सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थी बच्चे दाखिले के लिए सरकारी स्कूलों में जा सकते हैं, अगर किसी स्कूल में उन्हें दाखिला देने से इनकार किया जाता है, तो वे इस मामले को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की.
याचिका में मांग की गई थी कि UNHCR(संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त) कार्ड रखने वाले रोहिंग्या बच्चों को दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दाखिला दिया जाए. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम चाहते हैं कि पहले बच्चे खुद स्कूलों में दाखिले के लिए आवेदन करें. अगर स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता है, तो वे हाईकोर्ट जा सकते हैं.
यह निर्देश सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्वेस की दलील पर दिया गया, जो 'रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव' नामक एनजीओ की ओर से पेश हुए थे. गोंसाल्वेस ने कहा कि अगर अदालत अपने आदेश में यह बात दर्ज कर देती है, तो करीब 500 रोहिंग्या बच्चों के दाखिले का रास्ता साफ हो जाएगा. उन्होंने कहा कि मैं 2018 से इस मुद्दे को लेकर लड़ाई लड़ रहा हूं, अगर कोर्ट एक सीधा आदेश दे दे, तो 500 बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला मिल जाएगा.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे पहले भी इसी तरह के मुद्दे पर वह ऐसा आदेश जारी कर चुकी है, और उसी आदेश को दोहराया जा रहा है. कोर्ट ने कहा कि हम चाहते हैं कि बच्चे पहले खुद पहल करें और स्कूलों में दाखिले की कोशिश करें.
बता दें कि 12 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शिक्षा के अधिकार से किसी भी बच्चे को वंचित नहीं किया जा सकता. याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी कि दिल्ली में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में सुविधाएं दी जाएं.
इससे 31 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ से कहा था कि वह अदालत को यह जानकारी दे कि दिल्ली में रोहिंग्या शरणार्थी कहां-कहां बसे हुए हैं और उन्हें कौन-कौन सी सुविधाएं मिल रही हैं. गोंसाल्वेस ने अदालत को बताया कि रोहिंग्या शरणार्थी शाहीन बाग, कालिंदी कुंज और खजूरी खास इलाकों में रहते हैं. शाहीन बाग और कालिंदी कुंज में वे झुग्गियों में रहते हैं, जबकि खजूरी खास में वे किराए के मकानों में रहते हैं.