मध्यप्रदेश के सीहोर में तीन साल की मासूम सृष्टि जिंदगी की जंग हार गई. सृष्टि मंगलवार को खेलते खेलते 300 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई थी. यह बोरवेल खेत में खुला पड़ा था. सृष्टि 50 घंटे चले रेस्क्यू के बाद जब उसे निकाला गया, तो वह दम तोड़ चुकी थी. सृष्टि के रेस्क्यू में सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और रोबोटिक टीम शामिल थी. लेकिन उसे नहीं बचाया जा सका.
इससे पहले 2 जून को गुजरात के जामनगर में बोरवेल में दो साल की बच्ची गिर गई थी. बच्ची 20 फीट गहराई में फंसी थी, उसे बचाने के लिए सेना समेत विभिन्न एजेंसियों ने 19 घंटे तक रेस्क्यू चलाया, लेकिन सफलता नहीं मिली. इसी तरह पिछले साल दिसंबर में मध्य प्रदेश के बैतूल में 8 साल के तन्मय की बोरवेल में गिरकर मौत हो गई थी. 84 घंटे तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद तन्मय को बोरवेल से तो बाहर निकाल लिया गया था, लेकिन जिंदा नहीं मृत.
हर साल देशभर से बोरवेल में बच्चों के गिरने के कई मामले सामने आते हैं, जिनमें से अधिकांश की बोरवेल के भीतर ही दम घुटकर मौत हो जाती है. सृष्टि हो या तन्मय, इन बच्चों की मौत प्रशासन से लेकर परिजनों तक पर कई सवाल खड़े करती है. सवाल यह है कि आखिर बार-बार होते ऐसे हादसों के बावजूद देश में कब तक बोरवेल या ट्यूबवेल के गड्ढे खुले छोड़े जाते रहेंगे और कब तब मासूम जानें इनमें गिरकर दम तोड़ती रहेंगी. आखिर कब तक मासूमों की जिंदगी से ऐसा खिलवाड़ होता रहेगा?
खेत में खुले पड़े बोरवेल में मौत के मामलों पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में निर्देश जारी किए थे. इसके बावजूद बोरवेल में गिरने से मौत के मामले कम नहीं हो सके. एनसीआरबी की रिपोर्ट्स के मुताबिक, चार साल में देशभर में 281 लोगों की मौत बोरवेल में गिरकर हुई है.
जहां कही भी बोरवेल में कोई बच्चा फंसता है, सेना से लेकर एनडीआरएफ की टीमें तेजी दिखाते हुए रेस्क्यू में जुट जाती हैं. कई घंटों तक रेस्क्यू चलता है, कुछ एक बार तो सफलता मिल जाती है, लेकिन अधिकांश बार बच्चों की मौत के बाद रेस्क्यू विफल हो जाता है.
जिस राज्य में बोरवेल में बच्चा गिरने का हादसा होता है, वहां हादसे के बाद प्रशासन जाग जाता है और बोरवेल खुला छोड़ने वालों के खिलाफ अभियान चलाकर सख्ती दिखाने की कोशिश करता है. लेकिन जमीन पर कुछ खास नजर नहीं आता. महीने-दो महीने में फिर किसी न किसी राज्य से बोरवेल में बच्चे गिरने की खबर सामने आ जाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी, 2010 बोरवेल को लेकर तमाम दिशा निर्देश जारी किए थे. लेकिन इनका पालन नहीं हो रहा है. यही वजह है कि देशभर में स्थिति जस के तस है. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन CJI के जी बालकृष्णन की अगुवाई वाली बेंच ने एक याचिका पर स्वत: संज्ञान लेते हुए ये निर्देश जारी किए थे. कोर्ट ने सरकारों से इस आदेश का व्यापक प्रचार-प्रसार करने को भी कहा था.
तब कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, "कोर्ट के संज्ञान में लाया गया है कि बोरवेल या नलकूप में बच्चे गिर के फंस जाते हैं. ये खबरें अलग-अलग राज्यों से आ रही हैं. ऐसे में हमने स्वत: पहल की और इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल उपाय करने के लिए विभिन्न राज्यों को नोटिस जारी किया.''
- बोरवेल खोदने से 15 दिन पहले जमीन मालिक को डीसी या सरपंच को सूचना देनी होगी.
- अफसरों की निगरानी में बोरवेल की खुदाई हो.
- बोरवेल खोदते वक्त सूचना बोर्ड लगाना होगा.
- बोरवेल के आसपास कंटीली तारों से घेराव बनाना होगा. चारों तरफ कंक्रीट की दीवार बनानी होगी.
- शहरी इलाकों में गाइडलाइंस के पालन की जिम्मेदारी डीसी और ग्रामीण इलाके में सरपंच या संबंधित विभाग की होगी.
- बोरवेल या कुएं को ढकने के लिए मजबूत स्टील का ढक्कन लगाना होगा.
- बोरवेल का काम पूरा होने के बाद आस-पास के गड्ढों को पूरी तरह भरना जरूरी होगा.
NCRB की रिपोर्ट्स के मुताबिक, देशभर में 2018 से 2021 तक यानी चार साल में 281 लोगों की मौत बोरवेल में गिरने से हुई है. 2018 में बोरवेल में गिरने से 121, 2019 में 62, 2020 में 65 और 2021 में 33 लोगों ने जान गंवाई है. इन 281 में से 34 बच्चे (14 साल तक के) हैं.
2018 में कहां कितनी मातें?
राज्य | कुल मौतें |
झारखंड | 34 |
उत्तर प्रदेश | 34 |
गुजरात | 15 |
राजस्थान | 15 |
हरियाणा | 12 |
2019 में कहां कितनी मौतें
राज्य | कुल मौतें |
उत्तर प्रदेश | 25 |
गुजरात | 10 |
हरियाणा | 9 |
राजस्थान | 5 |
पंजाब | 4 |
2020 में कहां कितनी मौतें?
राज्य | कुल मौतें |
उत्तर प्रदेश | 29 |
राजस्थान | 18 |
गुजरात | 5 |
पंजाब | 3 |
मध्यप्रदेश | 2 |
2021 में कहां कितनी मौतें?
राज्य | कुल मौतें |
उत्तर प्रदेश | 17 |
राजस्थान | 6 |
हरियाणा | 3 |
अरुणाचल | 2 |
पंजाब | 2 |