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दिल्ली का बॉस कौन? केजरीवाल सरकार या उपराज्यपाल... थोड़ी देर में सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच टकराव मामले पर 18 जनवरी को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. दिल्ली सरकार का तर्क रहा है कि केंद्र दरअसल उसके और संसद के बीच के अंतर को खत्म करना चाहता है. 

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सुप्रीम कोर्ट
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दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच टकराव का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. दिल्ली में अधिकारियों की पोस्टिंग और उनके ट्रांसफर के अधिकार की मांग वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर कोर्ट गुरुवार को फैसला सुनाने जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण के अधिकार से जुड़ा होगा. 

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कोर्ट ने इस मामले में 18 जनवरी को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. दिल्ली सरकार का तर्क रहा है कि केंद्र दरअसल उसके और संसद के बीच के अंतर को खत्म करना चाहता है. 

लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि दुनिया के लिए दिल्ली को देखना यानी भारत को देखना है. उन्होंने कहा कि चूंकि ये राष्ट्रीय राजधानी है, इसलिए ये जरूरी है कि केंद्र के पास अपने प्रशासन पर विशेष अधिकार हों और अहम मुद्दों पर नियंत्रण हो. 

केंद्र सरकार ने 2021 में गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट (GNCTD Act) पास किया था. इसमें दिल्ली के उपराज्यपाल को कुछ और अधिकार दे दिए गए थे. आम आदमी पार्टी ने इसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. आम आदमी पार्टी अक्सर केंद्र सरकार पर चुनी हुई सरकार के कामकाज में बाधा डालने के लिए उपराज्यपाल का इस्तेमाल करने का आरोप लगाती रही है. 

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दिल्ली और केंद्र के बीच की ये लड़ाई आज की नहीं, बल्कि सालों से चली आ रही है. इसकी वजह ये है कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है और यहां केंद्र का नियंत्रण भी है. बीजेपी खुद दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करती थी. दिल्ली पर नियंत्रण को लेकर शीला दीक्षित की भी शिकायत रहती थी, लेकिन उन्होंने कभी पुरजोर तरीके से इसकी मांग नहीं की. 2014 के चुनाव में जीत के बाद बीजेपी सांसद और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था कि वो प्रधानमंत्री से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करेंगे.

दिल्ली आखिर है क्या?

दिल्ली को लेकर कई सारे सवाल मन में आते हैं कि आखिर ये है क्या? शहर है? राज्य है? केंद्र शासित प्रदेश है? एनसीआर है? एनसीटी है?

दरअसल, दिल्ली न सिर्फ एक शहर, राज्य, राजधानी और राज्य है, बल्कि एक केंद्र शासित प्रदेश भी है. साल 1992 में दिल्ली को गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी का दर्जा दिया गया था. 

वहीं, एनसीआर एक तरह की योजना है जिसे 1985 में लागू किया गया था. इसका मकसद दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों को प्लानिंग के साथ डेवलप करना था. एनसीआर में अभी हरियाणा के 14, उत्तर प्रदेश के 8, राजस्थान के दो और पूरी दिल्ली शामिल है.

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दिल्ली की व्यवस्था कैसी है?

12 दिसंबर 1931 को अंग्रेजों ने दिल्ली को ब्रिटिश इंडिया की राजधानी बनाया. जब देश आजाद हुआ तो राज्यों को पार्ट A, पार्ट B और पार्ट C में बांट दिया गया. दिल्ली को पार्ट C में रखा गया. आजादी के बाद दिल्ली को ही भारत की राजधानी बनाया गया.

1956 तक दिल्ली की अपनी विधानसभा होती थी, लेकिन 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून आया. इससे राज्यों का बंटवारा हुआ. दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. विधानसभा को भंग कर दिया गया. राष्ट्रपति का शासन लागू हो गया. ये सिलसिला करीब 35 साल तक चला.

1991 में नेशनल कैपिटल टेरिटरी एक्ट पास हुआ. इससे 1993 में दिल्ली में फिर से विधानसभा का गठन हुआ. इस कानून के मुताबिक, यहां केंद्र और एनसीटी की सरकार, दोनों मिलकर शासन करेंगी. इस कारण कुछ शक्तियां केंद्र और कुछ दिल्ली सरकार में बंटी. इस वजह से गतिरोध पैदा होता है. 

चल तो रहा है सब सही, फिर दिक्कत क्यों?

आप ये कहेंगे कि दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार मिलकर अच्छे से सब चला तो रहीं हैं तो फिर दिक्कत कहां है? दिक्कत नियंत्रण और अधिकारों को लेकर है. 

दिल्ली की जमीन, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था पर केंद्र का अधिकार है. बाकी दूसरे मसलों पर भी कानून लाने के लिए दिल्ली सरकार को केंद्र की अनुमति लेनी होती है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में फैसला दिया था कि जमीन, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था को छोड़कर दिल्ली सरकार को बाकी सभी मसलों पर कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन अब केंद्र का कहना है कि उस फैसले का मतलब ये नहीं है कि दिल्ली सरकार को उन तीन को छोड़कर बाकी सभी पर कानून बनाने का अधिकार मिल गया. 

दिल्ली सरकार की शिकायत है कि यहां की पुलिस पर उसका कंट्रोल नहीं है और जब भी कोई क्राइम होता है तो लोग दिल्ली सरकार पर आरोप लगाते हैं. इसके अलावा दिल्ली का ये भी आरोप रहता है कि उपराज्यपाल के जरिए केंद्र उसके कामकाज में बाधा डालता है. 

वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए इसे राज्य के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. दिल्ली में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति निवास के अलावा संसद और दूतावास हैं, जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र की है. 

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