीक्षा के डीन को एक दलित या आदिवासी छात्र के फेल होने की हर घटना को स्कैन करना होगा. साथ ही एक निर्धारित समय के भीतर आवश्यक कार्रवाई के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक को एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी.
एम्स में प्रोफेसरों के इतने पद खाली
एम्स में फैकल्टी के 1,111 पदों में से 275 असिस्टेंट प्रोफेसर और 92 प्रोफेसर के पद खाली हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस संबंध में ये जवाब दिया गया था कि आरक्षित पदों के लिए पर्याप्त संख्या में उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिले. जबकि ये सच नहीं है. क्योंकि उन्हें जानबूझकर 'उपयुक्त नहीं' घोषित किया जाता है, चयन समिति द्वारा गलत पक्षपातपूर्ण मूल्यांकन के कारण सिर्फ एससी / एसटी उम्मीदवारों को फैकल्टी का हिस्सा बनने से वंचित कर दिया जाता है.
सुपर-स्पेशियलिटी में लागू हो आरक्षण नीति
रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के फैकल्टी मेंबर्स की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए छात्र और संकाय स्तर पर सभी सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में आरक्षण नीति को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए. दशकों पुरानी सरकारी नीति के तहत कहीं भी सुपर-स्पेशियलिटी मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश में आरक्षण लागू नहीं किया गया है. हाउस पैनल ने बदलाव का सुझाव दिया है.
पदों पर भर्ती के लिए गठित हो अलग से पैनल
समिति ने कहा कि समिति यह अनुशंसा करती है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के पदों पर भर्ती के लिए एक अलग चयन पैनल का गठन किया जाए. जहां अध्यक्ष और अधिकांश सदस्य दलित या आदिवासी हों. इसमें कहा गया है कि सभी रिक्त संकाय पदों को अगले तीन महीनों के भीतर भरा जाना चाहिए. कोई भी आरक्षित संकाय पद 6 महीने से अधिक समय तक खाली नहीं रहना चाहिए.
ये भी देखें