सुप्रीम कोर्ट ने 104 साल के हत्यारे को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया ताकि वो अपना 104वां जन्मदिन अपने परिवार के साथ मना सके और जीवन का अंतिम काल शांति से परिवार के साथ गुजार सके.
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ के समक्ष जब पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के एक गांव के बुजुर्ग रसिक चंद्र मंडल की अर्जी आई तो कोर्ट ने भी दरियादिली दिखाई. क्योंकि मंडल को बढ़ती उम्र में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के कारण जेल से सुधार गृह में शिफ्ट कर दिया गया था.
1994 में सुनाई गई थी आजीवन कारावास की सजा
मंडल को 1988 में हुए हत्याकांड में दोषी करार देते हुए 1994 में आजीवन कारावास की सजा ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी. मंडल ने कलकत्ता हाई कोर्ट में अपील की. करीब चौथाई सदी बीतने के बाद हाई कोर्ट ने 2018 में मंडल की अर्जी खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा. जनवरी 2019 से जेल में बंद मंडल की अपील सुप्रीम कोर्ट में आई. लेकिन 11 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी. यानी उन्हें तब सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली.
मंडल ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक नई अपील दायर की जिसमें अपनी 99 साल की उम्र के बुढ़ापे और बीमारियों का हवाला देते हुए उन्होंने समय से पहले रिहाई की गुहार लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार से रिपोर्ट मांगी और 2021 में इसे गंभीरता से लिया.
बेटे ने लगाई अर्जी
अब जब मंडल ने अपने 45 साल के बेटे की ओर से अर्जी लगवाई कि 104 साल की उम्र में तो उसके पिता को रिहा कर दिया जाए, तो कोर्ट ने मालदा जिले के मानिकचक में दर्ज हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए मंडल को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया.
1920 में हुआ था जन्म
रिकॉर्ड्स के मुताबिक रसिक चंद्र मंडल का जन्म 1920 में हुआ. उस साल कांग्रेस ने फिरंगी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया था. आजादी की लड़ाई के दौरान जन्मे इस शख्स ने सौ साल बाद अपनी आजादी की गुहार सुप्रीम कोर्ट से लगाई और आखिरकार वो इसमें कामयाब हुआ.