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मणिपुर: कैदी को अस्पताल नहीं ले जाने पर SC की सख्त टिप्पणी, कहा- हमें राज्य सरकार पर भरोसा नहीं

पीठ ने जेल अधीक्षक और राज्य अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 'उसे गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज ले जाने के लिए आवश्यक व्यवस्था करें और वहां उसकी जांच करवाएं. उसकी बवासीर, टीबी, टॉन्सिलिटिस, पेट दर्द की जांच होगी. याचिकाकर्ता को रीढ़ की हड्डी में भी समस्या है.

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सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मणिपुर की जेल में बंद एक विचाराधीन कैदी को इलाज के लिए अस्पताल न ले जाने पर कड़ा संज्ञान लिया. अपनी टिपण्णी में कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति को सिर्फ इसलिए इलाज के लिए अस्पताल नहीं ले जाया गया क्योंकि वह अल्पसंख्यक ‘कुकी’ समुदाय से था. कोर्ट ने कहा कि उसे राज्य सरकार पर भरोसा नहीं है.

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जस्टिस जेबी पारदीवाला और उज्जल भुयान की पीठ ने लुनखोंगम हाओकिप की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की. लुनखोंगम हाओकिप ने कहा था कि वह बवासीर और टीबी से पीड़ित है. उसे पीठ में तेज दर्द होने के बावजूद जेल अधिकारी उसे अस्पताल लेकर नहीं गए.

पीठ ने कहा, 'हमें राज्य पर भरोसा नहीं है...आरोपी को अस्पताल नहीं ले जाया गया क्योंकि वह कुकी समुदाय से है. बहुत दुखद! हम उसे अभी जांच करने का निर्देश देते हैं. अगर मेडिकल रिपोर्ट में कुछ गंभीर बात सामने आती है तो हम आपको फटकार लगाएंगे.'

हाओकिप के वकील ने दावा किया कि जेल अधिकारियों ने मेडिकल हेल्प के लिए लगातार अनुरोध करने पर भी ध्यान नहीं दिया. पीठ ने मणिपुर हाई कोर्ट के आदेश का अवलोकन किया और पाया कि विचाराधीन कैदी को अस्पताल नहीं ले जाया गया, क्योंकि वह कुकी समुदाय से था और 'उसे अस्पताल ले जाना कानून और व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए खतरनाक होगा.'

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मणिपुर में अल्पसंख्यक कुकी और बहुसंख्यक मैतेई समुदायों के बीच जातीय संघर्ष जारी है. 

पीठ ने जेल अधीक्षक और राज्य अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 'उसे गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज ले जाने के लिए आवश्यक व्यवस्था करें और वहां उसकी जांच करवाएं. उसकी बवासीर, टीबी, टॉन्सिलिटिस, पेट दर्द की जांच होगी. याचिकाकर्ता को रीढ़ की हड्डी में भी समस्या है.

कोर्ट ने 15 जुलाई तक या उससे पहले एक डिटेल मेडिकल रिपोर्ट मांगी और राज्य से उपचार लागत सहित सभी खर्च वहन करने को कहा.

पिछले साल मई में मणिपुर में हाई कोर्ट के आदेश पर अराजकता और हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें राज्य सरकार को गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया गया था.

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