कर्नाटक की बोम्मई सरकार ने चार फीसदी मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर दिया है. इसको लेकर राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि कैबिनेट का यह फैसला नौ मई तक लागू नहीं होगा. इससे पहले शीर्ष अदालत में बोम्मई सरकार ने कहा था कि वह 18 अप्रैल तक इस आदेश पर अमल नहीं करेगी.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि राज्य सरकार का 30 मार्च को दिया गया आदेश लागू नहीं होगा. आरक्षण को लेकर पुराना फॉर्मूला ही लागू होगा. एसजी की अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई. जस्टिस जोसेफ ने कहा कि इस मामले में अगले सप्ताह सुनवाई की जाएगी.
वहीं मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश हुए वकील दुष्यंत दवे ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर सुनवाई स्थगित होती है तो मामला छुट्टियों के बाद चला जाता है. सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय को वंचित किया जा रहा है. दवे ने अपील करते हुए कहा कि 9 मई की तारीख को स्थगित नहीं किया जाए. इसके अलावा कर्नाटक सरकार ने अदालत को आश्वासन दिया कि मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण को खत्म करने के फैसले को लागू नहीं किया जा रहा है.
कोर्ट ने राज्य सरकार को लगाई थी फटकार
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बोम्मई सरकार के मुस्लिम कोटे को खत्म करने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, 'ये फैसला भ्रामक अनुमानों पर आधारित है. आपके फैसले लेने की प्रक्रिया का आधार त्रुटिपूर्ण और अस्थिर लग रहा है.'
क्या है पूरा मामला?
दरअसल बीते महीने की 24 मार्च को मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कैबिनेट मीटिंग बुलाई. इसके बाद एक सरकारी आदेश जारी हुआ, इसके जरिए ओबीसी आरक्षण में बदलाव कर दिया गया. सरकार ने ओबीसी आरक्षण से मुस्लिम कोटे को बाहर कर दिया. ओबीसी आरक्षण में मुस्लिम कोटा 4 फीसदी का था. उन्हें हटाकर वीरशैव-लिंगायत और वोक्कालिगा को शामिल किया गया. मुस्लिम कोटे का 4 फीसदी आरक्षण वीरशैव-लिंगायत और वोक्कालिगा में दो-दो फीसदी बांट दिया गया.
वोक्कालिगा और लिंगायतों को कितना आरक्षण?
वोक्कालिगा का कोटा पहले 4 फीसदी था, तो वहीं लिंगायतों का कोटा 5 फीसदी था. वहीं, अब नए आदेश के बाद मुस्लिमों का 4 फीसदी कोटा खत्म किया और 2-2 फीसदी वोक्कालिगा और लिंगायतों का कोटा बढ़ा दिया गया. लिहाजा, अब वोक्कालिगा समुदाय का कोटा 4 से बढ़कर 6 फीसदी हो गया और लिंगायतों का कोटा 5 से बढ़कर 7 फीसदी हो गया.